अलीवर्दी खाँ बंगाल में औरंगजेब के नियुक्त किए हुए हाकिम मुर्शिद कुली खाँ की मृत्यु के बाद १७२७ ई. में उनके दामाद शुजाउद्दीन खाँ हाकिम नियुक्त किए गए थे। अलीवर्दी खाँ उनके नायब नाज़िम थे। मिर्जा मुहम्मद के बेटे अलीवर्दी का असली नाम मिर्जा मुहम्मद अली था, बाद को 'अलीवर्दी खाँ और 'महावत जंग' के खिताब देहली से मिले। शुजाउद्दीन खाँ की मृत्यु के बाद उनके बेटे सर्फराज खाँ हाकिम हुए लेकिन अलीवर्दी खाँ ने उनके भाई के साथ मिलकर साजिश की जिसमें आलमचंदऔर सेठ फतेहचंद भी शरीक थे। १० अप्रैल, सन् १७४० ई. को अलीवर्दी ने बिहार की तरफ से हमला किया और गीरिया नामक स्थान पर सर्फराज खाँ को मार दिया। फिर वह बंगाल के हाकिम बन बैठे और देहली के शाहनशाह से अपपनी हुकूमत की सनद मनवा ली। सन् १७५१ ई. में उन्होंने मरहठों से एक समझौता किया, क्योंकि एक तरफ उन्हें बंगाल पर मरहठों के हमलों का खतरा था और दूसरी तरफ उनके अपने पठान सरदार बगावत करने पर उतारू रहते थे। इस समझौते में उन्होंने मरहठों को बारह लाख रुपया सालाना चौथ के रूप में देना मंजूर किया। उड़ीसा के एक हिस्से का पूरा लगान इसमें जाता था। लेकिन इस बात का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता कि अलीवर्दी खाँ ने देहली को कोई खिराज दिया हो या अंग्रेजों को कोई टैक्स अदा किया हो। सन् १७५६ ई. में ८० साल की उम्र में मुर्शिदाबाद में अलीवार्दी खाँ की मृत्यु हुई और वहीं खुशबाद के एक कोने में अपनी मां के कफन के पास दफनाए गए। अलीवर्दी खाँ अत्यंत बहादुर सिपाही और बहुत समझदार हाकिम थे।
(र.ज़.)