वायुदाबलेखन (Barography) स्वत: वायुदाब पढ़नेवाला यंत्र है। इसके अंतर्गत एक खोखले बेलन के ऊपर विशेष प्रकार का ग्राफ कागज लगा दिया जाता है, जिसपर वायुभार का परिवर्तन एक सूचक द्वारा स्वयं अंकित होता रहता है। यह ढोल दो प्रकार का होता है, एक ढोल २४ घंटे के बाद अपना चक्कर पूरा करता है और दूसरा एक सप्ताह के पश्चात्। अगर एक सप्ताहवाला बेलन या ढोल होता है, तो उसके ऊपर चढ़ा हुआ कागज प्रत्येक सोमवार को प्रात:काल बदला जाता है और अगर २४ घंटेवाला बेलन होता है, तो उसे हर दिन प्रात:काल बदलते हैं। ढोल पर से कागज बदलने के लिए पहले लीवर की दाहिनी ओर हटा देते हैं, जिससे सूचक कागज से अलग हो जाता है। ढोल की धुरी को ढीला करके कागज को ऊपर की ओर खींचकर ढोल से अलग किया जाता है। इसके पश्चात् ऊपर की ओर से ढोल पर नया कागज चढ़ा दिया जाता है, सूचक की स्याही बदल देते हैं, फिर लीवर की बाईं ओर कर दिया जाता है, जिससे सूचक कागज से सट जाता है और वायुभार में परिवर्तन के अनुसार कागज के ऊपर नीचे लकीरें बनने लगती हैं। ढोल में घड़ी के सूचक के अनुसार चाभी भर दी जाती है, जिससे ढोल बराबर घूमता रहे। इन क्रियाओं को करने में बराबर सावधानी से काम करना चाहिए, जिससे सूचक ढोल के कागज के ऊपर अधिक दबाव नहीं डाले, नहीं तो कागज के फटने का डर रहता है और रेखाएँ भी स्वच्छ अंकित नहीं हो पातीं। ऐसी दशा में सूचक के स्क्रू को ढीला करन देना चाहिए। इस यंत्र द्वारा प्राप्त वायुदाब शुद्ध नहीं होता, अत: पारेवाले वायुदाबमापी से इसकी तुलना करके इसे शुद्ध कर लिया जाता है। भारत में इस यंत्र का प्रयोग अभी प्रथम श्रेणी की वेधशालाओं में ही किया जाता है। (विजयराम सिंह)