अरीठा यह वृक्ष लगभग भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके पत्ते गूलर के पत्तों से बड़े, छाल भूरी तथा फल गुच्छों में होते हैं। इसकी दो जातियाँ हैं। प्रथम जाति के वृक्ष के फलों को पानी में भिगोने और मथने से फेन उत्पन्न होता है और इससे सूती, ऊनी तथा रेशमी सब प्रकार के कपड़े तथा बाल धोए जा सकते हैं। आयुर्वेद के मत में यह फल त्रिदोषनाशक, गरम, भारी, गर्भपातक, वमनकारक, गर्भाशय को निश्चेष्ट करनेवाला तथा अनेक विषों का प्रभाव नष्ट करेनवाला है। संभवत: वमनकारक होने कारण ही यह विषनाशक भी है। वमन के लिए इसकी मात्रा दो से चार माशे तक बताई जाती है। फल के चूर्ण के गाढ़े घोल की बूंदोंको

नाक में डालने से अधकपारी, मिर्गी और वातोन्माद में लाभ होना बताया गया है। (भ.दा.व.)

दूसरे प्रकार के वृक्ष से प्राप्त बीजों से तेल निकाला जाता है, जो औषधि के काम आता है। इस वृक्ष से गोंद भी मिलता है।