अहल्या एक प्राचीन अनुश्रुति के अनुसार अहल्या ब्रह्मदेव की आद्या स्त्रीसृष्टि थी जिसके सौंदर्य पर मोहित होकर इंद्र ने उसे अपनी सहधर्मिणी बनाने के लिए ब्रह्म से मांगा, परंतु ब्रह्म ने उसे गौतम ऋषि को विवाहार्थ दे दिया। इंद्र ने अपनी प्राचीन कामना के चरितार्थ उसके पातिव्रत का हरण किया। इस घटना के विषय में दो मत हैं। वाल्मीकि रामायण की कुछ प्रतियों के अनुसार अहल्या की सम्मति से इंद्र ने ऐसा किया, परंतु अधिक प्रचलित आख्यान के अनुसार इंद्र ने गौतम का रूप धारण कर अपनी अभिलाषा की सिद्धि की जिसमें गौतम ऋषि को असमय में प्रभात होने की सूचना देने का काम चंद्रमा ने मुर्गा बनकर किया। गौतम ने तीनों को शाप दिया। अहल्या शिला बन गई और जनकपुर जाते समय राम चरणरज के स्पर्श से उसे फिर स्त्री का रूप प्राप्त हुआ और गौतम ने उसे फिर स्वीकार किया। शतानंद अहल्या के ही पुत्र थे (रामायण, बालकांड ४८-४९)। अहल्या की यह कथा वस्तुत: एक उदात्त रूपक है; कुमारिल भट्ट का यह दृढ़ मत है। वेदों में इंद्र के लिए विशेषण प्रयुक्त है-अहल्यायै: जार:। इसी विशेषण के आधार पर यह कथा गढ़ी गई है। इंद्र सूर्य का प्रतीक है तथा अहल्या रात्रि का जिसका वह घर्षण करता है और उसे जीर्ण (वृद्ध; अंतर्हित) बना डालता है। शतपथ (३।३।४।१८), जैमिनि ब्रा. (२।७९) तथा षड्विंश (१।१) में उपलब्ध इस आख्यान का यही तात्पर्य है। (ब.उ.)