अम्रर बिन आस अल सहमी इस्लाम के पैगंबर के सहाबी। इस्लाम के इतिहास में इनका बहुत बड़ा भाग है। उनके धर्म का सिलसिला ६२९-३० ई. में इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेने से आरंभ होता है। जब वे अभी केवल ९-१० वर्ष की अवस्था के थे, उनको महत्व का राजनीतिज्ञ माना गया है।
अम्रर को हजरत मोहम्मद ने उस्मान भेजा जहाँ के राजाओं ने उनके प्रभाव से इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया। वह उम्मान में थे, जब पैगंबर की मृत्यु का समाचार मिला। वे मदीने लौट आए, पर वहाँ वे ज्यादा दिन न ठहर सके क्योंकि हजरत अबू बकर ने शाम और फिलिस्तीन देशों की सेना के साथ उन्हें भेज दिया। वह यारमुक्के के युद्ध में और दमिश्क की विजय के समय भी उपस्थित थे। इस्लामी इतिहास में उनकी सबसे बड़ी विजय मिस्र में हुई। कहा जाता है, मिस्र को उन्होंने अपनी जिम्मेदारी पर जीता था। मिस्र को उन्होंने जीता ही नहीं, बल्कि वहाँ का शासनप्रबंध भी ठीक किया। उन्होंने न्याय और कर विभाग की नीति में सुधार किया और फुस्तात की नींव डाली जो १०वीं सदी में अलकाहिरा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हजरत उस्मान की मृत्यु के बाद वे हजरत अली और मोआविया के झगड़े में पंच बनाए गए। जीवन भर वे मिस्र के राज्यपाल रहे। ६६१ ई. में एक व्यक्ति ने उनकी हत्या के लिए उनपर वार किया। उसके खंजर से वे बच गए और उनकी जगह दूसरा व्यक्ति मारा गया। (मो.अ.अं.)