वासुदेव हुविश्क के बाद उसका पुत्र वासुदेव सिंहासन पर बैठा। हुविष्क के राज्यकाल का अंतिम लेख कनिष्क संवत् ६० का मिलता है। वासुदेव के राज्यकाल के लेख सं. ६७ से ९८ अथवा ९९ तक के प्राय: मथुरा में ही मिले हैं। कुछ विद्वानों का विचार है कि इसके समय में कुषाण साम्राज्य की सीमाएँ संकुचित हो गई थीं। वासुदेव के सिक्के (स्वर्ण तथा ताँबे के) उत्तरी-पश्चिमी भारत (वर्तमान पाकिस्तान) के शहरी बहलोल, जमालगढ़ी, सिरकप तथा तक्षशिला के अन्य भागों से प्राप्त हुए हैं। वेगराम (प्राचीन कापिश) की खुदाई में भी इस शासक के सिक्के (मुद्राएँ) मिले। कदाचित् पो. टि. ओ. नाम से यह चीनी इतिहासकारों को विदित था। उसने २३० ई. में चीनी सम्राट् को एक दूत भेजा और इसे ता-यूची सम्राट् की उपाधि मिली। कुछ विद्वानों का विचार है इस पो. टि. ओ. से वासुदेव द्वितीय का संकेत है। इस संबंध में ग्रिशमान द्वारा वेगराम में की गई खुदाई प्रकाश डालती है। यहाँ पर वासुदेव प्रथम के सिक्के मिले। उसने अर्दशीर के सिंहासनारूढ़ होने पर ससानी शासक के विरुद्ध अरमीनिया के खुसरो प्रथम का साथ दिया था। शापुर प्रथम ने कुषाणवंश का अंत किया था जैसा उत्खनन प्रमाणों से प्रतीत होता है। वहाँ एक लेख भी मिला जिसमें कई संवतां की तिथियाँ दी गई हैं। वासुदेव की समानता इस फ्रांसीसी विद्वान् ने खोरेन के अरमीनी लेखक मोजेज (मूसा) के वेहसजदन नामक कुषाण शासक से की है।

मथुरा में वासुदेव के समय के लेखों में प्राय: जैन दानियों द्वारा तीर्थकरों की मूर्तियों के स्थापन का उल्लेख मिलता है। सं. ६७ के एक लेख में महासंघिकों के हेतु बुद्ध प्रतिमा के निर्माण का उल्लेख है। सं. ७७ के एक अन्य लेख में उड़ियान से आए हुए जीवक नामक भिक्षु के दान का उल्लेख है जो उसने हुविष्क द्वारा मथुरा में स्थापित बिहार में किया था। इससे प्रतीत होता है कि इस कुषाण शासके के समय में यातायात का समुचित प्रबंध था।

वासुदेव स्वयं शिव का उपासक था, यद्यपि इसका नाम इसके वैष्णव होने का द्योतक है। इसके सिक्कों पर केवल शिव और नना की प्रतिमाएँ अंकित हैं। मथुरा संग्रहालय में शिवलिंग के निकट जाते हुए एक राजसी वेशधारी की मूत्रि की समानता इस शासक से की गई है। अपने पूर्वजों की भाँति इसने भी महाराज राजातिरा देवपुत्र षाहि की उपाधियाँ धारण कीं। यह सम्राट् कनिष्क का अंतिम वंशज था, यद्यपि उत्तरार्ध के कुषाण शासकों-कुषाण पुत्रों के लेख तथा सिक्के भी मिलते हैं।

सं. ग्रं. :-स्टेकेनो-काँर्पस इंस्क्रिप्शंस इंडिकेरम भाग २, (१) पुरी बी. एन-इंडिया अंडर दि कुषाणस् (बंबई, शास्त्री, के. ए. नीलकंठ कांप्रिहेंसिव हिस्ट्री आफ इंडिया) : भाग २। (बैजनाथ पुरी)