अलकतरा लकड़ी, पत्थर का कोयला तथा कच्चे खनिज तेल (पेट्रोलियम) आदि कार्बनिक पदार्थों का जब शुष्क आसन (ड्राइ डिस्टिलेशन) किया जाता है तो कई प्रकार के पदार्थ प्राप्त होते हैं। इन्हीं पदार्थों में एक गहरे काले रंग का गाढ़ा द्रव पदार्थ भी होता है जिसे अलकतरा (अंगारराल, विराल, अंगेजी में टार अथवा कोलटार) कहते हैं। उदाहरणार्थ, पत्थर के कोयले के शुष्क आसवन में निम्नांकिंत पदार्थ प्राप्त होते हैं :

(१) कोयले की गैस (१७%)-इसमें कई गैसें मिश्रित रहती हैं जिनमें प्रमुख हाइड्रोजन (५२%), मेथेन (३२%), कार्बन मोनोआक्साइड (६%), नाइट्रोजन (४%), कार्बन-डाइ-आक्साइड (२%) तथा एथिलीन और अन्य ओलीफीन (४%) हैं। इनके अतिरिक्त बेंजीन तथा अन्य ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन के वाष्प भी इसमें रहते हैं। इसका मुख्य उपयोग ईधंन के रूप में होता है।

(२) अमोनिया विलयन (८%)-इससे अमोनिया प्राप्त की जाती है।

(३) अलकतरा (५%)।

(४) कोक (७०%)-यह भभके (रिटॉर्ट) में बचा ठोस पदार्थ है । इसका उपयोग ईधंन के रूप में तथा लोहे के कारखानों में अवकारक (रिड्यूसिंग एजेंट) के रूप में होता है।

आजकल अधिक अलकतरा कोयले से ही प्राप्त होता है क्योंकि कोयले की गैस तथा कोक प्राप्त करने के लिए कोयले का शुष्क आसवन अधिक परिमाण में किया जाता है। लंदन, न्यूयार्क, बंबई, कलकत्ता आदि शहरों में घरों में ईधंन के रूप में प्रयुक्त होने के लिए कोयले की गैस का उत्पादन बहुत होता है, और फलस्वरूप बड़ी मात्रा में प्राप्त होता है।

कोयले की गैस प्राप्त करने लिए कोयले का बृहत् परिमाण में शुष्क आसवन सर्वप्रथम लंदन में १८ वीं शताब्दी के अंत में आरंभ हुआ। धीरे-धीरे कोयले की गैस की माँग बढ़ती गई और फलस्वरूप उसका उत्पादन भी बढ़ता गया और उसी के अनुसार अलकतरे की मात्रा भी बढ़ती गई। आरंभ में अलकतरे का कोई उपयोग ज्ञात नहीं था और बेकार पदार्थ समझकर इसे फेंक दिया जाता था। लगभग सन् १८५० से अलकतरे का उपयोग विभिन्न कार्यों में होने लगा। आरंभ में अलकतरे का उपयोग लकड़ी की रक्षा करने, लकड़ी तथा पत्थर पर काला रंग चढ़ाने तथा काजल (लैंप ब्लैक) बनाने में होता था। आजकल कलकतरा विभिन्न ऐरोमैटिक पदार्थों की प्राप्ति का एक मूल्यवान् स्रोत है।

गुण-अलकतरा गहरे काले रंग का एक गाढ़ा द्रव है और इसमें एक विशेष प्रकार की तीव्र गंध होती है। अलकतरे में अनेक प्रकार के पदार्थ विद्यमान रहते हैं। लगभग २०० विभिन्न रासायनिक कार्बनिक यौगिक अब तक इसमें पहचाने जा चुके हैं। अलकतरे में विद्यमान सब पदार्थों को उनकी रासायनिक प्रतिक्रिया के आधार पर तीन प्रकारों में बांटा जाता है--उदासीन, आम्लिक तथा भास्मिक। उदासीन पदार्थों में ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन मुख्य हैं। आम्लिक पदार्थों में फीनोल (कार्बोलिक अम्ल) तथा क्रिसोल हैं। भास्मिक पदार्थों में मुख्य पिरीडीन और कुनोलीन हैं। अलकतरे में साधारणत: दो से पाँच प्रतिशत तक पानी भी रहता है।

