अरानी, जानोस (१८१७-१८८२) हंगरी के कवि। नागीज़ालोंता में अभिजात, पर गरीब परिवार में जन्म। पहले अध्यापक हुए। फिर यात्री-अभिनेता। तोल्दी नामक महाकाव्य से उन्होंने यश अर्जित किया। १८४८ में ज़ालोंता की जनता ने उन्हें हंगरी की लोकसभा के लिए अपना प्रतिनिधि चुना। अगले साल उन्होंने क्रांतिकारी सरकार की नौकरी कर ली जिसे सरकार के पतन पर छोड़कर उन्हें घर लौट जाना पड़ा। एक साल बाद हंगरी में भाषा और साहित्य के प्राध्यापक नियुक्त हुए।

अब उन्होंने अपने देश और जनता के दीन जीवन पर विचार करना शुरू किया। तत्काल उनकी कविताओं में पिछले राजनीतिक प्रयत्नों की असफलता के कारण देश के नेताओं और परिस्थितियों के प्रति व्यंग्यात्मक हास्यजनक धारा फूट पड़ी। इसी चितवृत्ति और व्यंग्यात्मक शैली में उन्होंने अपना 'बोलोंद इस्तोक' लिखा (१८५०)। अगले अनेक वर्ष उन्होंने हंगरी का अपना मगयार (जातीय) मधुर बैलेड लिखा। १८५८ में वे हंगरी की अकादमी के सदस्य चुने गए और दो साल बाद किस्फ़ालूदी सोसाइटी के संचालक। अरानी ने अपनी कविताओं द्वारा अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार जीते। उनका हंगरी के साहित्य, विशेषकर कविता के क्षेत्र में अपना स्थान है। उन्होंने उसे एक नई तथा राष्ट्रीय दिशा दी। कविता यथार्थ जीवन और प्रकृति के संपर्क में आई। साहित्य को परंपरा की भूमि पर रखते हुए भी उन्होंने उसे जनता के धरातल पर खींचा। मगयार कवियों में वे सर्वाधिक जनप्रिय और कलाप्राण हैं।