अबुल फ़िदा सीरिया के प्रसिद्ध इतिहासकार तथा भूगोलवेत्ता; जन्म दमिश्क, नवंबर,१२७३ । अबुल फ़िदा का संबंध अय्युबिद शासक परिवार से है। उन्होनें अपने चाचा हामा के शाहज़ादे मलिक मंसूर के अनुशासन में रहकर हमलावरों के खिलाफ हुए युद्ध में मुख्य भाग लिया। सन् १२९९ ई. में अपने नि:संतान भतीजे, महमूद द्वितीय के मरने के बाद अबुल फ़िदा को आशा थी कि वे हामा के राज्यप्रमुख पद के अधिकारी होगें, किंतु उन्हें निराश होना पड़ा और यह पद सांकर नामक एक अमीर को दिया गया। अबुल फ़िदा ने मामलुक सुल्तानों के यहाँ नौकरी कर ली। अपनी नौकरी के बारह वर्षों के बाद १४ अक्टूबर,१३१० ई. को वे हामा के जागीरदार हो गए। दो साल बाद उनका सामंत पद प्रादेशिक शासक के रूप में बदल गया। सन् १३१९ ई. में उन्होंने सुल्तान मुहम्मद के साथ हज की यात्रा की। पुन: काहिरा लौटने पर सुल्तान ने अबुल फ़िदा को अल-मलिक अल मूअय्यिद की उपाधि दी और सुल्तान पद के सिरोपा से विभूषित किया। इस प्रतिष्ठा के अतिरिक्त उन्हें सीरिया के सभी गवर्नरों की अपेक्षा अधिक महत्व दिया गया। २७ अक्टूबर, १३३१ ई. को उनकी मृत्यु हो गई।

अबुल फ़िदा साहित्यिक रुचि और परिष्कृत विचारों वाले शाहज़ादा थे। उन्होंने अनेक विद्वानों तथा साहित्यकारों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया, धार्मिक और साहित्यिक विषयों पर गद्य और पद्य में कई पुस्तकें लिखीं, किंतु लगभग सभी रचनाएँ नष्ट हो गईं। केवल दो पुस्तकें ही, जो इतिहास और भूगोल पर लिखी गई है, प्राप्त हैं जिनपर उनकी ख्याति आधारित है। मूख्तसर तारीख--इल--बशर (मानव का संक्षिप्त इतिहास) एक सार्वभौम इतिहास है जिसमें सन् १३२९ ई. तक का वर्णन है। इसका प्रारंभिक भाग मुख्यत: इब्नी असीर की कृति पर आधारित है। इसका प्रकाशन १८६९ में हुआ।

तकवीम--इल--बुलदान गणित और भौतिक आँकड़ों से युक्त एक वर्णनात्मक भूगोल है जिसका अबूल फ़िदा के बाद के लेखकों ने पर्याप्त मात्रा में अनुसरण किया। इसका संपादन जे.टी. रीनानुद और मकगुकिन द स्लेन ने किया और १८४० ई. में यह पेरिस से प्रकाशित हुआ।

सं.ग्रं._ अबुल फ़िदा के ग्रंथों में आए हुए आत्मचरितात्मक उद्धरणों के अतिरिक्त निम्नलिखित पुस्तकों से उनके विषय में सूचनाएँ मिलती हैं: कुतुबी फवात: (कैरो, १९५१) भाग १, पृ. ७०; अलदुहार अलनमीना, इब्न ज़ज़र अस्क़लानी (हैदराबाद, १९२९), भाग १, पृ. ३७१-३७३; तबाकत-उश-शफीयह सुबकी, भाग ६, पृ. ८४-८५; इंट्रोडक्शन टु दि हिस्ट्री आव साइंस; जी सार्टन (बाल्टीमोर, १९४७) भाग ३, पृ. २००, ३०८, ७९३-९। (यू.हु.खाँ)