अनंतमूल को संस्कृत में सारिवा, गुजराती में उपलसरि, कावरवेल इत्यादि, हिंदी, बँगला और मराठी में अनंतमूल तथा अंग्रेजी में इंडियन सार्सापरिला कहते हैं।
यह
एक बेल है जो
लगभग सारे भारतवर्ष
में पाई जाती
है। लता का रंग
मालामिश्रित
लाल तथा इसके
पत्ते तीन चार
अंगुल लंबे, जामुन
के पत्तों के आकार
के, पर श्वेत लकीरोंवाले
होते हैं। इनके
तोड़ने पर एक प्रकार
का दूध जैसा
द्रव निकलता है।
फूल छोटे और
श्वेत होते हैं।
इनपर फलियाँ
लगती हैं। इसकी
जड़ गहरी लाल
तथा सुगंधवाली
होती है। यह
सुगंध एक उड़नशील
सुगंधित द्रव्य
के कारण होती
है, जिसपर इस
औषधि के समस्त
गुण अवलंबित
प्रतीत होते है।
औषधि के काम
में जड़ ही आती है।
आयर्वैदिक रक्तशोशक ओषधियों में इसी का प्रयोग किया जाता है। काढ़े या पाक के रूप में अनंतमूल दिया जाता है। आयुर्वेद के मतानुसार यह सूजन कम करती है, मूत्ररेचक है, अग्निमांद्य, ज्वर, रक्तदोष, उपदंश, कुष्ठ, गठिया, सर्पदंश, वृश्चिकदंश इत्यादि में उपयोगी है। (भ.दा.व.)