वायुदाबमापी (Barometer) वायु में भार होता है और इसी कारण पृथ्वी के ऊपर सहस्रों मील तक विस्तृत वायुमंडल हमारे ऊपर निरंतर, चतुर्दिक् दबाव डालता रहता है। इस दाब को संतुलित करने और उसे नापने के लिए वायुदाबमापी यंत्र का आविष्कार हुआ इस तथ्य का प्रायोगिक परीक्षण सर्वप्रथम टॉरीसेलि नामक वैज्ञानिक ने किया था। इस दाब को उसने 'वायुमंडलीय दाब' (Atmospheric pressure) की संज्ञा दी और पारे से भरी हुई नली में पारे के स्तंभ को इस दाब द्वारा सतुलित कर इन्होंने वायुमंडलीय दाब को नापने का सफल प्रयास किया, जिसकी प्रेरणा से वायुदाबमापी नामक यंत्र की सृष्टि हुई।

वायुदाबमापी का सिद्धांत - यदि किसी U आकृति की नली में, जिसकी एक भुजा छोटी और दूसरी बड़ी हो और उसके दोनों सिरे खुले हों कोई द्रव भर दिया जाए तो दोनों भुजाओं में द्रव का तल समान होगा (चित्र १.)। किंतु यदि छोटी भुजा के सिरे को बंद कर दिया जाए और उसमें इस प्रकार द्रव भरा जाए कि छोटी भुजा में द्रव के ऊपर के रिक्त स्थान में द्रववाष्प के अतिरिक्त वायु अथवा अन्य कोई गैस अवशिष्ट न रहे, तो दोनों भुजाओं के द्रवतलों में स्पष्ट अंतर दिखलाई पड़ेगा (चित्र २.)। इस अंतर का कारण स्पष्ट है। पहले प्रयोग में दोनों भुजाओं में द्रवतल समान हैं, किंतु दूसरे प्रयोग में खुली नली में द्रवतल पर वायुमंडलीय दाब तथा बंद नली में द्रव के वाष्प की दाब पड़ रही है। ये दोनों दबाव असमान हैं, इस कारण दोनों द्रवतलों में भी अंतर आ गया। यदि द्रव का वाष्प उपेक्षणीय हो, तो स्पष्ट है कि दूसरे प्रयोग में विंदु पर पड़नेवाला वायुमंडलीय दाब औरके द्रवतलों के अंतर के समान लंबे द्रवस्तंभ के भार के बराबर होगा। यदि द्रव का घनत्व तथा प्रयोगस्थल पर गुरुत्वीय त्वरण या गुरुत्व, (acceleration due to gravity, or gravity) जिसे (g) द्वारा व्यक्त किया जाता है, ज्ञात हो तो वायुमंडलीय दाब की गणना की जा सकती है, क्योंकि

वायुमंडलीय दाब = अ ब ऊँचाई के द्रवस्तंभ का भार

= अ ब स्तंभ की ऊँचाई द्रव का आपेक्षिक

घनत्व गुरुत्व (ग)

चित्र १. चित्र २.

अपने अनेक सुविधाजनक गुणों के कारण व्यावहारिक वायुदाबमापियों में पारे का उपयोग द्रव के रूप में किया जाता है। पारे के ऐसे दो गुण मुख्य हैं : (१) पारा शीशे की दीवार से चिपकता नहीं, और (२) पारे का आपेक्षिक घनत्व अन्य द्रवों की तुलना में बहुत अधिक होता है। इसलिए वायुमंडलीय दबाव को साधने के लिए पारे के बहुत ऊँचे स्तंभ की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, अन्यथा इस हेतु अत्यधिक लंबी नलिकाओं का उपयोग करना पड़ता। उदाहरणार्थ, पारे के बदले पानी का उपयोग करने पर ३४ फुट लंबी नलिका प्रयुक्त करनी पड़ती। यह स्थिति निस्संदेह असुविधाजनक होती।

उपर्युक्त वायुदाबमापियों में द्रव का उपयोग करना पड़ता है इसलिए उनके प्रयोग में तथा उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले के लिए १८४५ ई. में विडी (Vidi) नामक वैज्ञानिक ने निर्द्रव (aneroid) वायुदाबमापी का निर्माण किया। यद्यपि यह वायुदाबमापी द्रव (पारा) वायुदाबमापी के सदृश सुग्राही एवं यथार्थ नहीं होता, फिर भी परिवहन की दृष्टि से अत्यंत सुविधाजनक होने के कारण इसकी भी उपयोगिता बहत अधिक है।

