अब्दुल हक़ हापुड़ में जन्म १८६९ ई. में, शिक्षा अधिकतर अलीगढ़ में प्राप्त की और वहीं से १८९४ ई. में बी.ए. पास किया। १८९६ ई. में हैदराबाद राज में नौकरी मिल गई। लिखने की रुचि विद्यार्थी जीवन से ही थी। १८९६ ई. में एक पत्रिका 'अफ़सर' निकाली। दक्षिण भारत में रहने के कारण इसका अवसर मिला कि वह प्रारंभिक 'दक्खिनी उर्दू' की खोज करें। इनमें उनकों बड़ी सफलता मिली। जब वह १९११ ई. में अंजुमने तरक्की उर्दू के मंत्री बनाए गए तब उनके गवेषणापूर्ण कामों में और उन्नति हुई। उसमानिया विश्वविद्यालय में अनुवाद का जो विभाग बना उसकी देखरेख भी अब्दुल हक़ के ही हाथ में दी गई। १९२१ ई. से उन्होंने 'उर्दू' नाम से एक बहुत ही उच्च कोटि की आलोचनात्मक और खोजपूर्ण पत्रिका निकाली जो आज भी निकल रही है। कुछ समय तक वह उस्मानिया विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग के अध्यक्ष भी रहे।
१९३६ ई. में वह दिल्ली चले आए। कुछ समय तक महात्मा गांधी के हिंदुस्तानी आंदोलन के साथ भी रहे। १९३७ ई. में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्हें आनरेरी डाक्ट्रेट मिली। भारतवर्ष का बँटवारा होने के बाद मौलाना अब्दुल हक़ (जिनको कुछ लोग 'बाबा-ए-उर्दू' भी कहने लगे थे) पाकिस्तान चले गए। वहाँ भी 'अंजुमने-तरक्की उर्दू' का संचालन यही कर रहे हैं।
उनकी रचनाओं में मरहूम दिल्ली कालेज, मरहठी पर फारसी का असर, उर्दू नशब व नुमा में सूफियाए किराम का थाम, नुसरती, कवायदे उर्दू, मुकद्दमाते अब्दुल हक़ और खुतबाते अब्दुल हक़ प्रसिद्ध हैं।
सं.गं._अब्दुल लतीफ़ : औहरे अब्दुल हक़; रामबाबू सक्सेना : तारीखे-अदबे उर्दू; डा. एजाएज हुसेन : मुखतसर तारीख़ अदबे उर्दू। (सै.ए.हु.)