अबुल फज़्ल अकबर के दरबार के प्रसिद्ध इतिहासकार और विद्वान्। १४ जनवरी,१५५१ ई. को आगरा में पैदा हुए । अपने पिता शेख मुबारक की देखरेख में इन्होंने अध्ययन किया। इनके पिता उदार विचारों के विद्धान् थे और इसी कारण इन्हे कट्टर मुल्लाओं के दुर्व्यवहार सहने पड़े। अबुल फज्ल अत्यधिक मेधावी बालक थे। १५ वर्ष की उम्र में इन्होंने उस जमाने का समस्त परंपरागत ज्ञान प्राप्त कर लिया। १५७४ ई. के आरंभ में बड़े भाई फ़ैजी ने उन्हें अकबर के सामने पेश किया। साल भर बाद जब अकबर ने इबादतखाना (पूजागृह) में जार्मिक विचार विमर्श आरंभ किया तब अबुल फज्ल ने अपने प्रकांड पांडित्य, दार्शनिक रूझान और उदार विचारों से सम्राट् का ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने अपने पिता के सहयोग से मशहूर महजर तैयार किया जिसने अकबर को मुज्तहिद से भी ऊँचा दर्जा दिया और उन्हें वह शक्ति प्रदान की जिससे मुल्लाओं के आपसी मतभेद पर वे निर्णय करने योग्य हो सके। क्रमश: वे अकबर के प्रियपात्र बन गए और एक दिन सम्राट् ने उन्हें अपना निजी सचिव बना लिया। अधिकांश कूटनीतिक पत्रव्यवहार उन्हीं को करने पड़ते थे और विदेशी शासकों तथा अमीरों को पत्र भी वे ही लिखते थे। १५८५ ई. में उन्हें एकहजारी मनसब मिला। पाँचहजारी मनसब तक पहुँचने में उन्हें १८ साल लगे। सन् १५९९ में उनकी नियुक्ति दक्षिण में हुई जहाँ उन्हें अपनी शासकीय योग्यता भी प्रमाणित करने का अवसर मिला। जब शाहजाएदा सलीम ने विद्रोह किया तब अकबर ने उन्हें दकन से बुला लिया। जब वे राजधानी जा रहे थे और रास्ते में थे तब २२अगस्त, १६०२ई. को शाहजादा सलीम के इशारे पर राजा वीरसिंह बुंदेला ने उनकी हत्या कर दी। उनका सिर इलाहाबाद में सलीम के पास भेजा गया और शरीर ग्वालियर के समीप अंतरो ले जाकर दफना दिया गया।
अबुल फज़्ल ने बहुत लिखा है। उनकी रचनाओं में मुख्य हैं, अकबरनामा, आईन ए अकबरी, कुरान की टीका, बाइबिल का फारसी अनुवाद (अप्राप्य), इयार--ए--दानिश (अनवर--ए--सुहैली का आधुनिक रूपांतर); तारीख-ए-अल्फ़ी की भूमिका (अप्राप्य) ओर महाभारत का फारसी अनुवाद। उनके पत्रों और फुटकल रचनाओं का संपादन उनके भतीजे अब्दुस्-समद ने मक़्तबात--ए--अल्लामी (पुष्पिका में इसकी समाप्ति की तिथि १०१५ हिजरी--१६०६ ई. दी हुई है) शीर्षक से किया है। यह संग्रह इंशा-ए-अबुल फज़्ल नाम से विख्यात है। इसका संपादन उनके भतीजे नूरुद्दीन मुहम्मद ने किया था।
अबुल फज़्ल का महत्व उनके अकबरनामा के कारण अधिक है। उसमें अकबर के शासन का विस्तृत इतिहास है और साथ ही तीन दफ्तरों में उसके पूर्वजों का भी उल्लेख है। प्रथम दो दफ्तर एशियाटिक सोसाइटी (तीन भागों में) से प्रकाशित हुए थे। तीसरा दफ्तर, जिसका स्वतंत्र शीर्षक आईन--ए--अकबरी है, साम्राज्य के शासन और सांख्यिकी से संबद्ध है। इससे भारत की भौगोलिक परिस्थिति तथा सामाजिक और जार्मिक जीवन के संबंध में महत्वपूर्ण सूचनाएँ मिलती हैं। आईन-ए-अकबरी का वास्तविक महत्व कुछ दूसरी ही बात में है। उससे अल्बेरूनी के बाद के मुस्लिमकालीन भारत तथा हिंदू दर्शन ओर हिंदुओं के तौर--तरीकों की सम्यक् जानकारी होती है।
अबुल फज़्ल का सुलह--ए--कुल (शांति)की नीति में पूरा विश्वास था। धार्मिक मामलों के प्रति उनका दृष्टिकोण बहुत ही उदार था। उन्होनें मुल्लाओं के प्रभाव को दूर करने में अकबर का पूरा नैतिक समर्थन तो किया ही, साथ ही उनकी राज्यनीतियों के निर्माण के लिए व्यापक और अधिक उदार आधार प्रस्तुत किया।
अबुल फज़्ल का फारसी गद्य पर पूरा अधिकार था। उनकी शैली यद्यपि अत्यधिक अलंकृत है, फिर भी उनकी अपनी है।
सं.ग्रं.---आईन-ए-अकबरी इंशा-ए-अबुल फज़्ल (।।); तबक़ात-ए-अकबरी निजामुद्दीन (जिल्द, २, पृ. ४५८); मुंतखाब-उल्-तवारीख (बदायुनी, जिल्द २, पृ. १७३, १९८-२००० आदि); म-आसेरुल-उमरा (जिल्द २, पृ. ९०८-२२); दरबार-ए-अकबरी, मुहम्मद हुसैन आजाद (लाहौर, १९१०, उर्दू, पृ.४६३-५०८); ए हिस्ट्री आव परसियन लैंग्वेज ऐंड लिटरेचर ऐट द मुग़्ला कोर्ट (अकबर पर लिखा गया भाग) एम.ए.ग़्नाी (इलाहाबाद, १९३०, पृ. २३०-२४६)। (यू.हु.खाँ)