पारद वायुदाबमापी (Mercurial Barometer) - प्राय: तीन प्रकार के पारद वायुदाबमापियों का प्रयोग वैज्ञानिक कार्यों में किया जाता है।

(१) साइफन (Siphon) वायुदाबमापी - इसका रूप और कार्यसिद्धांत वही है जो चित्र २. के स्पष्टीकरण के संदर्भ में वर्णित किया जा चुका है।

(२) फॉर्टिन का (Fortin's) वायुदाबमापी - इसमें पैमाने का शून्य स्थिर होता है और नीचे से पारे का तल उठाकर उस बिंदु तक लाया जाता है और फिर पैमाने पर पारदस्तंभ की ऊँचाई का पाठ्यांक ले लिया जाता है।

क्यू (Kew) वायुदाबमापी - इसमें पैमाने के शून्य का समायोजन (adjustment) नहीं करना पड़ता, वरन् बंद नली में पारे के परिवर्तन के द्वारा ही वायुमंडलीय दाब ज्ञात कर ली जाती है।

फॉर्टिन का वायुदाबमापी - इस यंत्र में पारे की एक प्याली में पारा से भरी हुई काँच की नली, जिसका एक सिरा बंद होता है, उलटी ऊर्ध्वाधर रख दी गई होती है, ताकि नली का बंद सिरा ऊपर और खुला सिरा प्याली में पारे के अंदर डूबा हुआ रहता है। फलस्वरूप नली के ऊपरी भाग में पारा कुछ दूर तक गिर जाता है और निर्वात उत्पन्न हो जाता है, जिसे टॉरिसेलि का निर्वात (Torcelli's vacuum) कहते हैं (चित्र ३. तथा ४.)। प्याली का आधार नरम चमड़े का होता है, जिसके नीचे एक पेंच, ट, लगा होता है। संपूर्ण तंत्र को पीतल के आवरण , से आवत कर देते हैं। नली के ऊपर पारे के तल के समीप कुछ दूर तक पीतल का आवरण खुला रहता है, ताकि पारे का तल पढ़ा जा सके। आवरण के उस खुले भाग में एक पैमाने के लगभग २७ से ३२ इंच तक के और सेंटिमीटर में ७० से ८० सेंमी. तक की माप के च्ह्रि अंकित रहते हैं। इस पैमाने का शून्य नीचे प्याली की ऊपरी दीवार से लटके हुए हाथीदाँत के एक सूचक, , की नोक पर स्थित होता है। ऊपर पैमाने के च्ह्रोिं से सटा हुआ एक बर्नियर पैमाना, , (देखें चित्र ४. और ५.) होता है, जो एक पेंच, , द्वारा ऊपर नीचे खिसकाया जा सकता है। समस्त उपकरण लकड़ी के एक ऊर्ध्वाधर स्टैंड पर जड़ा रहता है (देखें चित्र ४.)।

चित्र ३.

प्रयोग में लाते समय सर्वप्रथम पेंच, ट, को घुमाकर प्याली में पारे का तल इतना ऊपर उठाते हैं कि वह हाथीदाँत के सूचक की नोक का ठीक स्पर्श करने लगे। इस दशा में प्याली में पारे का तल पैमाने के ठीक शून्य पर होता है। अब ऊपर पेंच, , को घुमाकर वर्नियर पैमाने को खिसकाते है, ताकि वर्नियर पैमाने का शून्य नली में पारे के तल का ठीक स्पर्श करने लगे। सुविधा के लिए वर्नियर का निचला भाग शून्य पर इस प्रकार कटा होता है कि पारे का तल उस कटे भाग की ठीक सीध में अने पर वर्नियर का शून्य पाइ प्रदान करता है।

चूँकि फॉर्टिन वायुदाबमापी के पाठ में ताप का संशोधन करना पड़ता है, अत: प्रयोग के समय ठीक ठीक ताप ज्ञात करने की आवश्यकता पड़ती है, इसलिए वायुदाबमापी में ही एक तापमापी, , भी लगा रहता है।

कालांतर में न्यूमैन ने फॉर्टिन वायुदाबमापी से मिलता जुलता एक वायुदाबमापी बनाया था, जिसमें पारे का तल स्थिर रखा जाता था और हाथीदाँत का सूचक एक पेंच के द्वारा खिसकाकर नीचे लाया जात था, जिससे उसकी नोक पारे के तल का स्पर्श करने लगे। संकेतक की नोक जब पारे के तल का स्पर्श करती थी तब नली में पारे के तल का पाठ पैमाने पर पढ़ लिया जाता था। यह पाठ वायुमंडलीय दाब व्यक्त करता था। कुछ असुविधाओं के करण इस वायुदाबमापी का प्रचलन अब प्राय: समाप्त सा हो गया है।

