घोड़ा मनुष्य से संबंधित संसार का सबसे प्राचीन पालतू स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी ने किसी रूप में सेवा की है। घोड़ा ईक्यूडी (Equidae)कुटुंब का सदस्य है। इस कुटुंब में घोड़े के अतिरिक्त वर्तमान युग का गधा, जेबरा, भोट-खर, टट्टू, घोड़-खर एवं खच्चर भी है। आदिनूतन युग (Eosin period) के ईयोहिप्पस (Eohippus) नामक घोड़े के प्रथम पूर्वज से लेकर आज तक के सारे पूर्वज और सदस्य इसी कुटुंब में सम्मिलित हैं। इसका वैज्ञानिक नाम ईक्वस (Equus) लैटिन शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ घोड़ा है, परंतु इस कुटुंब के दूसरे सदस्य ईक्वस जाति की ही दूसरों छ: उपजातियों में विभाजित है। अत: केवल ईक्वस शब्द से घोड़े को अभिहित करना उचित नहीं है। आज के घोड़े का सही नाम ईक्वस कैबेलस (Equus caballus) है। इसके पालतू और जंगली संबंधी इसी नाम से जाने जातें है। जंगली संबंधियों से भी यौन संबंध स्थापति करने पर बाँझ संतान नहीं उत्पन्न होती। कहा जाता है, आज के युग के सारे जंगली घोड़े उन्ही पालतू घोड़ो के पूर्वज हैं जो अपने सभ्य जीवन के बाद जंगल को चले गए और आज जंगली माने जाते है। यद्यपि कुछ लोग मध्य एशिया के पश्चिमी मंगोलिया और पूर्वी तुर्किस्तान में मिलनेवाले ईक्वस प्रज़्वेलस्की (Equus przwalski) नामक घोड़े को वास्तविक जंगली घोड़ा मानते है, तथापि वस्तुत: यह इसी पालतू घोड़े के पूर्वजो में से है। दक्षिण अफ्रका के जंगलों में आज भी घोड़े बृहत झुंडो में पाए जाते है। एक झुंड में एक नर ओर कई मादाएँ रहती है।सबसे अधिक १००० तक घोड़े एक साथ जंगल में पाए गए है। परंतु ये सब घोड़े ईक्वस कैबेलस के ही जंगली पूर्वज है और एक घोड़े को नेता मानकर उसकी आज्ञा में अपना सामाजिक जीवन व्यतीत करते है। एक गुट के घोड़े दूसरे गुट के जीवन और शांति को भंग नहीं करते है। संकटकाल में नर चारों तरफ से मादाओ को घेर खड़े हो जाते है और आक्रमणकारी का सामना करते हैं। एशिया में काफी संख्या में इनके ठिगने कद के जंगली संबंधी ५० से लेकर कई सौ तक के झुंडों में मिलते है। मनुष्य अपनी आवश्यकता के अनुसार उन्हे पालतू बनाता रहता है।
पालतू
बनाने का इतिहास¾
घोड़े
को पालतू बनाने
का वास्तविक इतिहास
अज्ञात है। कुछ लोगों
का मत है कि ७०००
वर्ष दक्षिणी रूस
के पास आर्यो
ने प्रथम बार घोड़े
को पाला। बहुत
से विज्ञानवेत्ताओं
और लेखकों
ने इसके आर्य इतिहास
को बिल्कुल गुप्त
रखा और इसके
पालतू होने
का स्थान दक्षिणी
पूर्वी एशिया में
कहा, परंतु वास्तविकता
यह है कि अनंत
काल पूर्व हमारे
आर्य पूर्वजों
ने ही घोड़े को
पालतू बनाया,
जो फिर एशिया
से यूरोप, मिस्र
और शनै:शनै:
अमरीका आदि देशों
में फैला। संसार
के इतिहास में
घोड़े पर लिखी
गई प्रथम पुस्तक
¢
शालिहोत्र¢
है, जिसे शालिहोत्र
ऋषि ने महाभारत
काल से भी बहुत
समय पूर्व लिखा
था। कहा जाता
है कि ¢
शालिहोत्र¢
द्वारा अश्वचिकित्सा
पर लिखत प्रथम
पुस्तक होने के
कारण प्राचीन
भारत में पशुचिकित्सा
विज्ञान (Vetrerinary Science)
को ¢
शालिहोत्रशास्त्र¢
नाम दिया गया।
महाभारत युद्ध
के समय राजा
नल और पांडवो
में नकुल अश्वविद्या
के प्रकांड पंडित
थे और उन्होने
भी शालिहोत्र
शास्त्र पर पुस्तकें
लिखी थी। शालिहोत्र
का वर्णन आज संसार
की अश्वचिकित्सा
विज्ञान पर लिखी
गई पुस्तकों में
दिया जाता है।
भारत में अनिश्चित
काल से देशी
अश्वचिकित्सक ¢
शालिहोत्री¢
कहा जाता है।