अंतरिक्ष स्टेशन अंतरिक्ष में मानव निर्मित ऐसे स्टेशन होते हैं जिनसे पृथ्वी से कोई अंतरिक्ष यान जाकर मिल सकता है। ये स्टेशन एक प्रकार के मंच हैं, जहाँ से पृथ्वी का सर्वेक्षण किया जा सकता है, आकाश के रहस्य मालूम किए जा सकते हैं और भविष्य में इन्हीं मंचों से ग्रहों की समानव यात्राएँ की जा सकेगी। अंतरिक्ष स्टेशन अपने कार्य के अनुरूप वैज्ञानिक शोध स्टेशन, संचार स्टेशन, अंतरिक्ष-नौकायन-स्टेशन, मौसम स्टेशन आदि कहलाते हैं। अगर स्टेशन पृथ्वी का उपग्रह होता है तब साधारणतया वैज्ञानिक इसे भू उपग्रह कहते हैं। अंतरिक्ष स्टेशनों का एक नाम कक्षीय स्टेशन भी है।
अप्रैल,
१९७१ में सोवियत
रूस ने १७.७५ टन भारी
सैल्यूत यान छोड़ा
था। इसमें कोई
यात्री नहीं था
लेकिन यह अनेक
यंत्रों से युक्त
था। रूसियों ने
यह चाहा कि इस
मानवरहित यान
के साथ एक मानवयुक्त
यान जोड़ा जाए
और फिर से
यात्री अनेक प्रकार
के परीक्षण करें।
परंतु ऐसा करने
में रूस असफल रहा
जिससे उसके यात्रियों
को पृथ्वी पर
वापस आना पड़ा।
जून, १९७१ में दूसरी बार रूसियों ने अंतरिक्ष स्टेशन को मानवयुक्त बनाने का प्रयत्न किया। उन्होंने सोयूज ११ छोड़ा जिसका वजन सवा सात टन था। यह २४ घंटे बाद सैल्यूत से मिल गया। इसमें विकसित डाकिंग (मिलन) प्रणाली प्रयोग की गई थी। परीक्षक इंजीनियर पात्सायर तीन सदस्यीय दल के नेता थे। इन लोगों को सैल्यूत में प्रवेश करने के बाद हैरानी हुई। इसमें रहने का कमरा बहुत बड़ा था जिसमें यंत्र लगे हुए थे। रसोई सहित घर के रख-रखाव का सारा सामान और छोटा-मोटा एक पुस्तकालय भी था।
इस समानव अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना होते ही अंतरिक्ष यात्रियों ने अपना काम प्रारंभ कर दिया। उन्होंने सैल्यूत की प्रणालियों की जाँच की, कुछ शारीरिक प्रशिक्षण किए और एक टेलिविजन कैमरे से पृथ्वी के चित्र लिए। यात्रियों ने दो तीन बार इंजन चलाकर सैल्यूत की कक्षा को ओर ऊँचा कर दिया। इससे अंतरिक्ष स्टेशन एक मास और पृथ्वी की परिक्रमा कर सकता था और अन्य सोयूज यान इससे जाकर मिल सकते थे। सोवियत वैज्ञानिकों का कहना है कि सैल्यूत सोयूज अंतरिक्ष स्टेशन अनेक भावी स्टेशनों की शुरुआत है। उनका यह भी कहना है कि भविष्य में अंतरिक्ष नगर बसेंगे और वहाँ फल, सब्जी आदि भी पैदा की जाएगी।
अमरीका ने अंतरिक्ष स्टेशन १९७३ में छोड़ने की योजना बनाई है, जिसका नाम स्काई लैब रखा गया है। (नि. सिं.)