अलर्क (१) काशीनरेश दिवोदास का प्रपौत्र। इसके पिता के तीन नाम मिलते हैं वत्स, प्रतर्दन तथा ऋतध्वज । विष्णुपुराण (४.९) के अनुसार दिवोदस प्यार से प्रतर्दन को ही 'वत्स' नाम से संबोधित करता था और सत्यनिष्ठ होने के कारण उसका नाम ऋतध्वज पड़ा। गरूडपुराण (१३९) में दिवोदास का पुत्र प्रतर्दन तथा प्रतर्दन का पुत्र ऋतध्वज है। हरिवंश (१,२९) में प्रतर्दन का पुत्र वत्स और वत्स का पुत्र अलर्क है जिससे काशी में ६६ हजार वर्ष तक राज्य किया। अलर्क इतना सत्यनिष्ठ और ब्राह्मणों का उपकर्ता था कि एक बार एक अंधे ब्राह्मण की याचना पर इसने अपनी आँखें निकालकर उसे दे दीं (वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड १२.४३)। लोपामुद्रा की कृपा से यह सदा तरुण रहा और इसे दीर्घायु मिली। वायुपुराण (९२.६८) के अनुसार निकुंभ के शाप से निर्जन हुई वाराणसी का इसने क्षेमक को मारकर उद्धार किया और उसे पुन: बसाया। धनुर्बल से अलर्क ने समस्त पृथ्वी जीती ओर अंत में सूक्ष्म ब्रह्म की आराधना में लग गया। इसके पुत्र का नाम संतति था।

(२) शुत्रजित्तनय ऋतुध्वज और मदालसा से उत्पन्न एक पुत्र का नाम भी अलर्क था। इसके बड़े भाई सुबाहु ने काशीनरेश की सहायता स इसपर आक्रमण कर दिया। मदालसा और दत्तात्रेय के परामर्श पर इसने अपना राज्य सुबाहु को दे दिया और स्वयं त्यागी बन गया। (कं.चं.श.)