अनुयोग जैन आगमों की व्याख्या का नाम अनुयोग है। प्राचीन काल में आगम के प्रत्येक वाक्य की व्याख्या नयों के आधार पर होती थी किंतु आगे चलकर मंदबुद्धि पुरुषों की अपेक्षा से आर्यरक्षित ने शास्त्रों के अनुयोंग को चार प्रकार से विभक्त किया, यथा १. द्रव्यानुयोग, अर्थात् तत्त्वविचारणा, २. गणितानुयोग, अर्थात् लोकसंबंधी गणित की विचारणा, ३. चरणकरणानुयोग, अर्थात साधु के आचार की विचारणा, और ४. धर्मकथानुयोग, अर्थात् धर्मबोधक कथाएँ। इन अनुयोगों के आधार पर तत्तद्विषयों के प्राधान्य को लेकर शास्त्रों का भी विभाग किया जाने लगा, जैसे आचारांग आदि चरणकरणानुयोग में, उवासग दसा आदि को धर्मकथनुयोग में शामिल किया गया। अनुयोग की प्रक्रिया का वर्णन करने वाला प्राचीन ग्रंथ अनुयोगद्वार है जिसमें आवश्यक सूत्र के सामचिक अध्ययन की व्याख्या की गई है। उसी प्रक्रिया से व्याख्याकारों ने अन्य शास्त्रों की भी व्याख्या की है।

सं.ग्रं.-अनुयोगद्वार सूत्र, विशेषत: उसके ५६वें सूत्र की व्याख्या। (द.मा.)