अराल सागर पश्चिमी एशिया की एक झील अथवा अंतर्देशीय सागर है। इसका नामकरण खिरग़्ज़ाी शब्द अरालडेंगिज के आधार पर हुआ है, जिसका अर्थ है द्वीपों का सागर। विश्व के अंतर्देशीय सागरों में, क्षेत्रफल के अनुसार, इसका स्थान चौथा है। इसकी लंबाई लगभग २८० मील और चौड़ाई १३० मील है। इसकी औसत गहराई ५२ फुट है और अधिकतम गहराई पश्चिमी तट की समांतर द्रोणी में २२३ फुट है। इस सागर में जिंहुन अथवा आमू नदी (ऑक्सस) और सिंहुन अथवा सर नदी (याक्सार्टिज) गिरती हैं, जिनसे बड़ी मात्रा में अवसाद (सेंडिमेंट) का निक्षेप होता है। इस सागर के पूर्वी तट के समांतर अनेक छोटे-छोटे द्वीपपुंज विद्यमान हैं। आंधियों की बहुलता और सुरक्षित स्थानों की कमी के कारण अराल सागर में जलयातायात सुविधाजनक नहीं है। सागरपृष्ठ का शीतकालीन ताप लगभग ३२० फा. रहता है, यद्यपि अधिकांश तटीय भाग हिमाच्छादित हो जाता है। गर्मी में ताप लगभग ८०० फा. रहता है। सागरसमतल की घट-बढ़ महत्वपूर्ण है, परंतु ब्रीकनर के ३५ वर्षीय चक्र से इसका कोई संबंध नहीं है। यह प्राचीन धारणा कि यह सागर कभी-कभी लुप्त हो जाया करता है, पूर्णतया निराधार है। अराल सागर में मीठे पानीवाली मछलियाँ पाई जाती हैं। यहाँ मछली उद्योग कैस्पियन सागर की तुलना में कम महत्व का है। अराल सागर के तटवर्ती प्रदेश प्राय: निर्जन हैं। (रा.ना.मा.)