आँग्ल-आयरी साहित्य अंग्रेजों द्वारा आयरलैंड विजय करने का कार्य हेनरी द्वितीय द्वारा १२वीं शताब्दी (११७१) में आरंभ हुआ और हेनरी अष्टम द्वारा १६वीं शताब्दी (१५४१) में पूर्ण हुआ। चार सौ वर्षों के संघर्ष के पश्चात् वह २०वीं शताब्दी (१९२२) में स्वतंत्र हुआ। इस दीर्घकाल में अंग्रेजों का प्रयत्न रहा कि आयरलैंड को पूरी तरह इंग्लैंड के रंग में रंग दें, उसकी राष्ट्रभाषा गैलिक को दबाकर उसे अंग्रेजीभाषी बनाएँ। इस कार्य में वे बहुत अंशों में सफल भी हुए। आँग्ल-आयरी साहित्य से हमारा तात्पर्य उस साहित्य से है जो अंग्रेजीभाषी आयरवासियों द्वारा रचा गया है और जिसमें आयर की निजी सभ्यता, संस्कृति और प्रकृति की विशेष छाप है। गैलिक अपने अस्तित्व के लिए १७वीं शताब्दी तक संघर्ष करती रही और स्वतंत्र होने के बाद आयर ने उसे अपनी राष्ट्रभाषा माना। फिर भी लगभग चार सौ वर्षों तक आयरवासियों ने जिस विदेशी माध्यम से अपने को व्यक्त किया है वह पैतृक दाय के रूप में उनकी अपनी राष्ट्रीय संपत्ति है। इसमें से बहुत कुछ इस कोटि का है कि वह अंग्रेजी साहित्य का अविभाज्य अंग बन गया है और उसने अंग्रेजी साहित्य को प्रभावित भी किया है, पर बहुत कम ऐसा है जिसमें आयर के हृदय की अपनी खास धड़कन नहीं सुनाई देती। इस साहित्य के लेखकों में हमें तीन प्रकार के लोग मिलते हैं : एक वे जो इंग्लैंड से जाकर आयर में बस गए पर वे अपने संस्कार से पूरे अंग्रेज बने रहे, दूसरे वे जो आयर से आकर इंग्लैंड में बस गए और जिन्होंने अपने राष्ट्रीय संस्कारों को भूलकर अंग्रेजी संस्कारों को अपना लिया, तीसरे वे जो मूलत: चाहे अंग्रेज हों चाहे आयरी, पर जिन्होंने आयर की आत्मा से अपने को एकात्म करके साहित्यरचना की। मुख्यत: इस तीसरी श्रेणी के लोग ही आँग्ल-आयरी साहित्य को वह विशिष्टता प्रदान करते हैं जिससे भाषा की एकता के बावजूद अंग्रेजी साहित्य में उसको अलग स्थान दिया जाता है। यह विशिष्टता उसकी संगीतमयता, भावाकुलता, प्रतीकात्मकता, काल्पनिकता, अतिमानव और अतिप्रकृति के प्रति आस्था और कभी-कभी बलात् इन सबसे विमुख एक ऐसी बौद्धिकता और तार्किकता में है जो उद्धत और क्रांतिकारिणी प्रतीत होती है। यही है जो एक युग में विलियम बटलर यीट्स को भी जन्म देती है और जार्ज बरनार्ड शा को भी।

आँग्ल-आयरी साहित्य का आरंभ संभवत: लियोनेल पावर के संगीत-विषयक लेख से होता है जो १३९५ में लिखा गया था; पर साहित्यिक महत्व का प्रथम लेख शायद रिचर्ड स्टैनीहर्स्ट (१५४७-१६१८) का माना जाएगा जो आयर के इतिहास के संबंध में हालिनशेड के क्रानिकिल (१५७८) में सम्मिलित किया गया था।

१७वीं शताब्दी के कवियों में डेनहम, रासकामन, टेट; नाट्यकारों में ओरेनी और इतिहासकारों में सर जान टेंपिल के नाम लिए जाएँगे।

१८वीं शताब्दी इंग्लैंड में गद्य के चरम विकास के लिए प्रसिद्ध है। वाग्मिता, नाटक, उपन्यास, दर्शन, निबंध सबमें अद्भुत उन्नति हुई। इसमें आयरियों का योगदान अंग्रेजों से किसी भी दशा में कम नहीं माना जाएगा।

