अलीगढ़ उत्तर प्रदेश का एक जिला है और इसी नाम का एक प्रसिद्ध नगर भी उस जिले में है।
अलीगढ (जिला)-स्थिति : २७° २९¢ से २८¢ ११¢अ.उ., तथा ७७° २९¢ से ७८° ३८¢ पू.दे.; क्षेत्रफल : ५,०२४ वर्ग कि.मी.; ।
अलीगढ़ उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में गंगा यमुना के दोआबे में स्थित आगरा कमिश्नरी का एक जिला है। इस जिले की पूर्वोत्तर सीमा गंगा नदी से तथा पश्चिमोत्तर सीमा यमुना नदी से बनती है। इनके अतिरिक्त इस जिले में दो और मुख्य नदियाँ हैं---प्रथम काली नदी जो पूर्वी भाग में तथा द्वितीय करवान नदी जो पश्चिमी भाग में बहती है। दोआबे के अधिकांश में दोमट मिट्टी है जो बहुत उपजाऊ है। गंगा तथा यमुना के निकट का भाग नीचा है और खादर कहलाता है। गंगा खादर उपजाऊ है, परंतु यमुना खादर की मिट्टी कड़ी और कृषि के लिए अयोग्य है। गेहूँ, चना, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास तथा थोड़ा बहुत गन्ना यहाँ की मुख्य फसलें हैं। इस जिले में कंकड़ भी निकलता है, जो सड़कें बनाने के काम आता है। इस ज़िले में कोल (अलीगढ़), खैर, हाथरस, सिकंदराराऊ, इगलास और अतरौली तहसीलें हैं। इस ज़िले की ८१ प्रतिशत जनता ग्रामीण है।
अलीगढ़ (नगर)-स्थिति : २७° ५४¢ उ.अ. तथा ७८° ६¢ पू.दे.; ।
अलीगढ़ एक प्राचीन नगर है, जिसका पुराना नाम कोयल अथवा कोल है। ११९४ ई. में कुतुबुद्दीन ने इस नगर को अपने अधिकार में कर लिया। १६वीं शताब्दी में इसका नाम मुहम्मदगढ़ तथा १७१७ ई. में साबितगढ़ हो गया। लगभग १७५७ ई. में जाटों ने इसका नाम रामगढ़ रखा। तत्पश्चात् नजफ़ खां ने इसका वर्तमान नाम अलीगढ़ रखा। ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित अलीगढ़ का दुर्ग १७५९ ई. में सिंधिया का प्रमुख गढ़ बन गया। पीछे, १८०३ में, लार्ड लेक की सेना ने इसपर अधिकार कर लिया। इस नगर की आर्थिक तथा सामाजिक दशा पर मुस्लिम संस्कृति का यथेष्ट प्रभाव है। प्राचीन रामगढ़ दुर्ग के मध्य में जामा मस्जिद की विशाल इमारत है, जो अधिक ऊँचाई होने के कारण दूर से दिखाई देती है। इस प्राचीन बस्ती से आबादी उत्तर तथा पूर्व की ओर बढ़ गई है। अधिकारियों का महाल (सिविल स्टेशन) उत्तर की ओर है और वहीं पर अलीगढ़ विश्वविद्यालय स्थित है। १८७५ में सर सैयद अहमद खाँ ने इसकी नींव एक विद्यालय के रूप में डाली, जो १९२० में विकसित होकर विश्वविद्यालय बन गया।
अलीगढ़ उत्तर रेलवे का एक प्रमुख स्टेशन है जो कलकत्ते से ८७६ मील पर, बंबई से ९०४ मील पर और दिल्ली से केवल ९५ मील पर है। अलीगढ़ रुई तथा अनाज की बड़ी है और प्रमुख व्यापारिक केंद्र हैं। ताले तथा पीतल का इमारती सामान बनाना इस नगर का मुख्य उद्योग है। इसके अतिरिक्त यहाँ पर सरसों का तेल निकालने, रुई की गाँठ बनाने, बर्फ बनाने तथा नाम के इस्पाती ठप्पे (डाई) और इसी प्रकार की बहुत सी धातु की छोटी मोटी वस्तुएँ बनाने के उद्योग उन्नति पर हैं। शरदऋतु की प्रदर्शनी के लिए एक विशाल मैदान में पक्की दुकानें बनी हुई हैं। इस प्रदर्शनी में दूर-दूर के व्यापारी आते हैं। (आ.स्वा.जौ.)