वाट, जेम्स (सन् १७३६-१८१९), स्कॉच इंजीनियर तथा आविष्कारक, का जन्म ग्रीनकॉक नामक नगर में हुआ था। इनके पिता छोटे व्यापारी थे, जिनको व्यापार में घाटा उठाना पड़ा। फलत: १९ वर्ष की आयु में जेम्स वॉट ने लंदनन जाकर जेम्स मॉरगन नामक यंत्र निर्माणकर्ता के कारखाने में काम करना प्रारंभ किया। यहाँ इन्हें कड़ा परिश्रम कर गरीबी से जीवन बिताना पड़ता था। इसलिए एक वर्ष पश्चात् स्कॉटलैंड वापस आकर, इन्होंने स्वत: यंत्र निर्माण करना आरंभ किया और कुछ समय में ग्लासगो विश्वविद्यालय में इसी कार्य पर नियुक्त हो गए।
अस्वस्थता के कारण ये किसी पाठशाला में नियमित रूप से शिक्षा नहीं पा सके थे। जो कुछ सीखा, अपने से ही सीखा। मशीनों और यांत्रिक गणनाओं की ओर इनको अत्यंत आकर्षण था। प्रचलित विश्वास कि जेम्स वॉट भाप के इंजन के अविष्कारक थे, सही नहीं है। इन्होंने वर्तमान इंजन को सुधार कर उपयोगी बनाया। उस समय निउकॉमेन के बनाए वाष्प इंजन से काम लिया जाता था, किंतु यह बहुत असंतोषजनक था। जेम्स ने भाप संबंधी अनेक प्रयोग किए और अलग काम करनेवाले संघनित्र का आविष्कार कर, भाप इंजन का खर्चा तीन चौथाई कम कर दिया। भाप का सफल पूर्ण इंजन बनाने में धन की कमी के कारण इन्हें कई वर्ष लग गए। इस कमी को पूरा करने के लिए सन् १७६५ में विवाह के पश्चात्, इन्होंने नहरों के निर्माण के लिए सर्वेक्षण कार्य करना स्वीकार किया। सन् १७७४ में मैथ्यू बोल्टन नामक व्यक्ति इन्हें सोहो इंजीनियरिंग वर्क्स नामक अपने कारखाने में बमिंघैम ले गए और धन से इनकी सहायत करने लगे। इसी वर्ष नवंबर मास में इनका पूर्ण और सफल इंजन प्रस्तुत हुआ और व्यापारी ढंग पर इसका निर्माण होने लगा। अगले वर्ष ये बोल्टन के साझेदार हो गए।
अब ये अपने अन्योन्यगतिक (reciprocating) भाप इंजन से सीधे घूर्णक गति (rotary motion) प्राप्त करने की चेष्टा में लगे। सर्वप्रथम इन्होंने इसके लिए क्रैंक (crank) का उपयोग किया, किंतु अंत में इसे छोड़कर सूर्य तथा ग्रह चक्र (sun-andplanet wheel) की युक्ति के प्रयोग का निश्चय किया। वाट ने भाप के प्रसार के सिद्धांत का उपयोग अपने इंजन को द्वि-क्रियावाला (double acting) बनाने में क्रिया, पिस्टन दंड तथा धरन (beam) में समांतर-गति-योजन की युक्ति का आविष्कार किया, भाप के इंजनों की गति को नियमित करने के लिए अपकेंद्री नियामक (centrifugal governor) का निर्माण किया, सिलिंडर में भाप के विविध दबावों के रेखाचित्र बनानेवाले सूचक को पूर्ण रूप दिया तथा अन्य अनेक यांत्रिक सुधार संबंधी आविष्कार किए।
भाप इंजन के सिवाय, वाट ने लेखों, पत्रों की प्रतियाँ उतारने का यंत्र तथा इस कार्य के लिए उपयुक्त स्याही का आविष्कार किया, नाव या जहाज चलाने के लिए पेंचदार पंखे (screw propeller) का सुझाव दिया तथा जल की संरचना का स्वतंत्र रूप से पता लगाया। सन् १८०० में इन्होंने कारखाने से निवृत्ति ली, किंतु फिर भी अपनी मृत्यु तक घर की प्रयोगशाला में अनुसंधान कार्य में प्रवृत्त रहे। (भगवानदास वर्मा)