अब्द (सं.) का अर्थ वर्ष है। यह वर्ष, संवत् एवं सन् के अर्थ में आजकल प्रचलित है क्योंकि हिंदी में इस शब्द का प्रयोग सापेक्षिक दृष्टि से कम हो गया है। अनेक वीरों, महापुरुषों, संप्रदायों एवं घटनाओं के जीवन और इतिहास के आरंभ की स्मृति में अनेक अब्द या संवत् या सन् संसार में चलाए गए हैं, यथा,१. सप्तर्षि संवत्---सप्तर्षि (सात तारों) की कल्पित गति के साथ इसका संबंध माना गया है। इसे लौकिक, शास्त्र, पहाड़ी या कच्चा संवत् भी कहते हैं। इसमें २४ वर्ष जोड़ने से सप्तर्षि-संवत्-चक्र का वर्तमान वर्ष आता है। २. कलियुग संवत्--इसे महाभारत या युधिष्ठिर संवत् कहते हैं। ज्योतिष ग्रंथों में इसका उपयोग होता है। शिलालेखों में भी इसका उपयोग हुआ है। ई.पू. ३१०२ से इसका आरंभ होता है। वि.सं.में ३०४४ एवं श.सं. ३१७९ जोड़ने से कलि.सं. आता है।

३. वीरनिर्वाण संवत्_ अंतिम जैन तीर्थकर महावीर के निर्वाण वर्ष ई.पू. ४२७ से इसका आरंभ माना जाता है। वि.सं. में ४७० एवं श.सं. में ६०५ जोड़ने से वीर निर्वाण सं. आता है।

४. बुद्धनिर्वाण संवत्_ गौतम बुद्ध के निर्वाण वर्ष से इसका आरंभ माना जाता है जाए विवादास्पद है क्योंकि विविध स्रोत एवं विद्वानों के आधार पर बुद्धनिर्वाण ई.पू.१०९७ से ई.पू. ३८८ तक माना जाता है। सामान्यत: ई.पू. ४८७ अधिक स्वीकृत वर्ष है।

५. मौर्य संवत_ चंन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से ई.पू. ३२१ में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। हाथीगुंफा, कटक (उड़ीसा) में मौर्य संवत् १६५ का राजा खारवेल का एक लेख प्राप्त हुआ है।

६. सेल्युकिड़ि संवत्_ सिंकदर महान् के सेनापति सेल्युकस ने जब बँटवारे में एशिया का साम्राज्य प्राप्त किया तो ई. पू. ३१२ से अपने नाम का संवत् चलाया। खरोष्ठी लिपि के कुछ लेखों में इसका सदंर्भ मिलता है।

७. विक्रम संवत्_ इसे मालवा संवत् भी कहते हैं। मालवराज ने आक्रामक शकों को परास्त कर अपने नाम का संवत् चलाया । इसका आरंभ ई.पू. ७५ वर्ष से माना जाता है। भारत और नेपाल में यह अत्यधिक लोकप्रिय है। उत्तर भारत में इसका आरंभ चैत्र शुक्ल १ से, दक्षिण भारत में कार्तिक शुक्ल १ से और गुजरात तथा राजस्थान के कुछ हिस्सों में आषाढ़ शुक्ल १ (आषाढादि संवत्) से माना जाता है।

८. शक संवत_ ऐसा अनुमान किया जाता है कि दक्षिण के प्रतिष्ठानपुर के राजा शालिवाहन ने इस संवत् को चलाया। अनेक स्रोत इसे विदेशियों द्वारा चलाया हुआ मानने हैं। काठियावाड़ एवं कच्छ के शिलालेखों तथा सिक्कों में इसका उल्लेख पाया जाता है। वराहमिहिर कृत 'पंचसिद्वांतिका' में इसका सबसे पहले उल्लेख रहा है। नेपाल में भी इसका प्रचलन है। इसमें १३५ वर्ष जोड़ने से वि.सं. और ७९ वर्ष जोड़ने से ई. सन् बनता है।

