अल्लाह इस शब्द का मूल अरबी भाषा का 'अल् इलाह' है। कुछ लोगों का विचार है कि इसका मूल आरामी भाषा का 'इलाहा' है। इसलाम से पांच शताब्दी पहले की सफा की इमारतों पर यह शब्द 'हल्लाह' के रूप में खुदा हुआ था। छह शताब्दी पहले की ईसाइयों की इमारतों पर भी यह शब्द खुदा हुआ मिलता है।

इसलाम से पहले भी अरब में लोग इस शब्द से परिचित थे। मक्का की मूतियों में एक अल्लाह की भी थी। यह मूर्ति कुरेश कबीले को विशेष मान्य थी। मूर्तियों में इसकी प्रतिष्ठा सबसे अधिक थी और सृष्टिकार्य इसी से संबंधित माना जाता था। परंतु अरबों का दृष्टिकोण इसके संबंध में निश्चित नहीं था और इसकी शक्तियों तथा कार्यों का उन्हें स्पष्ट ज्ञान न था।

इसलाम के उदय के अनंतर इसके अर्थ में बड़ा परिवर्तन हुआ। कुरान के जिस अंश का सबसे पहले इलहाम हुआ उसमें अल्लाह के गुण सृष्टि करना तथा शिक्षा देना बताए गए हैं। कुरान में अल्लाह के और भी बहुत से गुण वर्णित हैं, जैसे दया, न्याय, पोषण, शासन आदि। इसलाम ने सबसे अधिक बल अल्लाह की एकता पर दिया है अर्थात् उसके कामों तथा गुणों में कोई उसका साझीदार नहीं है। यह इसलाम का मौलिक सिद्धांत है, जिसे स्वीकार किए बिना कोई मुसलमान नहीं हो सकता। (आर.आर.शे.)