अलकतरे से प्राप्त होनेवाले कुछ मुख्य पदार्थों की सूची नीचे दी जाती है:

हाइड्रोकार्बन : बेंजीन, डाइ-फिनाइल, फिनीथ्रैान, टालुईन, फ्लोरीन, ऐंथ्रासीन, आर्थो, मेटा और पैरा ज़ाइलीन, पैफ्थलीन, क्राइसीन, इंडीन, मेथिल नैफ्थलीन।

नाइट्रोजनवाले पदार्थ : पिरीडीन, इंडोल, पिकोलीन, ऐक्रीडीन, कुनोलीन, कार्बोजोल, आइसो-कुनोलीन।

आक्सीजानवाले पदार्थ : फीनोल, नैफ्थाल, क्रिसोल, डाइ-फिनाइलीन आक्साइड।

अलकतरे का आसवन : अलकतरे से विभिझ पदार्थ प्रभाजित आसवन (फ्रैक्शनल डिस्टिलेशन) द्वारा प्राप्त किए जाते हैं। निर्जलीकरण करने के बाद प्रभाजित आसवन द्वारा पहले कुछ मुख्य अंश पृथक् किए जाते हैं और फिर प्रत्येक अंश से रासायनिक विधि द्वारा, अथवा पुन: प्रभाजित आसवन द्वारा पृथक्-पृथक् उपयोगी पदार्थ प्राप्त किए जाते हैं।

आसवन के लिए मुख्यत: दो प्रकार के उपकरण (यंत्र) उपयोग में आते हैं। एक प्रकार में अलकतरे की एक निश्चित मात्रा उपकरण में ली जाती है और जब इसका आसवन समाप्त हो जाता है तो उपकरण को साफ कर पुन: नई मात्रा लेकर आसवन आरंभ किया जाता है। दूसरे प्रकार में आसवनक्रिया को बिना रोके अलकतरे को बीच-बीच में उपकरण में डालते रहने का प्रबंध रहता है और इस प्रकार आसवन बराबर होता रहता है। आसवन की विधि तथा उपकरण के प्रकार के अनुसार अलकतरे से प्राप्त होनेवाले पदार्थों के स्वभाव तथा मात्रा में अंतर होता है।

संरचना : साधारण ताप पर अंगारराल (अलकतरा) श्यान (विस्कस) होता है और साधारणत: इसका आपेक्षिक भार जल से अधिक होता है। अलकतरा कार्बनिक यौगिकों, मुख्यत: हाइड्रोकार्बनों का अत्यंत जटिल मिश्रण होता है। जिन यौगिकों द्वारा अलकतरे का निर्माण होता है उनका विस्तार हल्के तैल के निर्माण में प्रयुक्त यौगिकों से लेकर डामर (पिच) के निर्माण में प्रयुक्त अत्याधिक जटिल पदार्थो तक होता है। अधिकांश अलकतरे में ठोस पदार्थ अपकीर्ण रहता है। अधिकतर यह कलिल (कोयॉयडल) रूप में होता है, पंरतु इसका विस्तार मोटे (स्थूल) कणों तक पाया जाता है। स्थूल कार्बनीय पदार्थ शायद वकभांड (भभका, रिटॉर्ट) से निकलनेवाली गैस के साथ आते हैं, परंतु कलिल भाग उच्च अणुभार युक्त जटिल हाइड्रोकर्बन होता है। ठोस पदार्थ को, जो बेंजोल में अविलेय होता है, 'मुक्त कार्बन' कहते हैं। कार्बनिक संघटकों के अतिरिक्त अलकतरे में एक प्रतिशत का कुछ भाग राख तथा कई प्रतिशत जल भी होता है।