पार्लियामेंट में बोलनेवालों में एडमंड बर्क (१७२९-९७) का नाम सर्वप्रथम लिया जाएगा। 'इंपीचमेंट ऑव वारेन हेस्टिंग्ज़' की प्रत्याशा किसी अंग्रेज से नहीं की जा सकती थी; उसमें अंग्रजों के आत्मनियंत्रण का भी प्रभाव है। पार्लियामेंट के अन्य वक्ताओं में फ़िलपाट क्यरन (१७५०-१८१७) और हेनरी ग्राटन (१७४६-१८२०) के नाम भी सम्मानपूर्वक लिए जाएँगे, यद्यपि उनके विषय प्राय: आयर से संबद्ध और सीमित होते थे।

१८वीं शताब्दी उपन्यासों के उद्भव का काल है। सेंट्सबरी ने जिन चार लेखकों को उपन्यास के रथ का चार पहिया कहा है, उनमें एक स्टर्न (१७१३-६८) हैं। ये आयरमूलक थे, और यद्यपि ये आजीवन इंग्लैंड में ही रहे, उनके उपन्यास ने इस प्रकार के चरित्र को जन्म दिया जो भावना के उद्वेग में पूरी तरह बहता है। दूसरे उपन्यासकार गोल्डस्मिथ (१७२८-७४) ने उपन्यास में सामान्य घरेलू जीवन की स्थापना की।

जोनाथान स्विफ़्ट (१६६७-१७४५) ने सरल शैली में व्यंग्य लिखने में प्रसिद्धि प्राप्त की। उनका ग्रंथ 'गलिवर्स ट्रैवेल' मानवता पर सबसे बड़ा व्यंग है। उसे बालविनोद बनाकर लेखक ने मानवता पर व्यंग्य किया है। जार्ज बर्कले (१६८५-१७५३) ने यूरोपीय दर्शनशास्त्र में विचार के सूक्ष्म आधारों का सूत्रपात किया।

नाट्यकारों में विलियम कांग्रीव (१६७०-१७२९), शेरिडन (१७५१-१८१६) और जार्ज फ़रकुहर (१६६८-१७०७) के नाम उल्लेखनीय हैं। इस शताब्दी में कोई प्रसिद्ध कवि नहीं हुआ।

आयर के इतिहास में १९वीं सदी राष्ट्रीयता, उदार मनोवृत्ति, क्रांति की विचारधारा, रूमानी उद्भावना और पुरातन के प्रति अनुराग के लिए प्रसिद्ध है। काव्य के क्षेत्र में, शारलट ब्रुक (१७४०-९३) ने गैलिक कविताओं के अनुवाद अंग्रेजी में किए थे; जे. जे. कोलनन (१७९५-१८२९) ने गैलिक कविताओं के आधार पर अंग्रेजी में कविताएँ लिखीं। मौलिक कवियों में जेम्स क्लैरेंस मंगन (१८०३-४९), सैमुएल फ़रगुसन (१८१०-८६), आब्रे-डि-वियर (१८१४-१९०२) और विलियम एलिंगम (१८२४-८९) के नाम प्रसिद्ध हैं। सबसे अधिक प्रसिद्ध थॉमस मूर (१७७९-१८५२) हुए। उन्होंने आयरी लय में बहुत सी कविताएँ लिखीं। अपने समय में वे रूमानी कवियों में सबसे अधिक प्रसिद्ध थे।

१९वीं शताब्दी में कई पत्रपत्रिकाएँ निकलीं जिनसे आयरलैंड के सांस्कृतिक आँदोलन को बड़ा बल मिला। इसमें 'यंग आयरलैंड' और 'दि नेशन' प्रमुख रहे। डबलिन युनिवर्सिटी मैगज़ीन में इस आँदोलन की कुछ स्थायी साहित्यिक सामग्री संगृहीत है।

