अपाला अत्रि की ब्रह्मज्ञानी पुत्री जिसे कुष्ठ रोग होने के कारण पति ने छोड़ दिया था। यह पिता के यहाँ रहकर इंद्र को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगी। सोम को इंद्र की प्रिय वस्तु जानकर वह एक दिन नदी किनारे सोम ढूँढ़ने गई और मिल जाने पर वहीं जड़ी को चबाकर स्वाद का अनुभव करने लगी। इंद्र वहाँ आए और अपाला से सोम प्राप्त किया। उन्ही के वरदान से अपाला के पिता का गंजापन दूर हुआ, वह स्वयं प्रजनन के योग्य बनी और उसका कुष्ठ रोग चला गया। ऋग्वेद में एक सूक्त (८.११) में अपाला का उल्लेख है।
(स.)