अलबरूनी अबू-रिहान-मुहम्मद बिन अहमद अलबरूनी ख्वारिज्मी का जन्म हिजरी सन् ३६० (९७०-७१ ई.) में हुआ था। 'तवारीख़ हुक्मा' के लेखक शहरजूरी, जिसने इनकी जीवनी लिखी है के मतानुसार यह सिंध के बिरून नामक स्थान में पैदा हुए थे और इसी से इनका नाम बरूनी या बिरूनी पड़ा। अलबरूनी ने स्वयं अपने जन्मस्थान का कहीं उल्लेख नहीं किया है। 'किताबुल अन्सान' के लेखक समानी का, जिसने अपना ग्रंथ हिजरी सन् ५६२ (११६६ ई.) लिखा, कहना है कि फारसी शब्द 'बिरूनी' से बाहर पैदा होनेवाले का संकेत होता है। इस अरबी विद्वान के प्रारंभिक जीवनकाल का कहीं विवरण नहीं मिलता। किंतु शमसुद्दीन मोहम्मद शहरजरी का कथन है कि कभी भी उनके हाथ से न लेखनी अलग हुई, न उनके नेत्र पुस्तक से हटे। केवल एक ही दो बार वे कार्य से वर्ष भर में अवकाश लेते थे। उनका ध्यान हर समय पुस्तक पढ़ने पर लगा रहता था। अबुलुफज़ल बैहाकी का , जो बरूनी की मृत्यु के पचास वर्ष वाद हुआ, कहना है कि अपने समय के वे अद्वितीय विद्वान थे और दर्शन, गणित तथा ज्यामिति में पारंगत थे। उनकी नियुक्ति गज़नी के मुहम्मद बिन सुबुक्तगीन के यहाँ हुई और उन्हें भारत आने और यहाँ बहुत काल तक रहने का अवसर मिला। इसी बीच बिरूनी ने यहाँ पर बहुत काल तक रहने का अवसर मिला। इसी बीच बिरूनी ने यहाँ पर संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति का ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने यहाँ के कई प्रांतों का भ्रमण किया और इसमें वे प्रमुख व्यक्तियों के संपर्क में आए। उन्होंने भारतीय दर्शन और धर्म की पुस्तकों का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। साथ ही कला और विज्ञान के क्षेत्रों में भी प्रवेश किया। शेख रैस जबु-अली इब्न सिना (अवीनेत्रा) की पुस्तक 'बातकल' का इन्होंने अरबी में अनुवाद किया। गणित और ज्यामिति की अपनी पुस्तक 'कानून मसूदी' में इन्होंने उपर्युक्त ग्रंथ से बहुत कुछ उद्धत किया। अंकों, युग और संवत् के विषय में भारतीय विद्वानों ने जो कुछ भी लिखा है उसका उल्लेख अलबरूनी ने 'बातकल' के अनुवाद में किया है। अलबरूनी ओर इब्नसिना का बहुत विषयों में मतभेद था, पर इब्नसिना ने कभी भी बरूनी से वादविवाद नहीं किया। बरूनी भारत में लगभग ४० वर्ष रहे पर इनके भारतीय भौगोलिक ज्ञान में त्रुटियां मिलती हैं। हिजरी सन् ४३० (१०३८-३९) में इनकी मृत्यु हो गई।
इन्होंने बहुत से ग्रंथ लिखे जिनमें के कुछ का यूनानी भाषा में अनुवाद किया। कहा जाता है, इनके लिखे ग्रंथों से एक ऊंट का बोझा हो सकता है। मुख्यतया इनके नक्षत्रों की तालिका, बहुमूल्य पत्थरोंका विवरण, ओषधि पदार्थ, ज्योतिष , ऐतिहासिक तालिका ओर कझूल-मसूदी नामक नक्षत्रों ओर भूगोल से संबंधित ग्रंथ हैं। अंतिम ग्रंथ के लिए सुल्तान मसूद ने एक हाथी के बोझ भर चांदी के टुकड़े इन्हें भेंट में दिए पर इन्होंने उन्हें लौटा दिया।
सं.ग्रं.-अलबरूनी; इलियट ओर डाउसन : हिस्ट्री ऑव इंडिया भाग २; संतराम: अलबरूनी : की भारतयात्रा। (बै.पु.)