इस शताब्दी के उपन्यासकारों में निम्नलिखित नाम प्रसिद्ध हैं : चार्ल्स मेट्यूरिन (१७८२-१८२४) जिनके 'मेलमाथ दि वांडरर' को यूरोपीय ख्याति मिली; मेरिया एजवर्थ (१७६७-१८४९) जिन्होंने समकालीन आयरी जीवन का चित्रण सफलता के साथ किया; जेरल्ड ग्रिफ़िन (१८०३-४०) जिन्होंने ग्रामीण जीवन की ओर ध्यान दिया। लघुकथालेखकों में हैमिल्टन मैक्सवेल (१७९२-१८५०) का नाम सर्वोपरि है। चार्ल्स लीवर (१८०६-७२) ने हास्य और व्यंग्य लिखने में प्रसिद्धि प्राप्त की। आयरी व्यंग्य अपने ही ऊपर आकर समाप्त होता है। लीवर पर अपनी ही जाति का मजाक उड़ाने का दोष लगाया गया। यही दोष आगे चलकर जे.एम. सिज पर भी लगा।

इस शताब्दी के आलोचकों में एडवर्ड डाउडन (१८४३-१९१३) का नाम प्रसिद्ध है। शेक्सपियर पर लिखी उनकी पुस्तक आज भी मान्य है।

नाटक के क्षेत्र में इस शताब्दी के अंत में आस्कर वाइल्ड (१८५४-१९००) प्रसिद्ध हुए। वे आयरी थे, परंतु उन्होंने आयरी प्रभावों से मुक्त रहने का प्रयत्न किया था। उनमें जो कुछ आयरी प्रभाव है, उनके अवचेतन से ही आया जान पड़ता है।

१९वीं सदी के अंत में आयर में जो साहित्यिक पुनर्जागरण हुआ उसके केंद्र डब्ल्यू. बी. यीट्स (१८६५-१९३९) माने जाते हैं। कविता, नाटक निबंध, सभी क्षेत्रों में उनकी ख्याति समान है। उन्होंने डबलिन में एबी थियेटर की स्थापना भी की। इससे प्रोत्साहित होकर कई अच्छे नाटककार आगे आए। इनमें लेडी ग्रिगोरी (१८५३-१९३२) और जे. एम. सिंज (१८७१-१९०९) अधिक प्रसिद्ध हैं। दोनों ने आयर के ग्रामीण जीवन की ओर देखा-लेडी ग्रिगोरी ने भावुकता से, सिंज ने व्यंग्य से। डब्ल्यू. बी. यीट्स ने कई प्रकार के नाटक लिखे। जापान के 'नो' नाटकों से प्रभावित होकर उन्होंने प्रतीकात्मक नाटक लिखने में विशिष्टता प्राप्त की। कविता के क्षेत्र में आयरी प्रभाव को न छोड़ते हुए भी अपने समय में वे अंग्रेजी के प्रतिनिधि कवि माने जाते रहे। उनके मित्र जार्ज रसेल, जो ए.ई. के नाम से कविताएँ लिखते थे, थियोसॉफिकल विचारों से प्रभावित थे।

जार्ज बरनार्ड शा (१८६५-१९५०) का रुख आयर के संबंध में आस्कर वाइल्ड जैसा ही था। पर जिस प्रकार का व्यंग्य उन्होंने समकालीन समाज के हर पक्ष पर किया है, वह कोई आयरी ही कर सकता था।

यीट्स के समकालीन लेखकों में जार्ज मूर (१८५२-१९३३) का भी नाम लिया जाएगा। वे कुछ समय तक आयर के सांस्कृतिक आँदोलन से संबद्ध रहे, पर बाद को अलग हो गए।

आधुनिक काल में जिस लेखक ने सारे संसार का ध्यान डबलिन और आयरलैंड की ओर अपनी एक रचना से ही खींच लिया वे हैं जेम्स ज्वाएस (१८८२-१९४१)। उनकी 'युलिसीज़' ने मानव मस्तिष्क की ऐसी गहराइयों को छुआ कि वह सारे संसार के लिए कौतूहल का विषय बन गई। ज्वाएस ने भाषा की अभिनव अभिव्यंजनाओं की संभावनाओं का भी पता लगाया।

स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद आयर में साहित्यिक शिथिलता के चिन्ह दिखाई देते हैं। कारण शायद नई प्रेरणा का अभाव है; और संभवत: यह भी कि आयर की मनीषा गैलिक के पुनरुद्धार और प्रचार की ओर लग गई है और अंग्रेजी के साथ उसका भावात्मक संबंध ढीला हो रहा है। (ह.ब.)