९. कलचुरि संवत_ इसे चेदि संवत् और त्रैकूटक सं. भी कहते हैं। यह सं. गुजरात, कोंकण एवं मध्य प्रदेश में लेखों में मिला है। इसमें ३०७ जोड़ने से वि.सं. तथा २४९ जोड़ने से ई. सन् बनता है।

१०. गुप्त संवत्_ इसे 'गुप्त काल' और 'गुप्त वर्ष' भी कहा जाता है। काठियावाड़ के वलभी राज्य (८९४ई.) में इसे 'वलभी संवत्' कहा गया। किसी गुप्तवंशी राजा से इसका संबंध जोड़ा जाता है। नेपाल से गुजरात तक इसका प्रचलन रहा। इसमें ३७६ जोड़ने से विक्रम सं., २४१ जोड़ने से शक सं. एवं ३२० जोड़ने से ईसवी सन् बनता है।

११. गांगेय संवत_ कलिंगनगर (तमिलनाडु ) के गंगावंशी किसी राजा का चलाया हुआ संवत् माना जाता है। दक्षिण भारत के कतिपय स्थानों पर इसका उल्लेख मिलता है। ५७९ जोड़ने से ईसवी सन् बनता है।

१२. हर्ष संवत्_ थानेश्वर के राजा हर्ष के राज्यारोहण के समय इसे चलाया गया माना जाता है। उत्तर प्रदेश एवं नेपाल में कुछ समय तक यह प्रचलित रहा । इसमें ६०६ जोड़ने से ईसवी सन् जोड़ने से ईसवीं सन् बनता है।

१३. भाटिक (भट्टिक) संवत्_ यह संवत् जैसलमेर के राजा भट्टिक (भाटी) का चलाया हुआ माना जाता है। इसमें ६८० जोड़ने से वि.सं. और ६२३ जोड़ने से ई. स. बनता है।

१४. कोल्सम् (कोलंब) संवत_ तमिल में इसे 'कोल्लम् आंडु' और संस्कृत में कोलबं संवत् लिखा गया है। मलाबार के लोग इसे 'परशुराम संवत्' भी कहते हैं। इसके आरंभ का ठीक पता नहीं है। इसमें ८२५ जोड़ने से ई. स. बनता है।

१५. नेवार (नेपाल) संवत_ नेपाल राज जयदेवमल्ल ने इसे चलाया। इसमें ९३६ जोड़ने से वि.सं. और ८७९ जोड़ने ई.स. बनता है।

१६. चालुक्य विक्रम संवत्_ कल्याणपुर (आंध्र) के चालुक्य (सोलंकी) राजा विक्रमादित्य (छठे) ने शक संवत् स्थान पर चालुक्य संवत् चलाया। इसे 'चालुकय विक्रमकाल', 'चालुक्य विक्रम वर्ष', 'वीर विक्रम काल' भी कहा जाता है। ११३२ जोड़ने से वि.सं. एवं १०७६ जोड़ने से ई.स. बनता है।

१७. सिंह संवत्_ कर्नल जेम्स टॉड ने इसका नाम 'शिवसिंह संवत् और दीव बेट (काठियाबाड़) के गोहिलों का चलाया हुआ बतलाया है। इसका निश्चित प्रमाण नहीं मिलता। इसमें ११७० जोड़ने से वि.सं. १११३ जोड़ने से ई.स. बनता है।

१८. लक्ष्मणसेन संवत_ बंगाल के सेनवंशी राजा लक्ष्मणसेन के राज्याभिषेक से इसका आरंभ हुआ। इसका आरंभ माघ शुक्ल १ से माना जाता है। इसका प्रचलन बंगाल, बिहार (मिथिला) में था। इसमें १०४० जोड़ने से शक सं.,११७५ जोड़ने से वि. सं. और १११८ जोड़ने से ई.स. बनता है।

१९. पुडुवैप्पू संवत_ सन् १३४१ में कोचीन के समीप उद्भूत 'बीपीन' टापू की स्मृति में यह संवत् चलाया गया। आरंभ में कोचीन राज्य में इसका प्रचलन रहा।

