अम्मन, मीर इनके पुरखे हुमायूँ के समय से मुगल दरबार में थे। सूरजमल जाट ने जब दिल्ली की तबाही की तो वे कलकत्ता चले गए, यों खास रहनेवाले दिल्ली के थे। मीर अम्मन ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम कालेज में सन् १८०१ ई. में फारसी से 'चहार दर्वेश' का सलीस उर्दू में अनुवाद किया। इनको फारसी मिली हुई मुश्किल उर्दू की जगह सलीस उर्दू लिखने का बानी कहा जाता है१ चहार दर्वेश में जबान के बारे में इन्होंने लिखा है, ''जो शख्स सब आफतें सहकर दिल्ली का रोड़ा होकर रहा, दस पाँच पुश्तें इस शहर में गुजरी... दरबार उमराओं के और मेले ठेले, सैर तमाशा लोगों का देखा और कूचागर्दी की, उसका बोलना अलबत्ता ठीक है१'' उन्होंने 'अनुवार सुहेली' का भी अनुवाद उर्दू में किया और उसका नाम 'गंजेखूबी' रखा। 'चहार दर्वेश' की वजह से ये अमर हैं। (र.स.ज़.)