अनंत गुणनफल १,२,३,... को एक विशेष क्रम में गुणा करने पर जो व्यंजक १,२,३,... बनता है उसे अनंत गुणनफल (इनफिनिट प्रॉडक्ट) कहते हैं। यदि १,२,३,... इन खंडों में से कोई खंड, मान लें , शून्य हो तो गुणनफल का मान शून्य होगा। अत: हम मान लेंगे कि कोई खंड शून्य नहीं है। अब हम १,२,३,... के लिए गुस लिखा करेंगे। यदि जब ®¥, तब गुस किसी ऐसी सीमा के लिए अग्रसर होता है जो न तो अनंत (¥) है और न शून्य, तो कहा जाता है कि अनंत गुणनफल १,२,३,... अभिसारी (कॉनवर्जेट) है; अन्यथा उसे अनभिसारी (नॉनकॉनवर्जेट) अथवा अपसारी (डाइवर्जेट) कहा जाता है। उदाहरणार्थ,

. . . अनंत तक

एक अभिसारी गुणनफल है, क्योंकि यहाँ गुस की सीमा न अनंत है और न शून्य; परंतु गुणनफल

. . . अनंत तक

एक अपसारी गुणनफल है, क्योंकि यहाँ प्रथम खंडों का गुणनफल १/(स+१)२ है, जो के अनंत की ओर अग्रसर होने पर शून्य की ओर अग्रसर होता है। कोशी के अभिसरण नियम के अनुसार, गुणनफल के अभिसरण के लिए यह आवश्यक और पर्याप्त है कि किसी इच्छानुसार छोटी संख्या इ के दिए रहने पर, हम सदा ऐसी संख्या स (इ) पा सकें कि स>(इ) के लिए और श=१,२,३, ...के लिए,

|फस+१फस+२...फस+- | <इ। ।

विशेषत:, यह आवश्यक है कि सीमा स®¥ =

अत:, यदि हम स के बदले १+स लिखा करें तो अनंत गुणनफल का सामान्य रूप

(१+क१)(१+क२)(१+क३)...

होगा और यदि गुणनफल अभिसारी हो तो

सीमाक®¥ =

अभिकरण की जाँच-अनंत गुणनफल के अभिसरण की दो सरल विधियाँ निम्नलिखित हैं :

(क) यदि प्रत्येक के लिए ³तो गुणनफल

P(१+स)

तभी अभिसारी होगा जब श्रेणी Sसअभिसारी होगी, क्योंकि अनुक्रम (सीक्वेन्स)

Pस(१+कट)

एकस्विनी वृद्धिमय (मोनोटोनिक इनक्रीजिंग)है और

< (१+ट)

घात लघु (१+ट)

लघु (१+ट)

< घातट।

अत:, यदि >तो अनंत गुणनफल

अभिसारी होगा; यदि अ£१, तो पूर्वोक्त गुणनफल अपसारी होगा।

(ख) यदि प्रत्येक के लिए तो £<१, तो गुणनफल

तभी अभिसारी होगा जब अनंत श्रेणी

अभिसारी होगी।

निरपेक्ष अभिसरण-गुणनफल P(१+स) को निरपेक्षत: अभिसारी (ऐब्सोल्यूटली कॉनवर्जेट) तब कहा जाता है जब गुणनफल P(१+||) अभिसारी होता है। अत: उपरिलिखित नियम () से यह निष्कर्ष निकलता है कि गुणनफल P(१+स) तभी निरपेक्षत: अभिसारी होगा जब Sस निरपेक्षत: अभिसारी होगा।

यदि कोई श्रेणी Sस निरपेक्षत: अभिसारी हो तो अवश्य ही वह अभिसारी भी होगी, और ऐसी श्रेणी का अभिसरण अपने पदों के क्रम पर निर्भर नहीं रहेगा। इसी प्रकार हम यह भी कह सकते हैं कि यदि P(१+स) निरपेक्षत: अभिसारी हो, तो गुणनफल अभिसारी होगा और गुणनफल एक ऐसे मान की ओर अभिसारी होगा जो गुणनखंडों के क्रम पर निर्भर नहीं है। फिर, यदि कोई श्रेणी अनिरपेक्षत: अभिसारी हो तो हम जानते हैं कि उपयुक्त पुनर्विन्यास (रिअरेंजमेंट) द्वारा वह किसी भी योग की ओर अभिसारी होनेवाली अथवा अपसारी अथवा प्रदोली (ऑसिलेटिंग) बनाई जा सकती है। इसी प्रकार प्रत्येक अनिरपेक्षत: अभिसारी अनंत गुणनफल भी, खंडों के क्रम में परिवर्तन करने से, किसी निश्चित मान की ओर अभिसारी या अपसारी या प्रदोली बनाया जा सकता हे।

अभिसरण संबंधी अन्य नियम-अब हम P(१+स) की संसृति पर विचार करेंगे, जिसमें स कोई वास्तविक संख्या है। अनंत गुणनफल के अभिसरण के निमित्त स को, के अनंत की ओर अग्रसर होने पर, शून्य की ओर प्रवृत्त होना चाहिए; अत: हम कल्पना कर सकते हैं कि आवश्यकतानुकूल खंडों की एक परिमित संख्या को छोड़कर, ³१के लिए, ||<१ है। अब यदि धनात्मक हो तो

