अवंतिवर्मन् (ल. ८५५ ई-८८३) यह उत्पल राजकुल का पहला राजा जब कश्मीर की गद्दी पर बैठा तब कश्मीर गृहयुद्ध से लहूलुहान हो रहा था और उसपर दरिद्रता की छाया डोल रही थी। करकाटक राजाओं की कमजोरी से गांवों के डायर जमींदार सशक्त हो गए थे और उनके कारण प्रजा तबाह थी। न जीवन की रक्षा हो पाती थी, न धन की। देश की उपज इतनी कम हो गई थी कि अन्न सोने के भाव बिकने लगा था। अवंतिवर्मन् ने देश में शांति स्थापित करने का सफल प्रयत्न किया। डायरों को दबाकर उसने अपने मंत्री सुय्य (सूर्य) की सहायता से देश की आर्थिक स्थिति संभाली, नहरें निकलवाकर सिंचाई का प्रबंध किया और झेलम की धारा बदल दी। एक खिरनी चावल का मूल्य, जो पहले २०० दीनार हुआ करता था, अब ३६ दीनार का हो गया। अवंतिवर्मन् ने अवंतिपुर नाम का नगर बसाया जो वंतपोर के नाम से आज भी मौजूद है। उसने अनेक मंदिर बनवाकर उन्हें देवोत्तर संपत्ति से समृद्ध किया। वह पंडितों का आदर करता था और उसी की संरक्षा में प्रसिद्ध साहित्यकार आलोचक आनंदवर्धन ने अपना 'ध्वन्यालोक' रचा।
(ओं.ना.उ.)