अबूतमाम, हबीब बिन औसुत्ताई दमिश्क के पास जासिम गाँव में इसका जन्म हुआ। यह गाँव से दमिश्क जाकर वस्त्र बुनने का काम करने लगा। दमिश्क से हम्स जाकर इसने शिक्षा प्राप्त की। फिर मिस्र चला गया, जहाँ जामेअ अमरू में लोगों को पानी पिलाने लगा। वहाँ यह विद्वानों की सभाओं में जाता आता था। कुछ समय बाद यह बगदाद गया। खलीफ़ा मुअतसिम ने इसकी कविता की ख्याति सुनकर इसे अपने दरबार में रख लिया। खलीफा के अतिरिक्त मंत्रियों तथा सरदारों पर भी कविता करता था और उनके प्रसाद तथा पुरस्कारों से संतुष्ट था। इसकी अवस्था अभी अधिक नहीं हुई थी कि मौसल में इसकी मृत्यु हो गई।

अबूतमाम के दीवान में प्रशस्ति, मरसिया,ग़्ज़ाल, आत्मप्रशंसा आदि सभी प्रकार की कविताएँ मिलती हैं। काव्यशैली वैज्ञानिक तथा दार्शनिक है। यदि हमें एक ओर उसमें उच्च विचार तथा सुकुमार भाव मिलते हैं, तो दूसरी ओर अप्रचलित शब्द और उलझी कल्पनाएँ भी मिलती हैं। इसकी शैली क्लिष्ट हो गई है। अबूतमाम की एक और कृति है, जिसपर इसकी प्रसिद्धि विशेष रूप से आधारित है। यह अरब के कवियों की रचनाओं का संकलन है, जो विभिन्न भागों में बँटा है। इसमें एक भाग हमास: (वीरता) भी है और इसी संबंध से इसने इस संग्रह का नाम 'दीवान अल् हमास:' रखा है। इसका काल सन् १८० हि. से सन् २२८ हि. (सन् ७९६ ई. से सन् ८४३ ई. )तक है। (आर.आर.शे.)