अभिलेखालय,
भारतीय राष्ट्रीय
स्वतंत्रता
के बाद भारत
में भी अपना अभिलेखालय
स्थापित हुआ। उसे
भारतीय राष्ट्रीय
अभिलेखालय कहते
हैं। इससे पूर्व
इसका नाम इंपीरियल
रेकर्ड् डिपार्टमेंट
(साम्राज्य-अभिलेख-विभाग)
था। यह अभिलेखालय
'प्रथमोक्त' नाम
से नई दिल्ली के
जनपथ और राजपथ
के चौक के पास
लाल और सफ़ेद
पत्थरों के एक भव्य
भवन में स्थित है।
प्राकृतिक संकटों
से अभिलेखों की
रक्षा के लिए आधुनिक
वैज्ञानिक साधन
प्रस्तुत कर लिय
गए हैं।
इस विभाग को सन् १८९१ में ईस्ट इंडिया कंपनी के समय से इकट्ठे हुए सरकारी अभिलेखों को लेकर रखने का काम सौंपा गया था। उस समय इसके अधिकारी लोग स्पष्ट रूप से यह नहीं जानते थे कि इसका क्या काम होगा। अभिलेखसमूह अव्यवस्थित अवस्था में पड़ा था। भारत सरकार का ध्यान इस ओर तब गया जब इंग्लैंड और वेल्ज़ के अभिलेखों के संबंध में नियुक्त राजकीय आयोग ने सन् १९१४ में भारतीय अभिलेखों की अव्यवस्थित अवस्था पर टिप्पणी की। फलत: सन् १९१९ में भारत सरकार ने भारतीय अभिलेखों के संबंध में अपनी सिफारिशें (अभिस्ताव) भेजने के लिए एक भारतीय ऐतिहासिक अभिलेख आयोग नियुक्त किया। उस आयोग की सिफारिशों के फलस्वरूप अभिलेखों की अवस्था में धीरे धीरे सुधार होता गया। अब इसका मुख्य काम है सरकार के स्थायी अभिलेखों को सँभालकर रखना और प्रशासनिक उपयोग के लिए माँगने पर सरकार के विभिझ कार्यालयों को देना। इसके साथ ही इसको एक और काम भी सौंपा गया है। वह है सरकार द्वारा निश्चित अवधि तक के अभिलेख गवेषणार्थियों को गवेषणाकार्य के लिए देना। गवेषणार्थी अभिलेखालय के गवेषणाकोष्ठ (रिसर्च रूम) में बैठकर गवेषणाकार्य करते है। उपर्युक्त दो उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही इस विभाग का सब कार्यकलाप हो रहा है।
सरकार
के वे सभी अभिलेख
यहाँ समय-समय
पर अभिरक्षा के
लिए भेजे जाते
हैं जो अब अपने
अपने विभागों,
कार्यालयों,
मंत्रालयों आदि
में तो प्रचलित
(करेंट) नहीं हैं
किंतु सरकार
के स्थायी उपयोग
के हैं। इनके अतिरिक्त
भूतपूर्व वासामात्य
भवनों (रेज़िडेंसियों),
विलीन राज्यों
तथा राजनीतिक
अभिकरणों के
भी अभिलेख यहाँ
भेजे जाते हैं।
इस अभिलेखालय
के इस्पात के ताकों
पर इस समय लगभग
१,०३,६२५ जिल्दें और ५१,१३,०००
बिना जिल्द बँधे
प्रलेख (डाक्यूमेंट)
हैं। कुल मिलाकर
१३ करोड़ पृष्ठयुग्म
(फ़ोलियो) हैं।
इनके अतिरिक्त
भारतीय सर्वेक्षण
विभाग (सर्वे ऑव्
इंडिया) से ११,५०० पांडुलिपि
मानचित्र और
विभिन्न अभिकरणों
के ४,१५० मुद्रित मानचित्र
प्राप्त हुए हैं। मुख्य
अभिलेखमाला
सन् १७४८ से आरंभ
होती है। इससे
पूर्व के वर्षो
के भी हितकारी
अभिलेखसंग्रहों
की प्रतिलिपियाँ
इंडिया आफिस, लंदन
से मँगाकर रखी
गई हैं। इन जिल्दों
में सन् १७०७ और
१७४८ में ईस्ट इंडिया
कंपनी और उसके
कर्मचारियों
के बीच किए गए पत्रव्यवहार
यहाँ पर मूल
में एक अटूट माला
के रूप में मिलते
हैं और वह ब्रिटिश
भारत के इतिहास
का एक अनुपम स्रोत
है।इसी प्रकार
मूल कंसल्टेशंस
भी बहुत महत्वूपर्ण
हैं। इनमें ईस्ट इंडिया
कंपनी के प्रशासकों
द्वारा लिखे गए
वृत्त (मिनिट्स),
ज्ञापन (मेमोरंडा),
प्रस्ताव और सारे
देश में विद्यमान
कंपनी के अभिकर्ताओं
(एजेंटों) के साथ
किया गया पत्रव्यवहार
है। इस देश की रहन-सहन
और प्रशासन
का लगभग प्रत्येक
