अब्दाली, अहमदशाह अफगानों की अब्दाली अथवा दुर्रानी शाखा का एक वीर एवं महत्वाकांक्षी व्यक्ति। अफगानिस्तान के बादशाह नादिरशाह ने इसे बचपन में ही पकड़कर दास बना लिया था। परंतु अपनी योग्यता तथा लगन से वह सेनाध्यक्ष के पद तक पहुँच गया। सन् १७४७ ई. में नादिरशाह का कत्ल हो जाने के बाद अब्दाली ने हेरात में स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया और कंदहार तथा काबुल जीतने के बाद बादशाह बन बैठा। सन् १७४८ ई. में इसने भारत पर चढ़ाई की। दिल्ली के शाहजादे अजमदशाह ने सरहिंद नामक स्थान पर इसे रोक लिया। युद्ध हुआ और अब्दाली की हार हुई। वह फौरन काबुल लौट गया। अब्दाली के वापस चले जाने के बाद मुगल सम्राट् मुहम्मदशाह की मृत्यु हो गई और शाहजाएदा अहमदशाह गद्दी पर बैठा। अब्दाली ने १७४९ ई. में पुन: भारत पर आक्रमण किया। मुगलों की पराजय हुई और अब्दाली का मुलतान, सिंध तथा पंजाब के सूबे देकर उन्होंने संधि कर ली।
सन् १७५४ ई. में मुगल बादशाह अहमदशाह की मृत्यु हो गई और जहाँदारशाह के पुत्र आलमगीर द्वितीय को सिंहासन पर बिठाया गया, किंतु साम्राज्य में जो अव्यवस्था फैल चुकी थी, उसे दूर न किया जा सका। निजाम का दौहित्र गाजीउद्दीन मुगल साम्राज्य का प्रधान मंत्री था। उसमें और रुहेला सरदार नजीबुद्दौला के बीच प्रतिद्वंद्विता चल रही थी। दोनों ही आलमगीर पर अपना-अपना प्रभुत्व रखना चाहते थे। गाजीउद्दीन ने मुलतान पर हमला किया और अहमदशाह अब्दाली के अधिकारी को बंदी बना लिया। इससे क्रुद्ध हो अब्दाली ने सन् १७५६ ई. में भारत पर तीसरी बार आक्रमण किया। हमले की खबर सुनकर गाजीउद्दीन दिल्ली से भागकर मराठों की शरण में चला गया। अब्दाली ने दिल्ली आकर भयंकर लूट-पाट तथा कत्लेआम करवाया। तत्पश्चात् नजीबुद्दौला को प्रधानमंत्री बनाकर वह अपने देश वापस चला गया। (कै.चं.श.)