विक्टोरिया, महारानी महारानी विक्टोरिया जाज्र तृतीय के चतुर्थ पुत्र ड्यूक ऑव केंट की एकमात्र पुत्री थीं। आपका जन्म २४ मई, सन् १८१९ ई. को केनसिंगटन के राजमहल में हुआ। पिता की छत्रच्छाया से वंचित राजकुमारी विक्टोरिया अपने योग्य मामा लियोपोल्ड की देखरेख में पलीं और सुशिक्षित हुईं। पाँच वर्ष की उम्र से ही आपकी शिक्षा प्रारंभ हुई तथा एक बड़ी ही योग्य महिला लेहजेन द्वारा पूरी हुई। बचपन से ही वह अपने चाचाओं से दूर रहीं तथा उनका जीवन बहुत कछ एकाकी ही रहा।
विलियम चतुर्थ की जून, १८३७ ई. में मृत्यु हो जाने के बाद आपने शासन की बागड़ोर सँभाली। आपके सुदीर्घ शासनकाल में अनेक प्रधान मंत्रियों ने राजकीय कार्यभार सँभाला। उनमें प्रथम था लार्ड मेलबोर्न। महारानी लार्ड मेलबोर्न के व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित रहीं। इस महान् राजनीतिज्ञ ने महारानी के चारों ओर अपने दंल की स्त्रियों को रख छोड़ा था जिसका फल यह हुआ कि जब मेलबोर्न के उपरांत राबर्ट पील के प्रधान मंत्री बनने का अवसर आया तो उसने उन सभी स्त्रियों को हटा देने का आग्रह किया और जब महारानी इसपर राजी न हुई तो उसने प्रधान मंत्रित्व का पद भी नहीं सँभाला। अगले चार महीनों में चार्टिस्ट आंदोलन हुए जो बड़े व्यापक और जोरदार थे। सन् १८४० ई. में सैक्सकोबर्गगोथा के ड्यूक के पुत्र राजकुमार एलबर्ट के साथ महारानी का परिणय हुआ। प्रारंभ में महारानी उसे राजनीति से दूर रखती थीं परंतु लार्ड मेलबोर्न के त्यागपत्र के बाद एलबर्ट ने ही महारानी तथा पील के बीच समझौता कराया। सन् १८४० से १८५७ तक विक्टोरिया को पाँच पुत्रियाँ तथा चार पुत्र हो चुके थे। शीघ्र ही वह ३७ बच्चों की दादी और नानी बन गई।
महारानी प्रोटेस्टेंट धर्म को ही मानती थीं। पील मत्रिमंडल की हार होते ही ह्विग द के हाथ में शासनसूत्र आ गया। लार्ड पामर्सटन तथा रसेल इस दल के नेता थे। पहले जॉन रसेल और बाद में पामर्सटन प्रधान मंत्री बने। पामर्सटन कभी कभी महारानी से पूछे बिना ही नीति निर्धारित कर देता था। कभी जो वह चाहतीं करा लेतीं और कभी जब देखतीं कि कोई चीज उनकी सीमा से परे है, तो वह चुपचाप इन नेताओं की नीति पर अपनी मुहर लगा देती। सन् १८६२ ई. में एलबर्ट का देहांत हो गया। पति की मृत्यु ने उसके जीवन को सदा के लिए एकाकी बना दिया और उसने लंदन में प्राय: रहना ही छोड़ दिया।
महारानी को यद्यपि मंत्रियों पर अधिक निष्ठा नहीं थी, फिर भी वह सदैव वैधानिक रूप से ही कार्य करती थीं। उसे प्रशा से सहानुभूति थी पर वही प्रशा जब पेरिस को विध्वंस करने चला तो उसने अपना सारा जोर डालकर उसे बर्बाद होने स बचा लिया। आपके शासनकाल में दूसरा सुधार बिल पास हुआ, जिसने निर्वाचन प्रधाली में बड़े बड़े परिवर्तन कर दिए। उसके शासनकाल में आयरलैंडवालों ने उपद्रव किए। उसे आयरलैंडवालों की स्वशासन की माँग अप्रिय थी परंतु जब उसके प्रधान मंत्री ग्लैडस्टन ने आयरी चर्च उन्मूलन नियम पास कराया तो उसने उसे स्वीकार ही किया, एतदर्थ ग्लैडस्टन कभी भी महारानी का कृपापात्र न बन सका। इसके विपरीत डिसरैली ने अपने प्रधान-मंत्रित्व-काल में उसे अधिक प्रसन्न कर लिया। वह डिसरैली की उग्र साम्राज्यवादी वैदेशिक नीति से बड़ी प्रसन्न थी। उसे उसकी स्वेज नहर में इंग्लैंड के लिए हिस्सा खरीदने तथा महारानी को भारत की साम्राज्ञी घोषित करने की नीति बहुत ही प्रिय लगी। सन् १८८७ तथा १८९७ में महारानी की दो जुबिलियाँ मनाई गई। इनसे उसे बहुत बड़ा गौरव मिला। उसका साम्राज्य सुव्यवस्थित और सुविस्तृत था। भारत का वह सदैव बहुत ध्यान रखती थीं।
अनवरत परिश्रम, सच्चाई तथा कर्तव्यवरायणता से महारानी ने अपने पद और देश के गैरव को अत्यधिक बढ़ा दिया था। २२ जनवरी, १९०१ ई., को उनका देहांत हुआ। (जितेंद्रनाथ वाजपेयी)