पहलू इनमें मिलता
है। अभिलेखों में
विदेशी हित ही
सामग्री और पूर्वी
चिट्ठियों का
एक संग्रह भी है।
इन चिट्ठियों
में अधिकतर चिट्ठियाँ
फारसी भाषा
में हैं। परंतु
बहुत सी संस्कृत,
अरबी, हिंदी, बँगला,
उड़िया, मराटी,
तमिल, तेलुगु,
पंजाबी, बर्मी,
चीनी, स्यामी और
तिब्बती भाषाओं
में भी हैं। हाल
के वर्षो में इंग्लैंड,
फ्रांस, हालैंड, डेनमार्क
और अमरीका
से भारत के लिए
हितकारी सामग्रियों
की अणचित्र-प्रति-लिपियाँ
(माइक्रोफ़िल्म कापीज़)
भी प्राप्त की गई
हैं।
माँगे जाने पर सुगमता से निकालकर देने के लिए इन अभिलेखों को बहुत सावधानी से ताकों पर वर्गीकरण, परीक्षण और क्रमबद्ध करके रखा जाता है और उनकी सूचियाँ तैयार की जाती हैं।
जो कार्यालय अपने अभिलेख यहाँ भेजते हैं वे पहले उनमें से अनुपयोगी अभिलेखों को निकालकर नष्ट कर देते हैं। नष्ट करते समय कहीं वे प्रशासनिक और ऐतिहासिक मूल्य के अभिलेखों को भी न नष्ट कर दें इसलिए यह अभिलेखालय उनको अभिलेखसंचयन के संबंध में सलाह देता है और इस काम में उनका पथप्रदर्शन करता है। संचयन के संबंध में सलाह देता है और इस काम में उनका पथप्रदर्शन करता है। संचयन के संबंध में विषमता दूर करने के लिए इस अभिलेखालय ने विभिन्न मंत्रालयों से आए हुए प्रतिवेदनों के आधार पर अभिलेखसंचयन का एकविध (यूनिफ़ार्म) नियम तैयार किया है।
बाहर से आनेवाले अभिलेखों का पहले वायुशोधन (एअर क्लीनिग) तथा धूमन (फ़्यूमिगेशन) किया जाता है। वायु शोधन के द्वारा अभिलेखों में से धूल हटा दी जाती है और धूमन के द्वारा हानिकारक कीड़ों को नष्ट कर दिया जाता है।
अिभलेखों
का परिरक्षण
(सँभाल) इस अभिलेखालय
के सबसे महत्वपूर्ण
कामों में से एक
है। यह काम अभिलेख
प्रतिसंस्कार (मरम्मत)
की विभिन्न विधाओं
द्वारा प्रलेखों,
उनके कागजों
तथा स्याहियों
आदि की अवस्थाओं
को ध्यान में रखकर
यथोचित रीति
से किया जाता
है। इस काम को
सुचारू रूप से करने
के लिए अभिलेखालय
ने अपनी ही प्रयोगशाला
(रिसर्च लेबोरेटरी)
बना रखी है।
इसमें कागजों
तथा स्याहियों
आदि के नमूनों
का, अभिलेख-प्रतिसंस्कार
के लिए उनकी उपयुक्तता
आदि जानने के
संबंध में परीक्षणकार्य
किया जाता है।
प्रयोगशाला
में ऐसे साधनों
तथा रीतियों
आदि की खोज
भी की जाती है
जिससे अभिलखों
को अधिक से अधिक
दीर्घजीवी बनाया
जा सके।
अभिलेखपरिरक्षण (सँभाल में भा-प्रतिलिपिकरण) (फोटोडुप्लिकेशन) विधा से भी सहायता ली जाती है। अणुचित्रण विधा (माइक्रोफिल्मिंग प्रोसेस) द्वारा पुराने और भिदुर अभिलेख का लगातार अणचित्रण किया जा रहा है ताकि यदि कभी मूल अभिलेख अपहत या नष्ट हो जाएँ तो उनकी प्रतिलिपियाँ सँभालकर रखी जा सकें। इसके अतिरिक्त अणुचित्र प्रतिलिपियों को उपयोग में लाने से जहाँ मूल अभिलेखों की आयु अधिक लंबी हो सकती है वहाँ भारत के विभिझ भागों में स्थित गवेषणार्थियों को गवेषणार्थ सस्ते मूल्य पर अभिलेखों की प्रतिलिपियाँ मिल सकती हैं।
यह अभिलेखालय इस समय संसार के सबसे बड़े अभिलेखालयों में से एक है। इसके कार्यकलापों के प्रशासन, अभिलेख, प्रकाशन, प्राच्य अभिलेख और शैक्षणिक अभिलेख तथा परिरक्षण आदि नामों से छह संभाग (डिवीज़न) हैं। प्रत्येक शाखा अपने शाखाप्रभारी (सेक्शन ईन्चा) तथा संभाग अधिकारी (डिवीज़न आफ़िसर) के द्वारा अपना कार्यकलाप निर्देशक को भेजती है। (कृ.द.पा.)