अनुशयबौद्ध परिभाषा के अनुसार संसार का मूल अनुशय है। (१) रागतृष्णा, (२) प्रतिघद्वेष, (३) मान, (४) अविद्या विद्या का विरोधी तत्व, (५) दृष्टिविशेष प्रकार की मान्यता या दर्शन, जैसे सत्कादृष्टि मिथ्यादृष्टि आदि, और (६) विचिकित्सासंशय, ये छह 'अनुशय' हैं। ये ही अनुशय संयोजन, बंधन ओघ, आस्रव आदि शब्दों द्वारा भी व्यक्त किए गए हैं। अन्य दर्शनों में वासना, कर्म, अपूर्व, अदृष्ट, संस्कार आदि नाम से जिस तत्व को बोध होता है उसे बौद्धों ने अनुशय कहा है। अनुशय की हानि का उपाय विशेष रूप से बौद्धों ने बताया है।
सं.ग्रं.-अभिधर्मकोश, पंचम कोषस्थान। (द.मा.)