अप्सरा (१) प्रत्येक धर्म का यह विश्वास है कि स्वर्ग में पुण्यवान् लोगों को दिव्य सुख, समृद्धि तथा भोगविलास प्राप्त होते हैं और इनके साधन में अन्यतम है अप्सरा जाए काल्मनिक, परंतु नितांत रूपवती स्त्री के रूप मे चित्रित की गई हैं। यूनानी ग्रंथों मे अप्सराओं को सामान्यत: 'निफ' नाम दिय गया है। ये तरुण, सुंदर, अविवाहित, कमर तक वस्त्र से आच्छादित, और हाथ मे पानी से भरे हुआ पात्र लिए स्त्री के रूप मे चित्रित की गई हैं जिनका नग्न रूप देखनेवाले को पागल बना डालता है और इसलिए नितांत अनिष्टकारक माना जाता है। जल तथा स्थल पर निवास के कारण इनके दो वर्ग होते हैं।

भारतवर्ष मे अप्सरा और गंधर्व का सहचर्य नितांत घनिष्ठ है। अपनी व्युत्पति के अनुसार ही अप्सरा (अप्सु सरत्ति गच्छतीति अप्सरा:) जल में रहनेवाली मानी जाती है। अथर्व तथ यजुर्वेद के अनुसार ये पानी में रहती हैं इसलिए कहीं--कहीं मनुष्यों को छोड़कर नदियों और जल--तटों पर जाने के लिए उनसे कहा गया है। यह इनके बुरे प्रभाव की ओर संकेत है। शतपथ ब्राह्मण में (११/५/१/४) ये तालाबों मे पक्षियों के रूप में तैरनेवाली चित्रित की गई हैं और पिछले साहित्य में ये निश्चित रूप से जंगली जलाशयों में, नदियों में, समुद्र के भीतर वरुण के महलों मे भी रहनेवाली मानी गई हैं । जल के अतिरिक्त इनका संबंध वृक्षों से भी हैैं। अथर्ववेद (४।३७।४) के अनुसार ये अश्वत्थ तथा न्यग्रोध वृक्षों पर रहती हैं जहाँ ये झूले में झूला करती हैं और इनके मधुर वाद्यों (कर्करी) की मीठी ध्वनि सुनी जाती है। ये नाच गान तथा खेलकूद में निरत होकर अपना मनोविनोद करती हैं । ऋग्वेद में उर्वशी प्रसिद्ध अप्सरा मानी गई है (१०/९५)।

पुराणों के अनुसार तपस्या मे लगे हुए तापस मुनियों को समाधि से हटाने के लिए इंद्र अप्सरा को अपना सुकुमार, परंतु मोहक प्रहरण बनाते हैं। इंद्र की सभा में अप्सराओं का नृत्य और गायन सतत आह्लाद का साधन है। घृताची, रंभा, उर्वशी, तिलोत्तमा, मेनका, कुंडा आदि अप्सराएँ अपने सौंदर्य और प्रभाव के लिए पुराणों मे काफी प्रसिद्ध हैं। इस्लाम में भी स्वर्ग में इनकी स्थिति मानी जाती है। फारसी का 'हूरी' शब्द अरबी 'हवरा' (कृष्णलोचना कुमारी) के साथ संबद्ध बतलाया जाता है।

(ब.उ.)

अप्सरा (२) भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, ट्रांबे (बंबई) में स्थापित भारतवर्ष की प्रथम परमाणु भट्टी (रिऐक्टर) का नाम है। इसकी रूपरेखा, डिजाइन आदि डा. भाभा एवं उनके सहयोगी वैज्ञानिकों तथा इंजीनियरों ने १९५५ ई. में तैयार की थी । यह सर्वप्रथम ५ अगस्त, १९५६ ई. को प्रात: ३ बजकर ४५ मिनट पर क्रांतिक (क्रटिकल)अवस्था में पहुँचा। इसका उद्घाटन २० जनवरी, सन, १९५७ ई. को प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था।

अप्सरा रिऐक्टर भवन का आकार ३०.५ुं१५.२ुं१८.३ मीटर और रिऐक्टर कुंड (पूल) का आकार ८.५ुं३.०ुं८.२ मीटर है। अप्सरा की ऊर्जा उत्पादन की अधिकतम शक्ति १००० किलोवाट है, लेकिन इसका प्रचालन सामान्यत: ४०० किलोवाट शक्ति तक ही किया जाता है।

पिछले १६ वर्षों के अंतर्गत अप्सरा में बहुत से महत्वपूर्ण परीक्षण किए जाए चुके हैं और प्रति वर्ष लाखों रुपए की लागत के रेडियो समस्थानिकोें का निर्माण किया जाता है। यह रिएक्टर भौतिकी, रसायन और जैविकी आदि के क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए बहुत लाभदायक है। अनुसंधान प्रयोगों के अतिरिक्त इस रिऐक्टर में रेडियो समस्थानिकों का निर्माण भी काफी मात्रा में किया जाता है। इन रेडियो समस्थानिकों का उपयोग बड़े बड़े उद्योगों और अस्पतालों में किया जाता है।

अप्सरा रिऐक्टर का निर्माण और प्रचालन से प्राप्त हुए अनुभवोें के आधार पर ही भारत परमाणु शक्ति के क्षेत्र में इनता विकास कर सका है। (नि.सिं.)