अलकतरे की संरचना मुख्यत: कार्बनीकरण के ताप पर निर्भर रहती है, परंतु अंशों में इसपर कोकित कोयले की प्रकृति का भी प्रभाव पड़ता है। तापीय अलकतरे में अधिक भाग 'सुरभि यौगिकों' (ऐरोमैटिक कंपाउंड) यथा फीनोल, क्रीसोल, नैफ्थलीन, बेंजीन तथा इसके सजातीय एवं ऐं्थ्रोसीन का होता है। उच्चतापीय अलकतरा प्रारंभिक अलकतरे के अपदलन (क्रैंकिंग) से निर्मित किया जाता है जो स्वयं कोयले के विन्यास (कोल स्ट्रक्चर) का त्रोटन होने के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है। अलकतरे की प्रारंभिक संरचना उन कोयलों पर निर्भर रहती है जिनसे उसका उत्पादन होता है, परंतु अधिक गर्म करने के पश्चात् दोनों की भिझता समाप्त हो जाती है और अंतिम संरचना मुख्यत: विच्छेदन की स्थिति पर निर्भर रहती है। (सं.प्र.टं.)

निम्नताप कार्बनीकरण ऐसा अलकतरा उत्पन्न करता है जो कम परिवर्तित होता है और जिसमें क्रीसोल और जाइलेनोल, उच्चतर फीनोल और क्षारक, नैफ्थलीन के अतिरिक्त पराफिन तथा कुछ डाइहाइड्राक्सी फीनोल भी रहते हैं। इस अलकतरे की संरचना में उच्च ताप पर निर्मित अलकतरे की अपेक्षा विभेद अधिक होता है। इसका कारण प्रारंभिक यौगिकों की अपदलनांशता की भिन्नता है।

उच्चतापीय अलकतरा में कई सौ यौगिक होते हैं। इनमें से बहुत थोड़े से यौगिक ऐसे हैं जिन्हें पहचाना और अलग किया जा सका है। व्यावसायिक स्तर पर तो अपेक्षाकृत बहुत ही कम यौगिकों को निकाला जा सका है। अलकतरा से जो यौगिक निकाले जा सके हैं उनको तथा प्रत्येक के संकेंद्रण एवं प्रभाग को सारणी १ में दिखाया गया है:

सारणी १

व्यावहारिक दशा में साधारण अलकतरे से प्राप्य असतु तथा

उनसे व्युत्पन्न उत्पाद

(प्रतिशत मौलिक अलकतरे पर आधारित है)

अलकतरा

हल्का तैल २००°सें.(३९२°फा.) तक ५.० --- ---

बेंजीन --- ०.१ ---

टालुईन --- ०.२ ---

जाइलीन --- १.० ----

भारी विलायक नैफ्था --- १.५ ---

मध्य तैल, २००-२५०°सें. (३९२-४८२°फा.) १७.० --- ---

अलकतरा (टार)-अम्ल --- २.५ ---

फीनाल --- ---- ०.७

क्रीसोल --- --- १.१

जाइलेनाल --- --- ०.२

उच्चतर अलकतरा अम्ल --- --- ०.५

अलकतरा (टार)-भस्म --- २.० ---

पायरिडीन --- --- ०.१

भारी भस्म --- --- १.९

नैफ्थलीन --- १०.९ ---

अभिज्ञ --- १.७ ---

भारी तैल, २५०-३००° सें.(४८२-५७२°) ७.० --- ---

मेथिल नैफ्थलीन --- २.५ ---

डाइमेथिल नैफ्थलीन -- ३.४ ---

एसी नैफ्थलीन -- १.४ ---

अभिज्ञ -- १.० ---

ऐंथ्रा सीन तैल, ३००-३५०° से.

