अद्भुत रामायण संस्कृत भाषा में रचित २७ सर्गों का काव्यविशेष। कहा जाता है, इस ग्रंथ के प्रणेता बाल्मीकि थे। किंतु इसकी भाषा और रचना से लगता है, किसी बहुत परवर्ती कवि ने इसका प्रणयन किया है। कथानक इसका सचमुच अद्भुत है। राज्याभिषेक होने के उपरांत मुनिगण राम के शौर्य की प्रशस्ति गाने लगे तो सीता जी मुस्कुरा उठीं। हँसने का कारण पूछने पर उन्होंने राम को बताया कि आपने केवल दशानन का वध किया है, लेकिन उसी का भाई सहस्रानन अभी जीवित है। उसके पराभव के बाद ही आपकी शौर्यगाथा का औचित्य सिद्ध हो सकेगा। राम ने, इस पर, चतुरंग सेना सजाई और विभीषण, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान आदि के साथ समुद्र पार करके सहस्रस्कंध पर चढ़ाई की। सीता भी साथ थीं। परंतु युद्ध स्थल में सहस्रानन ने मात्र एक बाण से राम की समस्त सेना एवं वीरों को अयोध्या में फेंक दिया। रणभूमि में केवल राम और सीता रह गए। राम अचेत थे; सीता ने असिता अर्थात् काली का रूप धारण कर सहस्रमुख का वध किया।
हिंदी में भी इस कथानक को लेकर कई काव्यग्रंथों की रचना हुई है जिनका नाम यातो अद्भुत रामायण है या जानकीविजय। १७७३ ई. में पं. शिवप्रसाद ने, १७८६ ई. में राम जी भट्ट ने, १८वीं शताब्दी में बेनीराम ने, १८०० ई. में भवानीलाल ने तथा १८३४ ई. में नवलसिंह ने अलग-अलग अद्भुत रामायण की रचना की। १७५६ ई. में प्रसिद्ध कवि और १८३४ ई. में बलदेवदास ने जानकीविजय नाम से इस कथानक को अपनी-अपनी रचना का आधार बनाया। (कै. चं. श.)