अलारिक (ल.३७०-४१० ई.) पश्चिमी गोथों का प्रसिद्ध सरदार विजेता जो ३७० ई. के लगभग दानूब के मुहाने के एक द्वीप में तब उत्पन्न हुआ जब उसकी जाति के लोग हूणों से भागकर उसी द्वीप में छिपे हुए थे।
युवावस्था में अलारिक रोमन सम्राट् की वीज़ीगोथ सेना का सेनापति नियत हुआ और एक दिन उस सेना ने उसकी शक्ति और शैर्य से चमत्कृत होकर उसे अपना राजा घोषित कर दिया। बस तभी से अलारिक का दिग्विजयी जीवन शुरू हुआ। पहले उसने पूर्वी रोमन साम्राज्य पर आक्रमण किया। कुस्तुंतुनिया से दक्षिण चल उसने प्राय: समूचे ग्रीस को रौंद डाला, फिर स्तिलिचो से हार, लूट का माल लिए वह एपिरस जा पहुँचा। रोम के सम्राट् ने उसकी विजयों से डरकर उसे इलिरिकम का राज्य सौंप दिया। ४०० ई. के लगभग उसने इटली आक्रमण किया और साल भर के भीतर वह उत्तरी इटली का स्वामी हो गया। पर अगले साल सम्राट् से धन लेकर वह लौट गया।
४०८ ई. में अलारकि इटली लौटा और बढ़ता हुआ सीधा रोम की प्राचीरों के सामने जा खड़ा हुआ। उसने रोम का ऐसा सफल घेरा डाला कि रोम के सम्राट् सिनेट और नागरिक त्राहि-त्राहि कर उठे और उन्होंने अलारिक से प्राणदान का मूल्य पूछा। अलारिक ने अपार धन, बहुमूल्य वस्तुएँ और प्राय: साढ़े सैंतीस मन भारतीय काली मिर्च माँगी। यह सब मिल जाने के बाद उसने रोम को प्राणदान दिया । यह रोम पर उसका पहला घेरा था। जाते-जाते उसने सम्राट् से दानूब नद और वेनिस की खाड़ी के बीच २०० मील लंबी और १५० मील चौड़ी भूमि का राज्य माँगा। उसके न मिलने पर उसने अगले साल रोम पर दूसरा घेरा डाला। उससे डरकर रोमन सिनेट ने अलारिक की बात मानकर उसके विश्वासपात्र एक ग्रीक को भी राजदंड दे दिया और इस प्रकार रोम के दो दो सम्राट् हो गए। इसका परिणाम यह हुआ कि पूर्वी और पश्चिमी दोनों सम्राटों ने अलारिक पर दोहरी चोट की और अफ्रीका से इटली को अन्न जाना बंद कर दिया। इसके उत्तर में अलारिक ने रोम की प्राचीरें तोड़ में नगर प्रवेश किया। राजधानी का सर्वथा विनाश तो नहीं हुआ पर उसकी हानि अत्यधिक हुई। रोम ने हानिबल के बाद पहली विदेशी विजेता के प्रति आत्मसमर्पण किया था।
अलारिक ने अब रोम के दक्षिण हो अफ्रीका की राह ली जिससे वह इटली के खलिहान मिस्र पर अधिकार कर ले। पर तूफान ने उसके बेड़े को नष्ट कर दिया। अलारिक ज्वर से मरा और उसका शव बुसेंतों नदी की धारा हटाकर उसकी तलहटी में गाड़ दिया गया। शव और धन वहाँ गाड़ दिए जाने के बाद नदी की धारा पूर्ववत् कर दी गई और उस कार्य में भाग लेनेवाले मजदूरों का वध कर दिया गया और शव और संपत्ति का सुराग न लगे। (भ.अ.उ.)