(२) तमिल भाषा का आद्य वैयाकरण। यह कवि शूद्र जाति में उत्पन्न हुए थे इसलिए यह शूद्र वैयाकरण के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह ऋषि अगस्त्य के ही अवतार माने जाते हैं। ग्रंथकार के नाम पर यह व्याकरण अगस्त्य व्याकरण के नाम से प्रख्यात है। तमिल विद्वानों का कहना है कि यह ग्रंथ पाणिनि की अष्टाध्यायी के समान ही मान्य, प्राचीन तथा स्वतंत्र कृति है जिससे ग्रंथकार की शास्त्रीय विद्वता का पूर्ण परिचय उपलब्ध होता है। (ब. उ.)