अमरावती दक्षिण के पठार पर बंबई राज्य में स्थित एक जिला तथा उसका प्रधान नगर है। अमारवती जिला अ. २१° ४६¢ उ. से २०° ३२¢ उ. तथा दे. ७६° ३८¢ पू. से ७८° २७¢ पू. तक फैला हुआ, बरार के उत्तरी तथा उत्तर पूर्वी भाग में बसा है। इसे दो पृथक् भागों में विभाजित किया जा सकता है: (१) पैनघाट की उर्वरा तथा समतल घाटी जो पूर्व की ओर निकली हुई मोर्सी ताल्क को छोड़कर लगभग चौकोर है। समुद्रतल से इस समतल भाग की उँचाई लगभग ८०० फुट है। (२) उत्तरी बरार का पहाड़ी भाग जो सतपुड़ा का एक अंश है, और भिन्न-भिन्न समयों में भिन्न नामों से प्रसिद्ध था; जैसे, बाँडा, गांगरा, मेलघाट। इसके उत्तर पश्चिम की ओर ताप्ती, पूर्व की ओर वारधा और बीच से पूर्णा नदी बहती है। जिले की प्रधान उपज रुई है और कुल कृष्य भूमि का ५० प्रतिशत इसी के उत्पादन में लगा है। जिले का क्षेत्रफल लगभग १२,२१० कि.मी. है।

अमरावती जिले का प्रधान नगर अमरावती समुद्रतल से १,११८ फुट की उँचाई पर (अ. २०° ५६¢ उ. और दे. ७७° ४७¢ पू.) स्थित है। रघुजी भोंसला ने १८वीं शताब्दी में इसकी स्थापना की थी। वास्तुकला के सौंदर्य के दो प्रतीक अभी भी अमरावती में मिलते हैं-एक कुख्यात राजा विसेनचंदा की हवेली और दूसरा शहर के चारों ओर की दीवार। यह चहारदीवारी पत्थर की बनी, २० से २६ फुट उँची तथा सवा दो मील लंबी है। इसे निजाम सरकार ने पिंडारियों से धनी सौदागरों को बचाने के लिए सन् १८०४ में बनाया था। इसमें पाँच फाटक तथा चार खिड़कियाँ हैं। इनमें से एक खिड़की खूनखारी नाम से कुख्यात है जिसके पास १८१६ में मुहर्रम के दिन ७०० व्यक्तियों की हत्या हुई थी। अमरावती नगर दो भागों में विभाजित है-पुरानी अमरावती तथा नई अमरावती। पुरानी अमरावती दीवार भीतर बसी है और इसके रास्ते संकीर्ण, आबादी घनी तथा जलनिकासी की व्यवस्था निकृष्ट है। नई अमरावती दीवार के बाहर वर्तमान समय में बनी हे और इसकी जलनिकासी व्यवस्था, मकानों के ढंग आदि अपेक्षाकृत अच्छे हैं। अमरावती नगर के अनेक घरों में आज भी पच्चीकारी की बनी काली लकड़ी के बारजे (बरामदे) मिलते हैं जो प्राचीन काल की एक विशेषता थी।

अमरावती में हिंदुओं के तथा जैनियों के कई मंदिर हैं। इनमें से अंबादेवी का मंदिर सबसे महत्वपूर्ण है। लोग कहते हैं, इस मंदिर को बने लगभग एक हजार वर्ष हो गए और संभवत: अमरावती का नाम भी इसी से प्रचलित हुआ, यद्यपि इससे कतिपय विद्वान् सहमत नहीं हैं। अमरावती में मालटेकरी नामक एक पहाड़ है जो इस समय चाँदमारी के रूप में व्यवहृत होता है। किंवदंती है कि यहाँ पिंडारी लोगों ने बहुत धन दौलत गाड़ रखा है। अमरावती का जल यहाँ के वाडाली तालाब से आता है। यह तालाब लगभग दो वर्ग मील की भूमि से पानी एकत्रित करता है और १५० लाख घन फुट पानी धारण कर सकता है। अमरावती रुई के व्यापार के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ रुई के तथा तेल निकालने के कई कारखाने भी हैं।

हिंदुओं की पौराणिक किंवदंती के अनुसार अमरावती सुमेरु पर्वत पर स्थित देवताओं की नगरी है जहाँ जरा, मृत्यु, शोक, ताप कुछ भी नहीं होता। इस अमरावती और बरारवाली अमरावती में कोई संबंध नहीं है। किसी-किसी का यह अनुमान है कि ऐसी अमरावती मध्य एशिया की आमू (ऑक्सस) नदी के आसपास बसी थी।

मद्रास के गुंटूर जिले में भी अमरावती नामक एक प्राचीन नगर है। कृष्णा नदी के दक्षिण तट पर (अ. १६° ३५¢ उ. तथा दे. ८०° २४¢ पू.) स्थित है। इसका स्तूप तथा संगमरमर पत्थर की रेलिंग की मूर्तियाँ भारतीय शिल्पकला के उत्तम प्रतीक हैं। शिलालेख के अनुसार इस अमरावती का प्रथम स्तूप ई. पू. २०० वर्ष पहले बना था और अन्य स्तूप पीछे कुषाणों के समय में तैयार हुए। इन स्तूपों की कई सुंदर मूर्तियाँ ब्रिटिश म्यूजियम तथा मद्रास के अजायबघर में रखी गई हैं। (वि.मु.)