अनेकांतवाद जैनमत के अनुसार सत्यज्ञान पूर्ण ज्ञान है; ऐसा ज्ञान उन लोगों के लिए ही संभव है जिन्होंने निर्वाण पद प्राप्त कर दृष्टिकोण से देखने के कारण, अपूर्ण और सापेक्ष ज्ञान ही प्राप्त कर सकता है। ऐसे ज्ञान में सत्य और असत्य दोनों अंश विद्यमान होते हैं। प्रत्येक को यह कहने का अधिकार नहीं कि जो कुछ किसी अन्य मनुष्य को उसके दृष्टिकोण से दीखता है, उसे असत्य कहे। अनेकांतवाद अहिंसा के लिए एक दार्शनिक आधार प्रस्तुत करता है। (दी.चं.)