२०. राज्याभिषेक संवत_ छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक जून १६७४ से इसका आरंभ माना जाता है। मराठा प्रभाव तक इसका प्रचलन रहा।

२१. बार्हस्पत्य संवत्सर_ यह १२ वर्षों का माना जाता है। बृहस्पति के उदय और अस्त के क्रम से इस वर्ष की गणना की जाती है। सातवीं सदी ईसवी के पूर्व के कुछ शिलालेखों एवं दानपत्रों में इसका उल्लेख पाया जाता है, यथा 'वर्षमान आश्विन', 'वर्षमान कार्तिक आदि।

२२. बार्हस्पत्य संवत्सर (६० वर्ष का) _ इसमें ६० विभिन्न नामों के ३६१ दिन के वर्ष माने गए हैं। बृहस्पति के राशि बदलने से इसका आरंभ माना जाता है। दक्षिण में इसका उल्लेख अधिक मिलता है। चालुक्य राज मंगलेश (ई.स. ५९१-६१०) के लेख में इसे 'सिद्धार्थ संवत्सर' भी लिख गया है।

२३. ग्रहपरिवृत्ति संवत्सर_ इसमें ९० वर्ष का चक्र होता है। पूरा होने पर वर्ष १ से लिखना शुरु करते हैं। इसका आरंभ ई.पू. २४ से माना जाता है। मदुरा (तमिलनाडु) में इसका विशेष प्रचलन रहा है।

२४. सौर वर्ष_ यह ३६५ दिन १५ घड़ी ३१ पल और ३० विपल का माना जाता है। इसमें बारह महीने होते हैं। आजकल प्राय: सौर वर्ष ही व्यवहार में है।

२५. चांद्र वर्ष_ दो चांद्र पक्षों का एक चांद्र मास होता है। उत्तर में कृष्णपक्ष १ से और दक्षिण में शुक्ल पक्ष १ से मास की गणना होती है। १२ चांद्रमास का एक चांद्र वर्ष होता है जो ३५४ दिन, २२ घड़ी १ पल और २४ विपल का होता है। सौरमान एवं चांद्रमान के ३२ महीनों में १ महीने का अंतर पड़ जाता है।

२६. हिजरी सन्_ इस्लाम के प्रवर्त्तक मुहम्मद साहब के मक्का से मदीना पलायन (हिजरी) का दिन १५ जुलाई, ६२२ ई.सं. इसका आरंभ माना जाता है। यह चांद्रवर्ष है। चाँद देखकर इसका आरंभ किया जाता है। तारीख एक शाम से दूसरी शाम तक चलती है। सौर मास की तुलना में चांद्रमास १० दिन ५३ घड़ी ३० पल और ६ विपल के लगभग कम होता है। इस प्रकार १०० सौसर वर्ष में ३ चांद्रवर्ष २४ दिन ९ घड़ी का समय बढ़ जाएगा। अस्तु इस सन् की अन्य से कोई निश्चित तुलना नहीं हो सकती। भारत में इसका पहला उल्लेख महमूद गजनवी के महमूदपुर (लाहौर) के सिक्कों पर मिलता है, जिनपर संस्कृत में भी हिजरी सन् का उल्लेख किया गया है।

२७. शाहूर सन्_ संभवत: इसे भारत में मुहम्मद तुगलक ने चलाया था। यह हिजरी सन् का संशोधित रूप है। चांद्रमास के बदले इसे सौरमास के अनुसार माना गया है। इसमें ६०० जोड़ने से ई. सन् और ६५७ जोड़ने से वि.सं. बनता है। मरहठा शासन में यह लोकप्रिय हुआ। मराठी पंचांगों में अभी भी मिलता है।

