अड़ूसा (वासक) के पौधे भारतवर्ष में सर्वत्र होते हैं। ये पौधे ४,००० फुट की ऊँचाई तक पाए जाते हैं और चार से आठ फुट तक ऊँचे होते हैं। पूर्वी भारत में अधिक तथा अन्य भागों में कुछ कम मिलते हैं। कहीं-कहीं इनसे वन भरे पड़े हैं और कहीं खाद के काम में लाने के लिए इनकी खेती भी होती है। इनके पत्ते लंबे, अमरूद के पत्तों के सदृश होते हैं। ये पौधे दो प्रकार के, काले और सफेद, होते हैं। श्वेत अड़ू से के पत्ते हरे और श्वेत धब्बे वाले होते हैं। फूल दोनों के श्वेत होते हैं, जिनमें लाल या बैंगनी धारियाँ होती हैं।
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इसकी जड़, पत्ते और फूल तीनों ही औषधि के काम आते हैं। प्रामाणिक आयुर्वेद ग्रंथों में खाँसी, श्वास, कफ और क्षय रोग की इसे अनुभूत औषधि कहा गया है। इसके पत्तों को सिगरेट बनाकर पीने से दमा शांत होता है। रासायनिक विश्लेषण से इसमें वासिसिन नामक ऐल्कालाएड (क्षार) तथा ऐट्टोडिक नामक अम्ल पाए गए हैं। (भ. दा. व.)