अग्निसह भवन ऐसे भवन को कहते हैं जिसके भीतर रखे या आसपास बाहर रखे सामान में आग लगने पर भवन स्वयं जलने नहीं पाता। सौभाग्य की बात है कि भारतवर्ष में अधिकांश घरों की दीवारें अग्निसह होती हैं; कहीं-कहीं केवल छत, जब तक विशेष प्रबंध न किया जाए, अग्निसह नहीं होती; परंतु यूरोप आदि ठंडे देशों में, ठंड से बचने के लिए, फर्श, छत और दीवारें भी बहुधा लकड़ी की बनती हैं या उन पर लकड़ी की तह चढ़ी रहती है। इसलिए वहाँ आग से बहुधा भारी क्षति हो जाती है। जिन भवनों को वे लोग पहले अदह्य (फ़ायरप्रूफ़) कहते थे, उनमें भी आग लग जाने पर गहरी हानि हुई। उदाहरणत सन् १९४२ में अमरीका के एक नाइटक्लब (मदिरापान-गृह) में आग लग जाने पर ४९१ व्यक्तियों की मृत्यु हो गई, यद्यपि भवन अदह्य श्रेणी में गिना जाता था। इसलिए अब अदह्य के बदले अग्निसह (फ़ायर रेज़िस्टैंट) शब्द का अधिक प्रयोग होता है।
किसी भवन को अग्निसह बनाने के लिए उसके निर्माण में ऐसी वस्तुओं का ही प्रयोग करना चाहिए जो अग्निसह हों। वैसे तो संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिस पर ताप का घातक प्रभाव न पड़ता हो, तो भी साधारणत ऐसी वस्तुओं को, जो अग्नि अथवा ताप के प्रभाव से सुगमता तथा शीघ्रता से नष्ट नहीं होतीं, हम अग्निसह कहते हैं। देखा गया है कि मकान में आग लगने पर आग का ताप ७००° सेंटीग्रेड से ९००° सें. तक रहता है। अत भवन निर्माण में यदि ऐसी वस्तुएँ प्रयोग में लाई जाएँ जिन पर इस ताप का घातक प्रभाव न पड़े, तो भवन को हम अग्निसह कह सकते हैं। इस प्रकार ईटं, कंक्रीट तथा पकाई अथवा कच्ची मिट्टी तथा ऐस्बेस्टस इत्यादि अग्निसह पदार्थों की सूची में आती हैं।
जलते भवनों में लोहा पिघलता तो नहीं पर फैलता और नरम हो जाता है। अत्यधिक विस्तार (एक्सपैंशन) अथवा नरमी के कारण वह झुक जाता है। इसलिए वह अग्निसह पदार्थों की सूची में नहीं रखा जा सकता, परंतु यदि वह कंक्रीट के भीतर दबा हो, जैसा रिइन्फोर्स्ड कंक्रीट में होता है, तब वह पर्याप्त अग्निसह हो जाता है। अत अग्निसह भवन के निर्माण के लिए मिट्टी, ईटं तथा कुछ मात्रा में कंक्रीट और रिइन्फोर्स्ड कंक्रीट उपयुक्त हैं।
लकड़ी लगभग २५०रू सें. के ताप पर सुगमता से आग पकड़ लेती है। अत अग्निसह भवन के लिए लकड़ी उपयुक्त नहीं है। कुछ विशेष रासायनिक द्रव्यों के लेप से लकड़ी भी एक सीमा तक अग्निसह बनाई जा सकती है। इसकी कुछ विधियाँ इस प्रकार हैं
(१) १०० किलोग्राम अमोनियम फ़ास्फेट, १० किलोग्राम बोरिक ऐसिड और १,००० लिटर पानी के घोल में लकड़ी डुबोने से वह बहुत कुछ अग्निसह हो जाती है।
(२) द्रव सोडियम सिलिकेट (लिक्विड सोडियम सिलिकेट) १,००० भाग, सफेदा (म्यूडन ह्वाइट) ५०० भाग, सरेस १,००० भाग को मिलाने से जो लेप तैयार होता है उसे लकड़ी पर लगाने से वह बहुत अग्निलह हो जाती है।
(३) (क)- ऐल्यूमिनियम सल्फेट २० भाग, पानी १,००० भाग;
(ख)- सोडियम सिलिकेट ५० भाग, पानी १,००० भाग। इन दोनों घोलों को मिलाएँ तथा लकड़ी पर लगाएँ।
(४) सोडियम सल्फेट ३५० भाग, बारीक ऐस्बेस्टस ३५० भाग, पानी १,००० भाग। इन सबको मिलाकर लकड़ी पर कई बार लेप करना चाहिए।
(५) लकड़ी पर चूने की सफेदी कई बार करने से भी यह एक सीमा तक अग्निसह हो जाती है।
लकड़ी की दीवारों पर निम्नलिखित अग्निसह घोल भी लगाया जा सकता है;
खड़िया ९० भाग, सफेद डेक्स्ट्रीन ११ भाग, प्लास्टर ऑव पेरिस ११ भाग, फिटकिरी ४ भाग, खाने वाला सोडा २ भाग। सबको बारीक पीसकर अच्छी तरह मिलाना चाहिए। फिर इसके चार भाग को ३ भाग खौलते पानी में मिलाने पर लेप तैयार होगा जिसको दीवार पर पोतना चाहिए।
यह लेप पानी तथा आग दोनों के प्रभाव को कम करता है।
इसी प्रकार छतों पर पोतने (पेंट करने) के लिए निम्नलिखित अग्निसह योग उपयोगी है
महीन बालू १ भाग, छानी हुई लकड़ी की राख २ भाग तथा चूना ३ भाग। सबको तेल में फेंटकर बुरुश से पेंट करें। यह योग सस्ता है और लकड़ी की छतों को पर्याप्त सीमा तक अग्निसह बना देता है।
भवनों में जहाँ आग जलाई जाने वाली हो, जैसे अंगीठी, चूल्हे या भट्ठी वाले स्थानों में, वहाँ अग्निसह मिट्टी या अग्निसह ईटं ही लगानी चाहिए। इसी प्रकार छत और फर्श में मिट्टी या पकी मिट्टी की टाइलों का प्रयोग उपयोगी होता है। फूस, लकड़ी, कपड़ा, कैनवस तथा अन्याय ऐसी वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए जो सुगमता से आग पकड़ लेती हैं। लोहे का गर्डर के बदले रिइन्फोर्स्ड कंक्रीट, अथवा उससे भी अच्छा रिइन्फोर्स्ड ब्रिकवर्क, ईटं या ईटं की डाट का प्रयोग करना चाहिए। पत्थर काफी मात्रा तक अग्निसह है, पर उतना नहीं जितनी ईटें। अधिक गरम होने के बाद शीघ्रता से ठंडा किए जाने पर पत्थर चिमट जाता है। (का. प्र.)