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क्यू वायुदाबमापी - इस प्रकार के वायुदाबमापी में पारद प्याली या कुंड में पारे के तल का समंजन करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती वरन् केवल पारे के स्तंभ के शीर्ष का ही समंजन करना पड़ता है। यदि कुंड तथा नली बेलनाकार हो, तो दाब में परिवर्तन के कारण, कुंड में पारे के तल में परिवर्तन पारे के स्तंभ के शीर्ष में होनेवाले परिर्वन का एक निश्चित अंश होता है, जो यंत्र के आयाम पर निर्भर करता है। चित्र ६. और चित्र ७. से क्रमश: क्यू वायुदाबमापी के पारदकुंड एवं नली की रचना समझी जा सकती है। यह वायुदाबमापी, यद्यपि फ़ॉर्टिन वायुदाबमापी की भाँति अत्यंत सूक्ष्म एवं सटीक माप देता, तथापि सुवाहक होने के कारण इसका उपयोग सागरीय जलयानों एवं भारी वायुयानों में किया जाता है। इन यानों के डगमगाने के कारण पारे के तल में संभावित उथल पुथल, या आंदोलन को नि:शेष करने के हेतु वायुदाबमापी की नली में एक स्थान पर 'संकीर्णन' (constriction) बना दिया जाता है।

वायुदाबमापी के पैमाने (Scales) - ऋतुविज्ञानेतर प्रयोजनों में प्रयुक्त होनेवाली वायुदाबमापी के पाठ्यांक प्राय: सेंटीमीटर, या इंच में व्यक्त किए जाते हैं। अधिक सूक्ष्म मापों के लिए वायुदाबमापी के पाठ्यांकों में तापसंशोधन कर लेना आवश्यक होता है। यह संशोधन वायुदाबमापी के पैमाने की धातु तथा पारे के तापीय प्रसार के लिए किया जाता है। इस संशोधन की विधि नीचे दी गई है।

निपेक्ष-दाब-मान ज्ञात करने के लिए वायुदाबमापी के पाठ्यांक में, प्रयोग के समय के ताप पर, पारे के घनत्व तथा गुरुत्व (g) का गुण कर दिया जाता है। इस मान को 'डाइन प्रति सेंमी.' में व्यक्त किया जाता है। पारे का प्रामाणिक घनत्व ० सें. पर १३.५९५५ (४५ अक्षांश के समुद्रतल पर) है। प्रयोगस्थल के ताप सें. के लिए निम्नलिखित विधि से संशोधन करना पड़ता है :

(घनत्व)o सें. = (घनत्व) oसें. [+ घ त] गहाँ पारे का आयतन प्रसार गुणांक (coefficient of cubical expansion) है।

ऋतुविज्ञानशालाओं में व्यवहार्य वायुदाबमापी में वायुदाब को दबाव की इकाइयों, अर्थात् मिलिबार (millibar), में व्यक्त किया जाता है और यही इकाइयाँ प्राय: सर्वत्र मान्य हैं। एक मिलिबार १,००० डाइन प्रति सेंमी. के बराबर होता है और १,००० मिलिबार दाब पारे के २९.५३०६ इंच स्तंभ, या ७५.०१ सेंमी. स्तंभ, की दाब के बराबर होता है।

वायुदाबमापी के पाठ्यांक में तापसंशोधन - वायुदाबमापी में पारा के स्तंभ की लंबाई पीतल के पैमाने की सहायता से नापी जाती है, जो सें. पर अंशांकित किया हुआ रहता है।

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तापवृद्धि के कारण पैमने में प्रसार होता है, जिससे उसके भागों का मान बढ़ जाता है तथा साथ ही पारे का घनत्व कम हो जाता है, अत: प्रयोगशाला के ताप पर वायुदाबमापी द्वारा वायुदाबमापी द्वारा व्यक्त वायुदाब के मान

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में दो प्रकार के संशोधन करने पड़ते हैं : (१) पैमाने के प्रसरण के लिए और (२) पारे के घनत्व में परिवर्तन के लिए। सें. पर पारदस्तंभ की संशोधित लंबाई

o =[1 - (घ - ल) त ]

[Ho = H {1 - (r - a) t }]