<-लघु (१+) <२,

और यदि >>-१, तो

<-लघु (१+)< २/(१+)

अत: हम निम्नलिखित निष्कर्ष निकालते हैं:

(ग) यदि श्रेणी Sस अभिसारी हो तो अनंत गुणनफल (१+स) तभी अभिसारी होगा, जब श्रेणी Sस अभिसारी हागी; अथवा अनंत की ओर अपसारी होगा, जब Sस अनंत की ओर अपसारी होगी; अथवा शून्य की ओर अपसारी होगा, जब Sस ऋण अनंत की ओर अपसारी होगी; अथवा दोलित होगा, जब Sस दोलित होगी।

यदि Sस२ अपसारी हो और Sस अभिसारी हो या परिमित रूप से दोलित हो, तो गुणनफल P(१+प) शून्य की ओर अपसारी होगा।

इस उपयोगी नियम का अपवाद तब उत्पन्न होता है, जब Sस२ अपसारी रहता है Sसऔर भी अपसारी रहता है, या अनंत रूप से दोलित रहता है। ऐसी दशा में गुणनफल अपसारी अथवा अभिसारी हो सकता है।

सामान्यत: अनंत गुणनफल की अभिसरण समस्या सदैव अनंत श्रेणी की अभिसरणसमस्या से निम्नलिखित साध्य द्वारा संबद्ध की जा सकती है :

(घ) अनंत गुणनफल P(१+स) तभी अभिसारी होगा श्रेणी S लघ ु(१+स) अभिसारी होगी। यदि हम समस्त लघुगणकों के मुख्य मानों (प्रिंसिपल वैल्यूज) को ही लें तो यह साध्य संकर (कॉम्प्लेक्स)के लिए भी ठीक है।

फलनों के गुणनफल-अनंत गुणनफल

{+स()}

के एकरूप (यूनीफार्म) अभिसरण की व्याख्या, जब इसके पद वास्तविक चलराशि के या संकर चलराशि ल के फलन हों, श्रेणी () की भाँति की जा सकती है। ऐसे गुणनफल का एकरूप अभिसरण तभी संभव है जब

{+स()},

के मानों के किसी क्षेत्रविशेष में, एकरूपत: ऐसी सीमा की ओर अभिसारी हो जो कभी शून्य नहीं होती।

कुछ विशेष गुणनफल-हम ज्या p को निम्नलिखित गुणनफल से व्यक्त कर सकते हैं।

विशेषत:, यदि =, तो हमें वलिस का सूत्र प्राप्त होता है, जो निम्नलिखित है:

गामा फलन G () भी एक ऐसा फलन है जो सरलता से अनंत गुणनफल द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। यदि कोई धनात्मक पूर्ण संख्या हो तो ! का अर्थ सभी जानते हैं। परंतु यदि धनात्मक पूर्ण संख्या न हो तो !की परिभाषा हम यह दे सकते हैं कि

!=G (+१)

=,-१,-२,... को छोड़ के समस्त मानों के लिए G() को हम निम्नलिखित सूत्र से परिभाषित कर सकते हैं :

G()

जिसमें एक अचर है जिसे आयलर अचर (ऑयलर कॉन्स्टैंट) कहते हैं। इस सूत्र द्वारा हम सिद्ध कर सकते हैं कि

G(+१)=G(), G(१)=

G()G(१-)= pव्युज्या p

संख्या-विभाजन-सिद्धांत के अंतर्गत हमें निम्नलिखित प्रकार के गुणनफल मिलते है :

जिनमें <<<... । यदि विभाजन संख्या गु () से निरूपित की जाय तो गु ()का जनक फलन, आयलर के अनुसार, फा () होगा, जहाँ

फा ()

यदि फी (स) उन धनात्मक पूर्ण संख्याओं की संख्या को व्यक्त करे जो से कम और के प्रति रूढ़ (प्राइम) हैं तो

फी (स)=

जिसमें / का अर्थ है के रूढ़ खंडों से बना गुणनफल।

यदि जी (ष) रीमान का जीटा फलन है तो >१ के लिए

जी ()

जिसमेंसमस्त रूढ़ संख्याओं पर व्याप्त है।

सं.गं.-टी.जे. ब्रामविच: ऐन इंट्रोडक्शन टु दि थ्योरी ऑव इनफिनिट सीरीज (१९२६); के. क्नॉप: थ्योरी ऐंड ऐप्लिकेशन ऑव इनफिनिट सीरीज (१९२८); वायर्स्ट्रास के खंड-साध्य, गामा फलन, रीमान के जीटा फलन, संख्या-विभाजन-सिद्धांत और अंकगणितीय फलनों के लिए ई.सी. टिशमार्श: थ्योरी ऑव फंकशंस (१९२९) देखें; ई.टी. कॉप्सन: थ्योरी ऑव फंकशंस ऑव ए कंप्लेक्स बेरिएबल (१९३५) और हार्डी तथा राइट: थ्योरी ऑव नंबर्स (१९४५) भी द्रष्टब्य हैं। (स्व.मो.शा.)