अश्वपति वैदिक तथा पौराणिक युग के प्रख्यात महीपति। इस नाम के अनेक राजाओं का परिचय वैदिक ग्रंथों तथा पुराणों में उपलब्ध होता है:

(१) छांदोग्य उपनिषद् (५।११) के अनुसार अश्वपति कैकेय केकय देश के तत्ववेत्ता राजा थे जिनसे सत्ययज्ञ आदि अनेक महाशाल तथा महाश्रोत्रिय ऋषिओं ने आत्मा की मीमांसा के विषय में प्रश्न कर उपदेश पाया था। इनके राज्य में सर्वत्र सौख्य, समृद्धि तथा सुचारित््रय की प्रतिष्ठा थी। अश्वपति के जनपद में न कोई चोर था, न शराबी, न मूर्ख और न कोई अग्निहोत्र से विरहित। स्वैर आचरण (दुराचार) करनेवाला कोई पुरूष न था फलत: कोई दुराचारिणी स्त्री न थी। इनकी तात्विक दृष्टि परमात्मा को वैश्वानर के रूप में मानने के पक्ष में थी। इनके अनुसार यह समग्र विश्व; इसके नाना पदार्थ तथा पंचमहाभूत इसी वैश्वानर के विभिन्न अंग प्रत्यंग हैं। आकाश परमात्मा का मस्तक है, सूर्य चक्षू है, वायु प्राण है, पृथ्वी पैर है। इस समष्टिवाद के सिद्धांत का पोषक होने से छांदोग्य उपनिषद् में अश्वपति महनीय दार्शनिक चित्रित किए गए हैं। (छांदोग्य. ५।१८)।

(२) महाभारत के अनुसार सावित्री के पिता ओर मद्रदेश के अधिपति थे। इनकी पुत्री सावित्री सत्यवान् नामक राजकुमार से ब्याही थी। परंपरा के अनुसार सावित्री अपने पातिव्रत तथा तपस्या के कारण अपने गतप्राण पति को जिलाने में समर्थ हुई थी। इसलिए वह आर्यललनाओं में पातिव्रत धर्म का प्रतीक मानी जाती है।

(३) वाल्मीकि रामायण (अयोध्याकांड, सर्ग १) के अनुसार अश्वपति केकय देश के राजा थे। इनके पुत्र का नाम युधाजित तथा पुत्री का नाम कैकेयी था जो अयोध्या के इक्ष्वाकुनरेश दशरथ से ब्याही थी। रामायण (अयोध्या. सर्ग ३५) में एक विशिष्ट कथा का उल्लेख कर अश्वपति का पक्षियों की भाषा का पंडित होना कहा गया है।

(ब.उ.)