वारिस शाह (सय्यद) हीर राँझा की कथा पर काव्यरचना करनेवालों में सातवें कवि हैं। 'हीर' (सन् १७६७-६८) नामक आपकी कृति में पात्रों का चरित्रचित्रण नाटकीय ढंग से हुआ है। कथावस्तु उपन्यास के सदृश प्रस्तुत की गई है। वातावरण की अनुकूलता और महाकाव्यत्ववाला काव्यचमत्कार इसके विशेष गुण हैं। पंजाबी में हीर राँझा काव्य के आदि प्रेरक दामोदर से वारिस की रचना में पर्याप्त अंतर है। हीर के विवाह के समय उपस्थित होनेवाले दामोदर के पात्रों को वारिस ने अपनी काव्यकृति से बहिष्कृत कर दिया है। उसके स्थान पर उसने पंजाबी जीवन, सूफी सिद्धांतों एवं शरीअत के अनुकूल इस्लामी तथ्यों तथा वैवाहिक साजसज्जा, दहेज प्रभृति का उल्लेख किया है। हीर की माता का नाम 'मिहर कुंदी' के स्थान पर 'मलकी' तथा 'कैदो' को ताऊ की बजाय चाचा लिखा है। अनेकश: स्थलों पर संकोच एवं विस्तार में भी वारिस ने कविस्वातंत््रय का उपयोग किया है। 'हीर' का प्रणयन लँहदीप्रधान पंजाबी में हुआ है। यत्र तत्र अरबी, फारसी, संस्कृत, व्रज आदि के प्रचलित शब्दों को पंजाबी उच्चारण के अनुरूप परिणत कर लिया गया है। सामूहिक रूप से भाषा इतनी सरल एवं स्वाभाविक है कि वारिस शाह के बहुत से कथन ग्रामीण जनता में लोकोक्तियों के रूप में व्यवहृत होते हैं। इस रचना में ६१२ बंद और ४१२७ वैत छंद हैं।

सय्यद साहिब का जन्मकाल १७२०-३५ ई. अनुमित हुआ है। इनकी मृत्यु सन् १७९८-९९ में हुई। जन्म और निधनस्थान जंडियाला शेर खाँ, जिला शेखपुरा (पश्चिमी पाकिस्तान) है। इन्होंने कसूर, पाकपटन में शिक्षा प्राप्त की। सय्यद जलालुद्दीन बुखारी मखदूम जहानियाँ इनके गुरु थे।

सं. ग्रं. - डॉ. जीतसिंह सीतल : हीर वारिस (नवयुग पब्लिशर्स चाँदनी चौक, दिल्ली, प्रथम संस्करण); पंजाबी दुनीआ (वारिसअंक) जनवरी-फरवरी, १९६४ (पंजाब भाषा विभाग, पटियाला); आलोचना : हीर साहित्त गोष्ठी अंक (१) मार्च १९५९। सरदार लालसिंह : हीर दी कहानी, (पंजाबी साहित्य अकादमी, लुधियाना)। (नवरत्न कपूर)