वाजपेयी, चंद्रशेखर १९वीं शताब्दी के कवि हैं। इनका जन्म सं. १८५५, पौष शुक्ल १०, को मोजबाबाद (फतेहपुर) में हुआ था। इनके पिता मनीराम वाजपेयी भी अच्छे कवि थे। इनके गुरु असनी के करनेश महापात्र थे, जो 'कर्णभरण', 'श्रुतिभूषण' और भूपभूषण' नामक ग्रंथों के रचयिता करनेश से भिन्न १९वीं शती में रहे होंगे। २२ वर्ष की उम्र में इन्होंने दरभंगा की यात्रा की। वहाँ सात वर्ष बिताकर ये जोधपुर के राजा मानसिंह, पटियालाधीश कर्मसिंह और महाराज नरेंद्रसिंह के आश्रय में रहे। इनका शरीरपात सं. १९३२ वि. में हुआ।
इनकी १० रचनाएँ कही जाती हैं-(१) हम्मीर हठ (र. का. १९०२ वि.), (२) नखशिख, (३) रसिकविनोद (१९०३ वि.), (४) वृंदावनशतक, (५) गुरुपंचाशिंका, (६) ज्योतिष का ताजक, (७) माधुरीवसंत, (८) हरि-भक्ति-विलास (हरि-मानसविलास), (९) विवेकविलास और (१०) राजनीति का एक वृहत् ग्रंथ। इनमें सर्वाधिक महतव की रचना 'हम्मीरहठ' है, जिसपर कवि की कीर्ति अवलंबित है। इसमें रणथंभोर के राजा हम्मीर और सम्राट् आलउद्दीन के युद्ध का वर्णन बड़ी ही ओजपूर्ण शैली में किया गा है। इसका प्रधान रस वीर है। वाराणसी के लहरी बुक डिपो से यह प्रकाशित भी हो चुका है। रसिकविनोद नायिकाभेद और रसों के वर्णनन का ग्रंथ है।
वीर, शृंगार और भक्ति तीनों रसों का अच्छा परिपाक इनकी रचनाओं में मिलता है। इसीलिए अचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है कि 'उत्साह की, मंग की व्यंजना जैसी चलती, स्वाभाविक और जोरदार भाषा में इन्होंने की है वैसे ढंग से करने में बहुत ही कम कवि समर्थ हुए हैं। वीररस वर्णन में इस कवि ने बहुत ही सुंदर साहित्यिक विवेक का परिचय दिया है' (हिंदी साहित्य का इतिहास, पृ. ३८९, पंचम संस्क.)। कवि का अपनी साहित्यिक भाषा पर पूरा अधिकार है। उसमें व्यवस्था, प्रवाह और रसानुकूल उत्कृष्ट पदविन्यास भी पाया जाता है। प्रसंगविधान पूर्ववर्ती कवियों का सा ही है। बहुल अनुप्रास योजना रसबाधक न होकर रसोपकरी सिद्ध हुई है। (रामफेर त्रिपाठी)