अश्वत्थ (पीपल) यह वनस्पति जगत् के उर्टिकैसी परिवार का एक सदस्य है। इसका लैटिन नाम फ़ाइक्स रिलीजिओसा लिन्न है। जैसे; संस्कृत में-पिप्पल, अश्वत्थ, चलपत्र, बोधिद्रुम; हिंदी में पीपल; बंगला म-आशुदगाछ; मराठी में-पिंपल; गुजराती में-पीपलों; नेपाली में-पिपली; मलयालय में-अरयाल; तमिल में-अरसु, अरसुरम्; अरबी में-शज्रतुल् मुर्तअश; फारसी में-दरख्ते लरंजा।

यह एक आक्षीरो, पर्णपाती (डेसिडुअस), विशालकाय छायावृक्ष है जिसकी ऊँचाई २४ मीटर तक होती है। इसके कांडस्कंध से मोटी-मोटी शाखाएँ निकलकर चतुर्दिक् फैली होती हैं किंतु कोमल एवं पतले शाखाग्र नीचे को रहते हैं जिनपर लंबे एँठलयुक्त लट्वाकार हृदयाकार, लंबे अग्रवाली चमकदार पत्तियों का पुंज हाता है। इसके छाल का रंग भूरा होता है। पत्तियाँ सात इंच तक लंबी होती हैं।

भौगोलिक वितरण-ये पंजाब के पूरब में हिमालय के समीपवर्ती वनों और बंगाल, उड़ीसा, मध्यभारत आदि में पाए जाते हैं। भारत के अन्य भागों में वृक्षारोपण के कारण या जंगली वृक्षों के रूप में मिलते हैं। हिमालय पर ५,००० फुट की ऊँचाई तक इनका वृक्षारोपण किया गया है। श्रीलंका और बर्मा में ये वृक्ष बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा ले जाए गए हैं। ज्ञातव्य है कि इसी वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। बौद्ध और हिंदु इस वृक्ष को अत्यंत पवित्र मानते हैं। हिंदू इसमें देवताओं का निवास मानकर इसकी पूजा करते हैं।

अश्वत्थ (पीपल) की पत्तियाँ तथा फल ओषिधियों के रूप में प्रयुक्त होते हैं। (म.प्र.मि.)