२८. फसली सन_ इसे बादशाह अकबर ने टोडरमल के परामर्श से लगान वसूली के लिए हिजरी सन् ९७१ (१५६३ ई.) में चलाया। यह हिजरी सन् का संशोधित रूप है क्योंकि इसके महीने सौर मास के अनुसार चलते हैं। पंजाब से बंगाल तक के उत्तरी भाग में किसानों और अमीनों में इसका प्रचलन है। दक्षिण भारत का फसली सन् उत्तर से कुछ भिन्न है।

२९. विलायती सन्_ बंगाल में अपना शासन स्थापित होने के बाद इसे अंग्रजों ने चलाया। यह फसली सन् का दूसरा रूप है जिसमें वर्षारंभ आश्विन मास से होता है। इसमें ५९२-५९३ जोड़ने से ई.स. बनता है।

३०. अमली सन्_ यह वास्तव में विलायती सन् ही है किंतु उड़ीसा में इसका आरंभ भाद्रपद शुक्ल १२ अर्थात् राज इंद्रद्युम्न के जन्मकाल से माना जाता है। इसका प्रचार वहाँ के व्यापारियों एवं न्यायालयों में है।

३१. बँगला सन्_ इसे 'बंगाब्द' भी कहते हैं। फसली सन् से अंतर यह है कि इसका आरंभ वैशाख से होता है। इसमें ५९४ जोड़ने से ई.सं. तथा ६५१ जोड़ने से वि.सं. बनता है।

३२. मगि सन्_ यह भी बंगाल में ही चलता है किंतु बंगाब्द से ४५ वर्ष पीछे इसका आरंभ माना जाता है। बँगला देश के चटगाँव जनपद में इसका प्रचार हुआ। प्रचार का कारण आराकान (बर्मा) की मगि जाती की क्षेत्रीय विजय को मिलता है।

३३. इलाही सन_ बादशाह अकबर ने बीरबल के सहयोग से 'दीन-इलाही' (ईश्वरीय धर्म) के साथ इस सन् को हिजरी सन् ९९२ (१५८४ ई.) में चलाया। इसमें महीने ३२ दिनों के होते थे। अकबर जहाँगीर के समय के लेखों सिक्कों में इसका उल्लेख है। शाहजहाँ ने इसे समाप्त कर दिया।

३४. यहूदी सन_ यह प्रचलित अब्दों में सर्वाधिक प्राचीन है। इज़रायल और विश्व के यहूदी इसका प्रयोग करते हैं। यह ५७३३ वर्ष पुराना है। ईसवी सन् में ३५६१ जोड़ने से यह सन् आता है।

३५. ईसवी सन_ ईसामसीह के जन्मवर्ष से इसका आरंभ माना जाता है। ई.सं. ५२७ के लगभग रोम निवासी पादरी डोयोनिसियस ने गणना कर रोम नगर की स्थापना से ७९५ वर्ष बाद ईसामसीह का जन्म होना निश्चित किया। वर्तमान ईसवी सन् की छठी शती से इसका प्रचार शुरु हुआ और १००० ईसवी तक यूरोप के सभी ईसाई देशों ने तथा आधुनिक यूरोपीय साम्राज्यवाद के विस्तार के साथ सारे विश्व ने इसे स्वीकार कर लिया। इससे पूर्व रोमन साम्राज्य में जूलियस सीजर और पोप ग्रेगरी द्वारा निर्धारित सन् तथा पंचांग चलते थे। यह सौर वर्ष है जिसका आरंभ १ जनवरी से होता है। २४ घंटे का दिन (रात १२ बजे से अगली रात १२ बजे तक) माना जाता है। इसमें ५७ वर्ष जोड़ने से वि.सं. बनता है। इसे ्ख्राोस्ताब्द भी कहा जाता है। १९१७ तक रूस में पश्चिमी यूरोप के मुकाबले वर्ष का आरंभ १३ दिन पीछे होता था। क्रांति के बाद लेनिन ने उसे बढ़ाकर समकक्ष किया, जिससे २५ अक्टूबर को हुई क्रांति ७ नवंबर को मान ली गई। यही कारण है कि सोवियत क्रांति को 'अक्टूबर क्रांति' भी कहा जाता है। (मो.ला.ति.)