अहमदशाह दुर्रानी अब्दाली फिरके के एक अफगान वंश का संस्थापक। १७२२ ई. में जन्म। पिता मुहम्मद जमां खां हेरात के निकट का एक सामान्य सरदार था। जब नादिरशाह ने हेरात पर आक्रमण (१७३१) किया तो अब्दालियों की शक्ति नष्ट हो गई और अन्य बहुत से अब्दालियों के साथ अहमद खाँ भी आक्रांता के हाथों पकड़ा गया। परंतु १७३७ ई. में वह स्वतंत्र हो गया और माजंदारान का शासक नियुक्त हुआ। समयांतर में वह नादिरशाह की सेना में एक ऊँचे पद पर नियुक्त हुआ। नादिशाह की मृत्यु के उपरांत अहमद खाँ ने उसकी सेना का दमन करके अपनी सत्ता स्थापित कर ली। इस अवसर पर मुख्य अब्दाली मालिकों ने एक दरवेश के आदेशानुसार एकमत से उसको अपना बादशाह चुना। तब अहमद खाँ ने 'शाह' की पदवी ग्रहण की और अपना उपनाम, दुर्र दुर्रानी (सर्वोत्तम मोती) रखा। तभी से अब्दाली फिरके का नाम भी दुर्रानी पड़ गया।

कंधार को केंद्र बनाकर अहमदशाह ने काबुल पर अधिकार किया। फिर पंजाब की अराजकता और मुगल सम्राट् की निर्बलता का लाभ उठाकर वह भारत पर हमला करने लगा। १७५५ में उसने दिल्ली का बड़ी निर्दयता से ४० दिन तक विध्वंस किया और मथुरा को खूब लूटा। लाहौर के मुसलमान सुबेदार ने अहमदशाह से अपनी रक्षा के लिए सिक्खों तथा मराठों से मित्रता कर ली। इसपर दुर्रानी एक बार फिर भारत पर चढ़ आया और अंत में १७६१ ई. में पानीपत के प्राचीन युद्धक्षेत्र में मराठों से उसका भारी युद्ध हुआ जिसमें मराठों की शक्ति सर्वथा नष्ट हो गई। अहमदशाह को पूरी सफलता प्राप्त हुई। किंतु उसके वापस लौटते ही सिक्खों ने विरोध खड़ा कर दिया। अहमदशाह ने उनको पूर्णतया परास्त किया और सरहिंद तथा पंजाब में लूट मार करता हुआ वापस लौटा। १७६७ में उसने अंतिम बार भारत की यात्रा की और सिक्खों से मैत्री करने का प्रयत्न किया, किंतु उसी बहुत सी सेना उससे विमुख होकर उसे छोड़ गई। ऐसी परिस्थिति में सिक्खों ने उसका पीछा करके उसे बहुत परेशान किया। इस प्रकार यह योद्धा अपने अंतिम दिनों में कृश तथा हताश होकर १७७३ ई. में परलोक सिधारा। उसके बाद साम्राज्य का अधिकारी उसका बेटा तीमूर हुआ।

सं.ग्रं.-सुल्तान मुहम्मद खां, इब्न मूसा खां, दुर्रानी : तारख़े सुल्तानी (फ़ारसी), मुहम्मदी कारखाना, बंबई (१२९८ हि., १८८० ई.); गंडासिंह : अहमदशाह दुर्रानी (लखनऊ)। सियरुल मुताख्खिरीन (फ़ारसी), सैय्यद गुलाम हुसेन तबातबाई, कलकत्ता (१८८२)। (प.श.)