(५७२-६६२° फा.) ९.० --- ---

फ्लोरीन -- १.६ ---

फेनेन्थ्रोन -- ४.० ---

ऐंथ्रासीन -- १.१ ---

कारबेजोल -- १.१ ---

अभिज्ञ --- १.२ ---

डामर ६२.० --- ---

गैस --- २.० ---

भारी तैल -- २१.८ ---

रक्त मोम --- ७.० ---

कार्बन -- ३२.० ---

ऊपर यह कहा जा चुका है कि अलकतरे के गुण कार्बनीकरण की विधियों पर निर्भर रहते हैं। सारणी २ में विभिन्न कार्बनीकरण विधियों से प्राप्त अलकतरे के गुण अंकित हैं:

सारणी २

विभिन्न अलकतरों के गुण:

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अनुप्रस्थ वकभांड वोक कंदु उदग्र वकभांड निम्नताप कार्बनीकरण

(उच्चताप)

१५.५° सें. पर आपेक्षिक भार १.१६ १.१७ १.११ १.०३

आसवन, शुष्क डामर का भार,

प्रतिशत

२००° सें. (३९२° फा.) तक ५ २ ५ ९

२००°-२३०° सें. (४४६° फा.) ७ ३ ११ १६

२३०°-२७०° सें. (५१८° फा.) ११ ७ १४ १३

२७०°-३००° सें. (५७२° फा.) ४.५ ६ ७ ९

३००° मध्य डामर १२.५ ११ १२ १८

मध्य डामर ६० ७१ ५१ ३५

अशोधित डामर अम्ल, २००°-

२७०° सें.वाले प्रभाग में

प्रभाग का आयतन प्रतिशत २०-२५ २०-२५ २०-५० ३५-४०

शुष्क अलकतरे का आयतन

प्रतिशत ४-५ ४-५ ६-१२ ८-१०

नैप्थलीन, २००°-२७०°सें.

प्रभाग में शुष्क अलकतरे

का भार प्रति शत ४ ४-५ लेशमात्र शून्य

मुक्त कार्बन, भार प्रतिशत १५ १५ ४ १

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'उपजात प्रत्यादान उपकरण' (बाई-प्रॉक्ट रिकवरी ऐपरेटस) में विभिन्न स्थानों पर अवक्षिप्त अलकतरे के गुणों में बहुत अंतर होता है। जिन अलकतरों में उच्च-क्वथनांक यौगिक अधिक मात्रा में होते हैं वे 'संग्रहण नल' (कलेक्टिंग मेन) में एकत्र होते है। परंतु प्रारंभिक शीतक (प्राइमरी कूलर) से प्राप्त अलकतरे में अधिक अनुपात निम्न-क्वथनांक यौगिकों का होता है।

ऊपर यह कहा जा चुका है कि अलकतरे के आसवन से आजकल कई प्रकार के रासयानिक एवं रंजक पदार्थ तैयार किए जाते हैं। एक टन अलकतरे के आसवन से औसत मात्रा में निम्नलिखित विभिन्न पदार्थ प्राप्त होते हैं:

आसवन ताप सेंटीग्रेड

लघु तैल १२ गैलन १७०° सें. तक

कार्बोटिक तैल २० ,, १७०° सें. २३०° सें. तक

क्रियोसोट तेल १७ '' २३०° सें. २७०° सें. तक

ऐंथ्रासीन तैल ३८ ,, २७०° सें. ४००° सें. तक

डामर ११ हंड्रेडवेट अवशेष

उपर्युक्त पदार्थो के शोधन और रासायनिक उपचार के पश्चात निम्नलिखित शुद्ध की प्राप्ति होती है :

बेंजीन तथा टॉलुईन २५ पाउंड

फीनोल ११ ''

क्रीसोल ५० ''

नैफ्थलीन १८० ''

क्रिओसोट २०० ''

ऐंथ्रासीन ६ '

इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि अलकतरा ने केवल एक तरल ईधंन है, वरन् उससे नाना प्रकार के रासायनिक विस्फोटक पदार्थ, ओषधियाँं, सुदंर रंजक, संश्लिष्ट रबर, प्लास्टिक, मक्खन तथा अन्य कई वस्तुएँ बनाई जा रही हैं। वास्तव में यह एक बहुमूल्य निधि है जिसमें सहत्रों रत्न छिपे पड़े हैं।

सं.ग्रं.-नैशनल रिसर्च काउंसिल,, अमरीका (सभापति एच. एच. ल्व्रौाी): दि केमिस्ट्री ऑव कोल यूटिलाइज़ेशन, २ खंड (१९४५)।

(द. स्व.)