अध्यात्मरामायण वेदांत दर्शन आधारित रामभक्ति का प्रतिपादन करनेवाला रामचरितविषयक संस्कृति ग्रंथ। इसे 'अध्यात्म-रामचरित' (१-२-४) तथा 'आध्यात्मिक रामसंहिता' (६-१६-३३) भी कहा गया है। यह उमा-महेश्वर-संवाद के रूप में है और इसमें सात कांड एवं ६५ अध्याय हैं जिन्हें प्राय: व्यास रचित और 'ब्रह्मांडपुराण' के 'उत्तरखंड' का एक अंश भी बतलाया जाता है, किंतु यह उसके किसी भी उपलब्ध संस्करण में नहीं पाया जाता। 'भविष्यपुराण' (प्रतिसर्ग पर्व) के अनुसार इसे किसी शिवोपासक राम शर्मन् ने रचे जिसे कुछ लोग स्वामी रामानंद भी समझते हैं, कितु यह मत सर्वसम्मत नहीं है। इसका रचनाकाल ईस्वी १४वीं सदी के पहले की नहीं माना जाता और साधारणत: यह १५वीं सदी ठहराया जाता है। इसपर अद्वैत मत के अतिरिक्त योगसाधना एवं तंत्रों का भी प्रभाव लक्षित होता है। इसे रामभक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कहा गया है। इसमें राम, विष्णु के अवतार होने के साथ ही, परब्रह्म या निर्गुण ब्रह्मा भी मान गए और सीता की योगमाया कहा गया है। तुलसीदास का 'रामचरितमानस' इससे बहुत प्रभावित है। (प.च.)