यहाँ उo (Ho) और उ (H) क्रमश: o सें. तथा त (t) सें. पर पारदस्तंभ की ऊँचाइयाँ हैं और ध (r) तथा (a) क्रमश: पारे के आयतन प्रसार का गुणांक तथा पैमाने की धातु के रेखीय प्रसार का गुणांक (coefficient of linear expansion) हैं। साधारणतया पैमाना पीतल का होता है, जिसके लिए (a) = .००००१८ होता है और पारे के लिए (r) = .०००१८१ होता है। इनकी सहायता से पारदस्तंभ की संशोधित लंबाई एवं वायुमंडलीय दाब ठीक ठीक ज्ञात हो जाती हैं।

गुरुत्व संशोधन (Gravity Correction) - ऊपर वर्णित तापसंशोधन के अतिरिक्त और भी कतिपय संशोधन वायुदाबमापी द्वारा वायुदाब का अत्यंत सूक्ष्मांश तक यथार्थ मान ज्ञात करने के हेतु किए जाते हैं। इनमें गुरुत्व संशोधन मुख्य है। वायुदाबमापी का मानकीकरण जिस स्थान पर होता है, वहाँ गुरुत्व, (g), का मान प्रयोगस्थल के मान से भिन्न हो सकता है। अत: संशोधन करना आवश्यक हो जाता है। इस हेतु प्रयोगकेंद्र पर वायुदाबमापी का प्रयोग करने के पूर्व वायुदाबमापी के पाठ्यांक एवं अन्य किसी प्रामाणिक वायुदाबमापी द्वारा प्राप्त (गुरुत्व संशोधित) यथार्थ मान के बीच विभिन्न वायुदाबों पर संबंध व्यक्त करनेवाली एक तालिका (chart) तैयार कर ली जाती है और उसी के आधार पर, अथवा एक लेखाचित्र पर उन मानों को अंकित कर उनकी सहायता से, किसी भी वायुदाब के पाठ्यांक की संगत संशोधि दाब ज्ञात कर ली जाती है।

निर्द्रंव वायुदाबमापी - फॉर्टिन वायुदाबमापी तथा अन्य द्रव वायुदाबमापी यद्यपि वायुदाब की अत्यंत सूक्ष्म मान तक माप दे सकते हैं, किंतु उनमें दो मुख्य असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। पहली असुविधा तो यह है कि उनको उपयोग में लाने के कुछ प्रारंभिक समायोजन (adjustment) करने पड़ते है। दूसरी असुविधा यह है कि उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाने में कठिनाई होती है और परिस्थितियों में जहाँ वायुदाब में अत्यंत द्रुत गति से परिवर्तन हुआ करता है, उनका प्रयोग अत्यंत कठिन हो जाता है। इन कठिनाइयों के परिहारार्थ निर्द्रव वायुदाबमापी का आविष्कार किया गया।

इस वायुदाबमापी में इस्पात की नालीदार (corrugated) चद्दर का बना हुआ आधारपृष्ठ होता है, जिससे एक कमानी या स्प्रिंग (spring) जुड़ी रहती है। यह कमानी एक लीवर तंत्र (system of levers) द्वारा एक तर्क (spindle) से संबद्ध रहती है। जब वायुदाब में परिवर्तन होता है, तो नालीदार चद्दर अंद की ओर दबती अथवा बाहर की ओर फैलती है। इससे कमानी में गति उत्पन्न होती है और वह तर्कु को घुमाती है।

चित्र ८. ऐनेरॉयड (Aneroid) वायुदाबमापी

तर्कु से एक सूचक (pointer) लगा रहता है, जो तुर्क के घूमने साथ साथ एक अंशांकित डायल (dial) पर घूमता है। इस डायल पर एक मानक द्रव-वायुदाबमापी की सहायता से अंशांकन किया हुआ होता है। इस प्रकार यह वायुदाबमापी वायुदाब का प्रत्यक्ष पाठ्यांक देता है। डायल पर वायुदाब के साथ ही ऋतुपरिवर्तन के भी संकेत उल्लिखित होते हैं। शुष्क, आर्द्र, वर्षा, एवं तूफान, आँधी आदि का भी उल्लेख उसपर रहता है। सूचक की गति जिस ओर होती, उसी के अनुसार मौसम में परिवर्तन की पूर्वसूचना हमें मिल जाती है।

निर्द्रव वायुदाबमापी से वायुदाब में लगभग ०.०५ इंच तक होनेवाले परिवर्तन का ठीक ठीक अभिलेख मिल सकता है। (सुरेशचंद्र गौड़)