अवध उत्तर प्रदेश के एक भाग का नाम जो प्राचीन काल में कोशल कहलाता था। इसकी राजधानी अयोध्या थी (द्र. 'अयोध्या')। अवध शब्द अयोध्या से ही निकला है। अवध की राजधानी प्रांरभ में फैजाबाद थी किंतु बाद को लखनऊ उठ आई थी। अवध पर नवाबों का आधिपत्य था जो प्राय: स्वतंत्र थे, क्योंकि अवध के नवाब शिया मुसलमान थे अत: अवध में इसलाम के इस संप्रदाय को विशेष संरक्षण मिला। लखनऊ उर्दू कविता का भी प्रसिद्ध केंद्र रहा। दिल्ली केंद्र के नष्ट होने पर बहुत से दिल्ली के भी प्रसिद्ध उर्दू कवि लखनऊ वापस चले आए थे।
सन् १७६५ ई. में बक्सर की लड़ाई में अवध के नवाब हार गए, परंतु लार्ड क्लाइव ने अवध उनको लौटा दिया, केवल इलाहाबाद और कड़ा जिलों को क्लाइव ने मुगल सम्राट् शाहआलम को दे दिया। वारेन हेस्टिंग्ज़ ने पीछे नवाब की सहायता करके रुहेलखंड को भी अवध में सम्मिलित करा दिया और शाहआलम से अप्रसन्न होकर इलाहाबाद और कड़ा को अवध के नवाब के सुपुर्द कर दिया। १७७५ ई. में अंग्रेजों ने अवध के नवाब से बनारस का जिला ले लिया और १८०१ में रुहेलखंड ले लिया। इस प्रकार अवध कभी बड़ा, कभी छोटा होता रहा।
१८५६ में अंग्रेज़ों ने अवध को अपने अधिकार में कर लिया। १८५७ के विद्रोह में अवध अंग्रेजों के हाथ से निकल गया था परंतु डेढ़ वर्ष की लड़ाई में अंतिम विजय अंग्रेजों की हुई। १९०२ में आगरा और अवध के प्रांतों को एक में मिलाकर नया प्रांत बनाया गया जिसका नाम आगरा और अवध का 'संयुक्त प्रांत' रखा गया, लिसे संक्षेप में 'संयुक्त प्रांत' अथवा अंग्रेजी में केवल 'यू.पी.' कहा जाता था। इसी प्रांत का नामकरण उत्तर प्रदेश हो गया है जिसे अंग्रेजी में लिखे नाम के आदि अक्षरों के आधार पर अब भी 'यू.पी.' कहा जाता है। (द्र. 'उत्तर प्रदेश')
अवधिज्ञान जैनसंमत आत्ममात्र सापेक्ष प्रत्यक्ष ज्ञान का एक प्रकार अवधिज्ञान है। परमाणपर्यंरूपी पदार्थ इस ज्ञान का विषय है। इसका विपर्यय विभंगज्ञान है। इसकी लब्धि जन्म से ही नारकों और देवों को होती है। अतएव उनका अवधिज्ञान भवप्रत्यय और शेष पंचेंद्रियतिर्यच और मनुष्यों का क्षायोपशयिक अथवा गुण प्रत्यय है, अर्थात् तपस्या आदि गुणों के निमित्त से उन्हें प्राप्त होनेवाली यह एक ऋद्धि है। गणगार को उनके गुणों के अनुसार प्राप्त होनेवाले अवधिज्ञान के ये छह भेद हैं-आनुगामिक, अनानुगामिक, वर्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित।
सं.ग्रं.-नंदीसूत्र का हिंदी अनुवाद, सूत्र ६ से; तत्वार्थसूत्र, अ. १, सू. २१-२४।