अब्दुर्रहीम खाँ खानखानाँ, नवाब जन्म लाहौर में १४ सफर, सन् ९६४ हि. (१७ दिसंबर, सन् १५५६ ई.)। पिता बैराम खाँ के गुजरात में मारे जाने पर यह दिल्ली लाए गए और सम्राट् अकबर ने इनकी रक्षा का भार स्वयं ग्रहण कर लिया। वह स्वयं प्रतिभाशाली थे इसलिए अति शीघ्र तुर्की, फारसी, संस्कृत, हिंदी आदि कई भाषाओं के ज्ञाता हो गए। यह फारसी, हिंदी तथा संस्कृत, के सुकवि और साहित्यमर्मज्ञ भी हो गए। तीनों भाषाओं में इनकी प्रचुर कविता मिलती है। तुर्की से फारसी में बाबरनामा का अनुवाद भी इन्होंने किया है। यह बीस वर्ष की अवस्था में अपनी योग्यता के कारण गुजरात के शासक नियत हुए, जिस पद पर पाँच वर्ष रहे। इसके अनंतर मीर अर्ज तथा सुलतान सलीम के अभिभावक नियुक्त किए गए। सन् १५८३ ई. में गुजरात में सरखेज के युद्ध में शत्रु की चौगुनी सेना को पूर्णतया परास्त कर दिया, जिससे इन्हें पाँचहजारी मंसब तथा खानखानाँ की पदवी मिली। सन् १५९२ ई. में यह मुलतान के प्रांताध्यक्ष नियत हुए और इन्होंने सिंध तथा ठट्ठा विजय किया। स्न् १५९५ ई. में ये दक्षिण भेजे गए, जहाँ इन्होंने अहमदनगर घेरा। १५९७ ई. की फारवरी में सुहेल खाँ के आधीन दक्षिण के तीन सुलतानों की सम्मिलित सेनाओं को आष्टी के मैदान में घोर युद्ध करके परास्त किया। सन् १६०० ई. में अहमदनगर विजय किया और बरार के प्रांताध्यक्ष नियत हुए। जहाँगीर के राज्यकाल में प्राय: ये अंत तक दक्षिण में ही नियत रहे, पर शाहजादों तथा अन्य सरदारों के विरोध से कोई अच्छा कार्य नहीं कर सके। शाहजहाँ के विद्रोह करने पर इन्होंने एक प्रकार से उन्हीं का पक्ष लिया, पर इस दुरंगी चाल का यही फल निकला कि इनके कई पुत्र मार डाले गए। जहावत खाँ के विद्रोह पर उसका पीछा करने के लिए यह नियत हुए, पर दिल्ली में बीमार होकर सन् १०३६ हि. (१६२७ ई.) में मर गए।यह बड़े सच्चरित्र, उदार तथा गुणग्राहक थे और इनके संबंध में इनकी बहुत सी कहानियाँ प्रसिद्ध हैं। दोहावली, नगरशोभा, मदनाष्टक आदि हिंदी रचनाएँ विख्यात हैं। रहीम कवि के नीतिपरक दोहे प्रसिद्ध हैं तथा इन्होंने कृष्णभक्ति संबंधी कुछ पदों की भी रचना की थी जो अत्यंत भावपूर्ण है। अवधी में उनकी बरवै नायिकभेद नामक रचना प्रसिद्ध है। अपनी उक्तियों के वैचित््रय से उन्होंने बिहारी जैसे कवि को प्रभावित किया।

सं.गं._ १. मआसिरे रहीमी; २. मुगल दरबार, भाग २; ३. रहिमन वलास। (ब्र.दा.)