अरबी भाषा मुसलमानों के धर्मग्रंथ कुरान की भाषा अरबी है जो संसार की प्राचीन भाषाओं में से एक है। संसार में जहाँ कहीं भी मुसलमान रहते हैं वहाँ कछ-न-कुछ यह भाषा बोली और समझी जाती है। इस्लामी धर्मशास्त्र, दर्शन और विज्ञान की भाषा अरबी ही है। इतिहास के मध्य युग में अरब व्यापारी उस समय तक ज्ञात संसार के प्राय: सभी भागों में जाएा करते थे, अत: अरबी भाषा का बड़ा महत्व था। पश्चिमी एशिया के देशों में पेट्रोलियम बड़ी मात्रा में होने के कारण वर्तमान युग में भी अरबी भाषा का बड़ा महत्व है।
अरबी भाषा का जन्म सऊदी अरब के मैदान में हुआ। अरबी सामी भाषाओं के परिवार में हैं। यह भाषा बाबुली, इब्रानी (यहूदियों की भाषा), फीनीशियन, हब्शी (इथियोपियाई), आरामी, नबती, सबाई, और हिमयरी भाषाओं से मिलती-जुलती है।
अरबी का प्रारंभिक रूप हमें प्राक् इस्लामकालीन कविताओं में मिलता है। इसके बाद मुसलमानों की धर्मपुस्तक कुरान अरबी भाषा में मिलती है, जैसा ऊपर कहा जा चुका है। इस समय से अरबी की उन्नति का दूसरा अध्याय प्रारंभ होता है। मुसलमानों ने कुरान का गहरा अध्ययन किया और वे जहाँ गए और जिन देशों में उन लोगों ने विजय की वहाँ-वहाँ अरबी का बड़ा प्रचार हुआ। कुछ देशों में तो अरबी मातृभाषा हो गई, जैसे मिस्र के निवासी अपनी प्राचीन भाषा कुप्ती को छोड़कर अरबी का प्रयोग मातृभाषा के समान करने लगे। प्राचीन फारस में अरबी सभ्य लोगों की भाषा मानी जाती थी।
आधुनिक अरबी का विकास नैपोलियन की विजयों के पश्चात् प्रारंभ हुआ। नैपोलियन की विजयों के कारण अरब लोग यूरोप के संपर्क में विशेष रूप से आए। फलत: अरबी भाषा में नए शब्दों और विचारों का समावेश हुआ और अरबी भाषा उस रूप में आई जिस रूप में हम आज उसे पाते हैं।
अरबी भाषा के तीन भाग किए जा सकते हैं :
१. प्राचीन अरबी
२. साहित्यिक अरबी
३. बोलचाल की अरबी; इसके दो रूप हैं : १. पूर्वी और २. पश्चिमी।
अपने प्रसार के कारण रोमन लिपि के पश्चात् अरबी लिपि का ही स्थान है। पहले अरबी भाषा आरामी अक्षरों में लिखी जाती थी, परंतु अब अरबी गोल अक्षरोंवाली नसखी लिपि में लिखी जाती है। इस लिपि में २८ अक्षर होते हैं जिनमें केवल तीन स्वर हैं तथा शेष व्यंजन हैं। यह सामी अक्षर कहलाते हैं और इनका संबंध उत्तरी अफ्रीका और मध्य एशिया की सभी भाषाओं से है। कुछ लोगों के अनुसार अरबी अक्षर कूफिक लिपि के ही विकसित रूप हैं। ऐसा कहा जाता है कि छठी शताब्दी तक इस लिपि को जाननेवाले मक्के में केवल १७ ही मनुष्य थे जिससे ज्ञात होता है कि उनमें पढ़ने-लिखने का रिवाज कम था। उमय्यूद खलीफाओं (६६१-७४९) के समय में हज्जाज बिन यूसुफ के प्रथप्रदर्शन में अक्षरों पर स्वर तथा बिंदियां लगाने की विधि निकाली गई और शीघ्र ही इराक में बसरा और कूफा अरबी भाषा और साहित्य के केंद्र हो गए। वहाँ अरबी व्याकरण की बहुत उन्नति और प्रसार हुआ तथा बड़े-बड़े विद्वान् हुए।
सभी सामी भाषाओं की भांति अरबी भाषा की भी तीन विशेषताएँ हैं। अरबी भाषा का स्वरविधान बड़ा जटिल है और इसमें यौगिक शब्द नहीं होते। इसमें प्रत्येक शब्द मूलत: तीन व्यंजनों का बना होता है। स्वरों के हेर फेर तथा एक आध व्यंजन और जोड़कर तरह-तरह के शब्द बना लिए जाते हैं। उदाहरण के लिए,क+त+ब, व्यंजनों से विभिन्न प्रकार के शब्द पुल्लिंग, स्त्रीलिंग, एकवचन, बहुवचन, भूत, भविष्य काल की क्रियाएँ आदि) बना लेते हैं। जैसे कतबा (उसने लिखा), कतबू (उन्होंने लिखा), कातिब (लेखक), मकतूब (लेख या पत्र), मकतब (लिखने का स्थान आदि)। इस प्रकार हम देखते हैं कि अरबी भाषा में स्वरों का बड़ा महत्व है और असंख्य शब्द ऐसे हैं जिनका स्वर-विधान बिलकुल एक-सा है। इस कारण अरबी भाषा के गद्य और पद्य दोनों में यमक तथा अनुप्रास का बड़ा महत्व है।
स्वरों के हेर-फेर से शब्दों के रूपपरिवर्तन तथा साथ-साथ अर्थपरिवर्तन के कारण अरबी में विचारों को बहुत संक्षेप से व्यक्त किया जाता है। कदाचित् ही कोई कहावत ऐसी होगी जिसमें चार शब्द से अधिक हों। अरबी भाषा में पर्यायवाची शब्दों का भी बड़ा बाहुल्य है।
अरबी की क्रियाओं का काल उतना विस्तृत नहीं है जितना कि अन्य आर्य भाषाओं की क्रियाओं का। 'यकतुबो' के अर्थ न केवल 'वह लिखता है', 'वह लिखेगा', 'वह लिख रहा है', वरन 'वह लिख सकता है', 'वह लिख सकेगा', आदि भी है। शब्द का ठीक-ठीक अर्थ प्रंसग द्वारा ज्ञात होता है।
अरबी में संस्कृत के ही समान संज्ञा और क्रिया में भी द्विवचन होता है। विशेषणों में स्त्रीलिंग तथा पुल्लिंग एवं द्विवचन के रूप होते हैं। परंतु इस भाषा में नपुंसक लिंग नहीं होता।
सं.ग्रं.-इंसाइक्लोपीडिया ऑव इस्लाम, अ. प्रथम संस्करण, १९१३, लंदन, संपादक होत्समा, आरनल्ट, बैसे तथा हाटैमैन, भाग (१), लेख 'अरेबिया' पृष्ठ ३६७-४१५। ब. द्वितीय नवीन संस्करण, १९५७, लंदन, संपादक लुई, पेला तथा साक्ट, पृष्ठ ५६१-५७६; लेख 'अरेबिया', भाग (१) फ़ेसीकूल (९); २. अरेबिक लिटरेचर, लेखक गिब, एच. ए. आर., संस्करण १९२६, लंदन; ३. ए लिटरेरी हिस्ट्री ऑव दि अरब्स, लेखक निकलसन, आर. ए. संस्करण १९३०, कैंब्रिज। ४. हिस्ट्री ऑव दि अरब्स, लेखक हिट्टी, पी. के. संस्करण १९५३, लंदन। (श.ब.स.)